नदी और समय

ये दोनों एक सरीखे हैं
नदी और समय
चलते ही जाते हैं।
कभी पीछे मुड़कर नहीं देखते
आती है इनके राहों में भी
घने विध्न-बाधाएं
कुछ दूषित भावों के संग
कलुषित कामनाएं।
बनाती है -
इनके पथ को पथरीले।
किंतु कहां देखते हैं ये
रास्ते सरल समतल है
या है टेढ़े मेढ़े‌
बस चलते ही जाते हैं।
रास्ते में है अंधियारा
या उजास भरा सवेरा
लाख बिछे हो राहों में कांटे
या घनीभूत हो पीड़ा
छेड़ हृदय में राग सुहाना
गीतों को गुनगुनाएं
बस चलते ही जाएं।
तट को पता है
अपने मौन का मकसद
नदी और समय को
संग-संग निरंतर बहना है
यह दोनों एक सरीखे हैं
इन्हें संग-संग चलना है।
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- निशा भास्कर, नई दिल्ली।

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