ढोंगी ढकोसलों का दरबार
- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त
श्रीराम!' कहता था, और बीड़ी की जगह तुलसी की माला जपता था। गाँव की औरतें अब उसे 'बाबा जी' कहतीं और वो अपना पेट अंदर खींचकर कहता—"अरे, सब माया है माया।" जबकि माया तो उसके बगल में बैठी वो विधवा थी, जो उसके वैराग्य में रात का राग ढूंढ रही थी।आत्ममुक्ति केंद्र’। हर इतवार को सत्संग होता, जिसमें भक्तजन अपने पापों का विसर्जन चाय और नमकीन के साथ करते। बाबा जी के प्रवचनों में गीता कम, गप ज्यादा होती। लेकिन चूंकि उन्होंने भाषण में तीन बार 'द्रौपदी' और पाँच बार 'कृष्ण' का नाम लिया था, तो लोग समझते कि वो तो साक्षात वेदव्यास के वंशज हैं।
बाबा हर बार कहते, "संसार रूपी नारी का वस्त्र जब खिंचता है, तभी धर्म डगमगाता है।" और पीछे से लाइट बंद करके किसी भक्तिन का मोबाइल नंबर सेव कर लेते। जहाँ वे शादी में भोंपू बजा रहे थे, पर फोटो को सत्संग कहकर अपलोड कर दिया गया।सच्चा नाटक था! आपके जैसा कोई नहीं!" बाबा जी मुस्कराए, जैसे बुद्धत्व को प्राप्त कर लिया हो। उन्होंने मूंगफली का छिलका जेब में रखा, और बोले—“ध्यान रखो, ढोंग करने वाले से बड़ा कलाकार कोई नहीं होता।” सबने सिर झुका लिया, क्योंकि ढोंग जब पूज्य बन जाए, तो सवाल उठाने वाले भी ढोंगी लगने लगते हैं।गुलाबजल छिड़का जाता, और भक्तों की टोली में अब विधायक, डॉक्टर और रियल एस्टेट एजेंट शामिल हो चुके थे।

हर सभा में वे एक ही बात कहते- "मनुष्य वही श्रेष्ठ जो दिखावा छोड़ दे।" और यह कहते वक्त उन्होंने अपनी घड़ी ठीक की जो रोलैक्स की फर्स्ट कॉपी थी। एक महिला भक्त ने सवाल किया-"बाबा जी, आपको कभी मोह नहीं होता?" बाबा बोले- "मोह मुझसे डरता है, बहन!" और फिर वही बहन एक ऑडी में बाबा जी को बैठाकर ले गई। गाड़ियाँ, तीन फर्जी डिग्रियाँ और एक लाश मिली। लेकिन भक्तों ने कहा- "ये सब सरकार की साजिश है, बाबा जी के खिलाफ।" क्योंकि जब आँख पर आस्था की पट्टी हो, तो सच्चाई भी झूठ जैसी लगती है।दिखावा बड़ा महँगा पड़ता है।" उनका हाथ लटक गया। मौत के बाद भी कोई रोया नहीं, बस एक भक्त बोला- "कम से कम अब कोई ढोंग नहीं करेगा।" और सामने से एक नया बाबा भगवा वस्त्र में आते हुए बोला- "बोलिए श्रीराम!"

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