कौआ और मैं

 रविवार की सुबह थी। हाथ में अखबार लिये मैं अकेले चाय की चुस्की ले रहा था; तभी मेरी नजर छत पर बैठे एक कौए पर पड़ी।
कुछेक मिनट बाद मुझे लगा कि कौए ने छत पर रोटी के कुछ टुकड़े देख लिये हैं। वह तुरंत उड़ा; और शुरू हो गया उसका 'काँव..काँव..काँव...!'
 देखते ही देखते छत पर बहुत सारे कौए आ गये। सभी चुपचाप रोटी के टुकड़ों का आनंद लेने लगे।
खाली कप रखते हुए, उन्हें देखकर मेरी मनुष्यता लजा रही थी।
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- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

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