“काग़ज़ की नाव” : मासूमियत और संवेदना का सागर


पुस्तक : काग़ज़ की नाव (बाल काव्य संग्रह)
लेखक: डॉ. सत्यवान सौरभ
प्रकाशन वर्ष: 2025
पृष्ठ: 120
प्रकाशक: नोशन प्रेस, चेन्नई।

"काग़ज़ की नाव" एक सजीव और संवेदनशील बाल काव्य संग्रह है जो बच्चों की सरल और मासूम दुनिया को खूबसूरती से अभिव्यक्त करता है। डॉ. सत्यवान सौरभ की लेखनी में भाषा की सहजता, भावों की गहराई और लय की मिठास स्पष्ट झलकती है। प्रत्येक कविता बच्चों की जिज्ञासा और कल्पनाशीलता को बढ़ावा देती है, साथ ही उनमें नैतिक मूल्यों का संचार भी करती है। यह संग्रह न केवल बाल पाठकों के लिए उपयुक्त है, बल्कि अभिभावकों और शिक्षकों के लिए भी एक उपयोगी संसाधन है जो बच्चों को सही दिशा देना चाहते हैं।कुल मिलाकर, "काग़ज़ की नाव" बाल साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान है, जो बच्चों के मनोविज्ञान और भावनाओं के साथ संवेदनशीलता से जुड़ता है।
"काग़ज़ की नाव" केवल एक कविता संग्रह नहीं, एक सांस्कृतिक बीज है, जिसे डॉ. सत्यवान सौरभ ने अपने संवेदनशील लेखन, बाल-अनुभव और विचारशीलता से सींचा है। यह संग्रह नवीन पीढ़ी के बच्चों के लिए एक आइना है, जिसमें वे खुद को देख सकते हैं, और साथ ही एक दिशा सूचक भी है, जो उन्हें जीवन मूल्यों की ओर ले जाता है। यह संग्रह, डॉ. सौरभ के बाल साहित्य में तीसरे प्रयास के रूप में प्रकाशित हुआ है।
"काग़ज़ की नाव" शीर्षक कविता बचपन की उस पहली कल्पना को पुनर्जीवित करती है जहाँ काग़ज़ की एक नाव बारिश के पानी में तैरती है और साथ में बहता है हृदय का उल्लास:
"वर्षा-जल में चलो नहाएं,
काग़ज़ वाली नाव चलाएं।
यह कविता केवल एक दृश्य नहीं, बल्कि एक स्मृति है, एक अहसास है जो बालमन को सीधे स्पर्श करता है।
"नन्हे कदम, बड़े सपने", "बचपन की गुनगुनाहट", "खेल की दुनिया" "नन्हे कदम, बड़े सपने" कविता बताती है कि कैसे बच्चे छोटे होते हुए भी बड़े सपने देखते हैं। "खेल की दुनिया" में खेलों के माध्यम से सीखने का संदेश है। डॉ. सत्यवान सौरभ की भाषा अत्यंत सरल, लयबद्ध और बाल-मनोविज्ञान के अनुरूप है। उनकी कविताओं में छंद, तुक, और छोटे-छोटे बिंब बच्चों की भाषा को छूते हैं।
- समीक्षक: विजय गर्ग
पूर्व प्राचार्य, शिक्षाविद, मलोट।

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