मेरठ में भारतीय बहुलवाद को नई परिभाषा दे रहे मुस्लिम रचनाकार: एक सांस्कृतिक बदलाव

मुस्लिम और आज का सोशल मीडिया” विषय पर कार्यशाला  का आयोजन 

मेरठ। भारत में जब राजनीतिक विमर्श अक्सर ध्रुवीकृत और द्विआधारी दृष्टिकोणों से प्रभावित रहता है, वहीं एक शांत लेकिन प्रभावशाली सांस्कृतिक क्रांति आकार ले रही है। मुस्लिम रचनाकारों की एक नई पीढ़ी — जिसमें फिल्म निर्माता, लेखक, हास्य कलाकार, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और डिजिटल उद्यमी शामिल हैं — भारतीय समाज में मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व को एक नई पहचान और स्वरूप दे रही है।ये बातें प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक प्रमोद पांडे ने आज एक शिक्षण संस्थान में “मुस्लिम और आज का सोशल मीडिया” विषय पर आयोजित कार्यशाला में कहीं। यह आयोजन जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें सैकड़ों विद्यार्थियों और मीडिया शोधकर्ताओं ने भाग लिया।

प्रमोद पांडे ने कहा कि,”आज के मुस्लिम रचनाकार चुप नहीं हैं, न ही वे मुख्यधारा में अपनी जगह पाने के लिए आत्मसमर्पण कर रहे हैं। वे अपनी कहानियों को भारतीय कथावाचन की मुख्यधारा में ला रहे हैं — गर्व और आत्मविश्वास के साथ।”उन्होंने कहा कि भारतीय पॉप संस्कृति में मुस्लिमों को लंबे समय तक “प्रतीकात्मक बोझ” के रूप में दर्शाया गया है — या तो पीड़ित, खलनायक या फिर बीते युग के अवशेष की तरह। मुगल-ए-आज़म की भव्यता से लेकर 9/11 के बाद के आतंकवादी किरदारों तक, सकारात्मक और वास्तविक चित्रण दुर्लभ रहे हैं।

फिल्म लेखिका सविता पांडे ने कार्यशाला में कहा कि डिजिटल मीडिया ने एक नया मंच तैयार किया है, जहां मुस्लिम युवा रचनाकार अपनी असल पहचान और अनुभवों को साझा कर रहे हैं।उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हसन मिन्हाज का नेटफ्लिक्स शो Patriot Act — जिसने भारतीय राजनीति और समाज में समकालीन मुद्दों पर तीखी लेकिन ज़रूरी बहस को जन्म दिया। दानिश अली, आदिल खान और ऐमेन सयानी जैसे यूट्यूब और इंस्टाग्राम क्रिएटर्स — जो हास्य, साहित्य, फैशन, भोजन और धर्म जैसे विषयों पर प्रामाणिक और सशक्त कंटेंट बना रहे हैं।संगीत की दुनिया में ए.आर. रहमान, सलमान अली और सलीम-सुलेमान की जोड़ी लंबे समय से भारत के बहुलवादी संस्कारों को अपनी कला के माध्यम से प्रस्तुत करती रही है।कार्यशाला में यह बात स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आई कि आज का बहुलवाद केवल सह-अस्तित्व नहीं है, बल्कि सार्थक संवाद और सांस्कृतिक सहभागिता है।जब कोई हिजाब पहने लड़की बॉलीवुड संगीत पर नृत्य करती है या कोई पॉडकास्ट दलित-मुस्लिम एकता और इस्लामी वास्तुकला पर केंद्रित होता है, तो यह बहुलवाद का व्यावहारिक और जीवंत स्वरूप बन जाता है।

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