ईद उल अजहा / जानवर के हर बाल के बराबर मिलती है नेकी: चतुर्वेदी 

 सदर जामा मस्जिद में जलसे का आयोजन

मेरठ। 'कुर्बानी' का  शरीयत में एहम रोल है। अब वो कुर्बानी चाहे ईद उल अजहा पर जानवरों की हो या फिर आम जिंदगी में अपनी नफ़्स की। कुल मिलाकर अल्लाह पाक को कुर्बानी पसंद है। यह कहना है मदरसा इमदादुल इस्लाम के मोहतमिम मौलाना मशहूदुर्रहमान शाहीन जमाली चतुर्वेदी का। 

वह सदर बाजार स्थित जामा मस्जिद में आयोजित जलसे के दौरान ईद उल अजहा पर होने वाली जानवरों की कुर्बानी को लेकर अल्लाह के हुक्म का जिक्र कर रहे थे। कुर्बानी का मकसद बयां करते हुए उन्होंने कहा कि यह पैग़म्बर हज़रत इब्राहिम की सुन्नत है और एक अहम इबादत है। हदीस की रोशनी में कुर्बानी का जिक्र करते हुए मौलाना चतुर्वेदी ने कहा कि कुर्बानी करने वाले व्यक्ति को  कु़र्बानी के जानवर के हर बाल के बराबर नेकी मिलती है। मौलाना चतुर्वेदी ने आगे कहा कि कुर्बानी एक अहम पैगा़म है। इससे इंसान तक़वे वाला और सब्र करने वाला बन जाता है। उन्होंने कहा कि कुर्बानी से इंसान में गरीबों की मदद का जज्बा पैदा होता है और वह यतीमों तथा बेसहाराओं एवं मजलूमों का मददगार बनता है।

कुर्बानी का जानवर कैसा हो 

 मौलाना चतुर्वेदी के अनुसार कुर्बानी के बड़े जानवर की उम्र 2 साल और छोटे जानवरों की उम्र 1 साल होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि कुर्बानी के जानवरों की उम्र पूरा होने की जा़हिरी अलामत 2 दांत का होना है। 

ऐसा जानवर जिस की कु़र्बानी नहीं करनी चाहिए 

मौलाना ने कहा कि जिस जानवर का एक या दोनों सींग जड़ से उखड़ गए हों या जो जानवर अंधा हो। इसके अलावा ऐसा जानवर जिसका कान्हा पन साफ दिखाई दे रहा है। उसकी कुर्बानी भी जायज़ नहीं है। लंगड़े जानवर, बीमार जानवर या ऐसा जानवर जिसके पैदाइशी तौर पर दोनों या एक कान न हो। उनकी कुर्बानी भी नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा ऐसा जानवर जिसकी  दुम, कान या आंख एबदार हो, उसकी कुर्बानी जी नाजायज है। मौलाना चतुर्वेदी ने कहा कि टूटे दांत और घिसे दांत वाले जानवर की कुर्बानी भी नहीं करनी चाहिए।

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