यूँ मुस्कुराया न कर


अरी तू यूँ मुस्कुराया न कर।
  खिलते गुलाब को जलाया न कर।

बदनाम हो जाएगी हवा बेचारी,
      कंधे से चुनरी सरकाया न कर।

कह न दे लोग सूरज को कुछ,
    आँखों में काजल लगाया न कर।

उसे तो मिलना ही है समन्दर से,
     ज़वाँ नदी को उकसाया न कर।

सब देखती है कोयल अमराई से,
     तू मुझे कहीं भी बुलाया न कर।
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- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'


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