मेरठ कॉलेज में हुआ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर मंथन

डाटा गोपनीयता एवं एल्गोरिदमिक पक्षपात है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस drकी dr चुनौती: प्रो राखी गर्ग 

मेरठ।  मेरठ कॉलेज के कंप्यूटर साइंस विभाग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं इसकी चुनौतियां विषय पर बनारस विश्वविद्यालय से पधारी प्रसिद्ध कंप्यूटर विशेषज्ञ प्रो राखी गर्ग ने गहन मंथन प्रस्तुत किया। उन्होंने सभागार को संबोधित करते हुए कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) दुनिया को अभूतपूर्व गति से बदल रहा है, और भारत भी इससे अछूता नहीं है। कृषि से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा से लेकर प्रशासन तक, भारत के विभिन्न क्षेत्रों में AI का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। विशाल जनसंख्या, विकसित होती डिजिटल संरचना और मजबूत आईटी उद्योग के कारण भारत इस वैश्विक AI क्रांति का लाभ उठाने और इसमें योगदान देने के लिए एक अनूठी स्थिति में है।

प्रो राखी गर्ग ने आगे बताया कि भारत में AI का प्रभाव अब दैनिक जीवन में भी देखा जा सकता है। कृषि क्षेत्र में AI आधारित उपकरणों का उपयोग फसल की उपज का पूर्वानुमान लगाने, कीट पहचानने और मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए किया जा रहा है। स्वास्थ्य सेवा में, AI का उपयोग रोगों की पहचान, दवा अनुसंधान और व्यक्तिगत उपचार योजनाओं के लिए किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, AI मॉडल का उपयोग तपेदिक और डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसी बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जा रहा है, वह भी तेज और अधिक सटीक तरीकों से।

 मेरठ कॉलेज में कंप्यूटर विभाग के अध्यक्ष श्री अरविंद कुमार ने कहा कि ई-कॉमर्स और वित्तीय संस्थान भी ग्राहक सेवा, धोखाधड़ी की पहचान और सिफारिश प्रणाली में AI पर निर्भर हो गए हैं। बैंकिंग, टेलीकॉम और रिटेल जैसे क्षेत्रों में AI चैटबॉट्स का प्रयोग मानव कार्यभार को कम करने और कार्य कुशलता बढ़ाने के लिए हो रहा है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर अर्चना सिंह ने बताया कि भारत सरकार ने भी AI के महत्व को समझते हुए इसकी वृद्धि और उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई पहल शुरू की हैं। नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत नेशनल स्ट्रेटेजी फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (NSAI) का उद्देश्य भारत को AI के क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी बनाना है। यह नीति सामाजिक क्षेत्रों जैसे कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा में समावेशी विकास को बढ़ावा देने पर जोर देती है।

प्रो राखी गर्ग ने आगे बताया कि AI को अपनाने में भारत को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे बड़ी समस्या उच्च गुणवत्ता वाले डेटा की कमी है, विशेष रूप से भारतीय भाषाओं में। चूंकि AI को निर्णय लेने के लिए डेटा की आवश्यकता होती है, यह कमी इसकी प्रभावशीलता को बाधित कर सकती है।

दूसरी बड़ी चुनौती AI से संबंधित शिक्षा और कौशल की कमी है। हालांकि भारत हर साल बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग स्नातक तैयार करता है, परंतु उनमें से बहुत कम ही AI, मशीन लर्निंग और डेटा साइंस में प्रशिक्षित होते हैं। इस स्किल गैप को पाटना AI के सतत विकास के लिए आवश्यक है।

हालांकि, भारत की युवा और तकनीक-प्रेमी जनसंख्या एक बड़ी संभावना प्रस्तुत करती है। देश में बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे जैसे शहरों में AI-आधारित स्टार्टअप्स और इनक्यूबेटर्स का बढ़ता नेटवर्क एक सकारात्मक संकेत है।

  उन्होंने कहा कि AI का भविष्य भारत में उज्ज्वल है, लेकिन इसके लिए समावेशी विकास, नैतिक ढांचा और सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के बीच सहयोग की आवश्यकता होगी। जैसे-जैसे AI तकनीकें परिपक्व होती जाएंगी, इनका उपयोग सार्वजनिक सेवाओं में बदलाव ला सकता है—जैसे कि सरकारी योजनाओं को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाना, बीमारियों का पूर्वानुमान और रोकथाम, और आपदा प्रबंधन को सशक्त बनाना।

इसके नैतिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए डॉ राखी गर्ग ने बताया कि भारत को AI विकास के साथ-साथ नैतिक दिशा-निर्देशों को तय करने में भी अग्रणी भूमिका निभानी होगी। डेटा गोपनीयता, एल्गोरिदमिक पक्षपात और नौकरियों की जगह मशीनों का आना जैसी समस्याओं का संतुलित समाधान आवश्यक होगा। कार्यक्रम के अंत में प्रोफेसर निशा मनीष एवं प्रो चंद्रशेखर भारद्वाज ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन रुनझुन बिश्नोई ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में नरेंद्र शर्मा, गौरव सिंघल, नैंसी, रीना बंसल, अर्पणा, सुधीर शर्मा इत्यादि का विशेष सहयोग रहा। 


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