किडनी प्रकरण में केएमसी हॉस्पिटल को हाईकोर्ट से मिली क्लिन चिट

 संस्थान पर अनुचित दबाव बना कर पैसा एंठने के लिए किया खेल - डा. सुनील गुप्ता

आरोपियों के ऊपर मानहानि का वाद दायर किया जाएगा 

 मेरठ। किडनी मामले मे फंसे केएमसी हॉस्पिटल को बडी राहत मिली है। हॉस्पिटल को हाईकोर्ट से क्लिन चिट दी है। इसी परिपेक्ष में बाउड्री रोड़ स्थित एक होटल में मीडिया के सामने हाॅस्पिटल के चिकित्सक व अधिकवक्ता ने अपना पक्ष रखनते हुए मीडिया को रूबरू कराया। इस दौरान केएमसी चिकित्सा संस्थान के निर्देशक डा. सुनील गुप्ता, निर्देशिका डा. प्रतिभा अग्रवाल, केएमसी कॉलिज ऑफ नर्सिंग की निर्देशिका सन्ध्या सिसौदिया, इस प्रकरण से जुड़े अधिवक्ता एसके दीक्षित, सलीम खान एवं अन्य चिकित्सक उपस्थित रहे।

निर्देशक डा. सुनील गुप्ता ने बताया कि ऐसे प्रकरण से सम्बन्धित था जिसमें भारी मात्रा में धन उगाही हेतु बिना किसी आधार एवं तथ्यों के बुलन्दशहर की एक रोगी कविता देवी पत्नी जयदेव निवासी कस्या बुगरासी नरसैना जिला बुलन्दशहर ने बेबुनियादी आरोप लगाकर एक FIR दर्ज करायी। CPA के नियमों के अनुसार, किसी भी अस्पताल को रोगी के अस्पताल में भर्ती के इलाज से सम्बन्धित दस्तावेज की 2 साल तक ही रखने की अनिर्वायत्ता है, तो इन आरोपों को लगाने के लिये रोगी कविता द्वारा विभिन्न अदालतों में जमा किये दस्तावेजों के अनुसार यह 2010 से अस्पताल की ओपीडी में इलाज कराने आती रही है। 2010 के बाद यह रोगी अस्पताल में मई 2017 में दिखाने आई एवं हर बार यह पेट दर्द और बुखार के लिए आती थी। प्रत्येक बार की इसकी अल्ट्रासाउण्ड रिपोट में बाँया गुर्दा असामान्य एवं अपनी समान्य जगह पर ना होना दर्शाया गया है। जिसे Ectopic Kidney कहते है। जो सामान्य नहीं होती है।अचानक 5-6 वर्ष बाद 13 दिसंबर 2022 को एक अल्ट्रासाउण्ड रिपोट के आधार पर जिसमें बाँयी तरफ की Nephrectomy दिखाई गई है, (जोकि अल्ट्रासाउण्ड विधि की तकनीकि सीमाओं का उल्लंघन है), इनके अधिवक्ता ने एक कानूनी नोटिस केएमसी चिकित्सा संस्थान को यह कहकर प्रेषित किया कि तुमने इसका बाँया गुर्दा निकाल लिया है एवं 40 लाख रुपये की डिमान्ड की।

झूठे तथ्यों के आधार पर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बुलन्दशहर में सन् 2024 में किया वाद योजित अस्पताल प्रबन्धन ने जब उनसे साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा तो उसके अधिवक्ता ने डाक्टर सुनील गुप्ता को बुलन्दशहर बुलाकर Settlement करने की बात कही, जब डा० सुनील गुप्ता नहीं गये तो इन्होंने 2023 में जिला उपभोक्ता न्यायालय बुलन्दशहर में एक वाद दायर कर दिया। उस न्यायालय में डेढ़-दो वर्ष बाद जब इनकी ब्लैकमेलिंग/धन उगाही कामयाब नहीं हो पाई तो इन्होंने झूठे तथ्यों के आधार पर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बुलन्दशहर में सन् 2024 में एक वाद योजित किया, जिसमें डा० सुनील गुप्ता पर यह इल्जाम लगाया कि इन्होंने हमें रास्ते में रोककर अपना CPA बाद दायर वापस करने की धमकी दी है। जब न्यायालय बुलन्दशहर ने इस घटना की आख्या नरसैना थाने में तलब की तो इस आख्या में यह आरोप झूठे पाये गये।

डा. सुनील गुप्ता ने हाई कोर्ट इलाहाबाद में जाकर शरण ली

बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि बुलन्दशहर न्यायालय द्वारा CMO के बिना कोई चिकित्सीय बोर्ड गठित कराये हुए महिला कविता द्वारा एक तरफा लगाये सभी आरोपों पर जिसमें बिना किसी आधार के बहुत ही घिनौने आरोप "बाँया गुर्दा निकालकर बेचने का भी है।" में सभी सम्बन्धित धाराओं में 03 जनवरी 2025 को छः निर्दोष चिकित्सकों पर FIR पंजीकृत कराने के आदेश दे दिये। इस FIR के पंजीकृत होने के बाद डा. सुनील गुप्ता ने हाई कोर्ट इलाहाबाद में जाकर शरण ली एवं एक Writ Petition (no. 1944/2025) दाखिल की, जिसमें उन्होंने इस बेबुनियादी, बिना साक्ष्यों एवं तथ्यों के एवं नियमों के विरुद्ध की गई FIR को Quash कराने की प्रार्थना की। सर्वप्रथम जस्टिस की बेंच ने इस FIR के विरुद्ध एक Interim Relief 18 फरवरी 2025 को निर्दोष चिकित्सकों को दे दिया।

30 वर्षों में 70 हजार से ज्यादा ऑपरेशन

इस पूरे प्रकरण का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि जो चिकित्सक पिछले 30 वर्षों में 70 हजार से ज्यादा ऑपरेशन कर चुका है, सामाजिक सरोकार के लिए 11 गाँव गोद ले रखे हैं। उत्तरी भारत के इस क्षेत्र में अनगिनत लावारिस लोगों का ऑपरेशन कर चुका है। समाज में इस तरह गिरती नैतिकता के तहत एक रोगी जिसके साथ अधिवक्ता एवं समाज के अन्य नकारात्मक लोग मिलकर भारी मात्रा में धन उगाही के लिए बिना किसी आधार के न्यायालय में प्रार्थना पत्र देते हैं एवं न्यायिक प्रक्रिया का सम्बन्धित सभी लोगों द्वारा घिनौना दुरुपयोग होते हुए निर्दोष चिकित्सकों के विरुद्ध FIR दर्ज कराते हैं फिर उस FIR को Print एवं Electronic मीडिया में प्रसारित किया जाता है एवं पूरा समाज निर्दोष चिकित्सकों को गुनहगार समझने लगता है। चिकित्सा संस्थान में रोगियों का आना कम हो जाता है, चिकित्सकों का भारी मानसिक उत्पीड़न होते हुए भारी भरकम आर्थिक नुकसान होता है। इस प्रकार की घटना से गम्भीर रोगियों को अस्पताल में ईलाज मिलना और भी कठिन होता चला जायेगा।

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