हर दिल हो भारतीय
इलमा अज़ीम 
जब देश पर संकट आता है, चाहे वह सीमा पार से हो, आतंकी हमला हो या पूर्ण युद्ध की आशंका, तब किसी भी मजहब, जाति या राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर राष्ट्र के साथ खड़ा होना प्रत्येक नागरिक का सर्वोच्च कर्तव्य बन जाता है। ऐसे समय में किसी दल या वर्ग की नहीं, बल्कि राष्ट्र की जीत होनी चाहिए। इतिहास गवाह है कि जब-जब भारत ने आंतरिक एकजुटता का परिचय दिया है, तब-तब वह हर बाहरी ताकत के सामने अडिग रहा है। 
भारत की स्वतंत्रता के ठीक बाद 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया। न भारत पूरी तरह संगठित था, न सेना पूरी तरह तैयार, लेकिन भारतीयों ने एकजुट होकर न केवल दुश्मन को रोका, बल्कि कश्मीर के अधिकांश हिस्से की रक्षा की। इसी प्रकार 1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने देशवासियों से आह्वान किया था कि वे केवल सरकार और सेना पर निर्भर न रहें, बल्कि खुद भी मानसिक और भौतिक रूप से युद्ध के लिए तैयार रहें।


 लाखों नागरिकों ने स्वेच्छा से सहायता दी, कपड़े, दवाई, सोना-चांदी तक दान में दिए। आतंकियों ने पर्यटकों से उनका मजहब पूछकर चुन-चुनकर उन पर गोलियां चलाईं। इस अमानवीय कृत्य में महिलाएं और बच्चे भी मारे गए। ये लोग किसी धार्मिक यात्रा पर नहीं, केवल भारत की सुंदरता देखने और शांति के लिए पहलगाम आए थे। इस हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। भारत सरकार और सुरक्षा बलों ने इस बर्बरता का जवाब सात मई को ऑपरेशन सिंदूर के रूप में दिया। 
ऑपरेशन सिंदूर के तहत सुरक्षाबलों ने आतंकियों के अड्डों को नष्ट किया, कई दुर्दांत आतंकवादियों को ढेर किया और घाटी में व्यापक शांति-संचालन अभियान शुरू किया। यह केवल एक जवाबी कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक क्षमता और नैतिक संकल्प का स्पष्ट संदेश था। यह ऑपरेशन न सिर्फ सैन्य पराक्रम का परिचायक था, बल्कि यह भारत की एकता, दृढ़ता और जवाबदेही का प्रतीक था। इसमें कोई नहीं पूछता कि सैनिक किस धर्म, जाति या राज्य से आता है।


 वे सब भारत माता के सपूत हैं, जो केवल एक लक्ष्य के लिए लड़ते हैं, देश की रक्षा। सेना का मनोबल तभी ऊंचा रहेगा जब उसे महसूस होगा कि देश का हर नागरिक, हर नेता, हर संस्था उसके पीछे है। भारत को भी अपने राष्ट्रवाद को और सशक्त बनाना होगा। यहां शिक्षा व्यवस्था में राष्ट्रीय चेतना को गहराई से समाहित करना होगा। यह जरूरी है कि हर नागरिक केवल अपने अधिकार नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों को भी गंभीरता से समझे। जब देश खतरे में हो, तो हमारी पहली और अंतिम पहचान केवल एक होनी चाहिए- हम भारतीय हैं।

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