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आओ चिंगारी भर दूं



आओ तुम्हारे रग रग में चिंगारी भर दूं,
शबनम से बदल तुझे शोला मैं कर दूं,
समय नहीं रहा अब चुपचाप सुनने का,
देख दुनिया को खुद भी कुछ गुनने का,
बदलाव कौन कब लाएगा,
दुनियादारी कौन किसे सिखाएगा,
जिनके पांव के नीचे आए हैं कंटक,
निकालना होगा अपने हाथों से उसे
फिर से नहीं जाना है राह भटक,
कर महसूस जो सहे हैं हमने जख्म,
उनके लिए कृत सहज होगा पर
हमारे लिए रहा है हद से ज्यादा सख्त,
सुन सकता है तो सुन क्या क्या सहे
बता प्रतिरोध करूं या फिर सब बिसर दूं,
आओ तुम्हारे रग रग में चिंगारी भर दूं।
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- राजेन्द्र लाहिरी, पामगढ़ छग।

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