....ताकि बची रहे धरती
- विजय गर्ग
महान दार्शनिक अरस्तू ने कहा है, परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यानी परिवर्तन शाश्वत है। समय के साथ किसी भी वस्तु, विषय और विचार में भिन्नता आती है और यह आनी भी चाहिए। तभी इसकी महत्ता है। हम अपने आसपास देखते हैं। महसूस करते हैं कि मौसम बदलता है। मनुष्य की स्थितियां बदलती हैं, जिससे जीवन-क्रम चलता रहता है। अगर हम बदलाव से मुंह चुराएंगे, तो हमारा विकास नहीं हो सकेगा। हमें इस सत्य को मानना पड़ेगा कि जीवन में खुशियों के लिए परिवर्तन बहुत जरूरी है। जिस पुराने तरीके से आज तक जो हम सोच रहे थे, उस तरीके से अगर हमें सफलता नहीं मिलती है तो उसे छोड़कर हमें नए तरीकों से सोचना भी पड़ता है। हम प्रकृति के इस नियम को जब भी मानने से इनकार करने लगते हैं, तब हम दुखी होते हैं, अवसाद से घिर जाते हैं। यह सर्व स्वीकृत सत्य है कि जब अच्छे दिन स्थायी नहीं रहते, तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे। जीवन में त्योहार भी इसलिए मनाए जाते हैं क्योंकि इससे कुछ सुखद अनुभव होते हैं ।
आजकल त्योहार जैसा जीवन रोज जिया जा सकता है। जैसे अच्छी तरह से तैयार होना, अपनी पसंद का भोजन करना आदि । इंसान अब हर दिन पसंद का काम कर सकता है। इसलिए अब हर दिन उसके लिए त्योहार के समान हो गया है, लेकिन इस तरह की जीवनशैली को पाने के लिए प्रकृति के कार्यों में मनुष्य ने व्यवधान पैदा करना शुरू किया। ऐसा करते हुए उसे भरोसा हो गया कि उसने प्रकृति को पूरी तरह पराजित कर दिया है। हमारा सारा तथाकथित विकास प्रकृति के दोहन से हो रहा है। कुदरत ने हमें बहुत कुछ दिया है, लेकिन संयमित रूप से इस्तेमाल करने के लिए, न कि अंधाधुंध रूप से बर्बाद करने के लिए।
आज हमारी इस करनी का फल भी हमारे सामने ही उपस्थित हो रहा है। अपने भयावह रूप में। आमतौर पर मार्च तक वसंत ऋतु मानी जाती है जब मौसम से सुहावने होने की संभावना रहती है, लेकिन जिस तरह से मार्च से ही गर्मी पड़ रही है, वह डराने वाली है, क्योंकि अभी गर्मी का मौसम बाकी है। पिछले साल गर्मियों में पारा चढ़ा हुआ था । अब इस साल क्या होगा, यह चिंता का विषय है। धरती पर वैश्विक तापमान जिस तरह से बढ़ रहा है, आने वाला समय चुनौतियों भरा हो सकता है। हर साल इस मसले पर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। छिट- पुट पेड़ लगाए जाते हैं। लेकिन नतीजा, वही ढाक के तीन पात रहता है । ऐसा इसलिए कि इन सबके लिए हम स्वयं ही जिम्मेवार हैं । समस्या की जड़ भी हम जानते हैं, लेकिन उसे खत्म करने का दृढ़ निश्चय किसी में नहीं। इसलिए आज भी समस्या जस की तस है।
वैश्विक तापमान के लिए मुख्य रूप से मानव गतिविधियां जिम्मेदार हैं। उद्योगीकरण, प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित और अंधाधुंध दोहन और बढ़ता प्रदूषण इसके प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा, कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत कोयला, पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधनों का जलना है । ये ग्रीनहाउस गैसों को बढ़ाते हैं, जिससे धरती का तापमान बढ़ता है। इससे बचने का एक प्रभावी तरीका पेड़ लगाना है । लेकिन आए दिन जंगलों की कटाई हो रही है। जबकि हम सब जानते हैं कि पेड़ कार्बन डाईआक्साइड को अवशोषित करते हैं और आक्सीजन देते हैं। जब जंगल काटे जाते हैं, तो यह गैस वातावरण में बनी रहती है, जिससे तापमान बढ़ता है। फिर बढ़ रहा उद्योगीकरण भी पर्यावरण को बुरी तरह से कुप्रभावित कर रहा है। फैक्टरियों और उद्योगों से निकलने वाली गैसें, जैसे कार्बन डाईआक्साइड, मीथेन और नाइट्रस आक्साइड ग्रीनहाउस प्रभाव को तेज करती हैं। साथ ही, खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से भी नाइट्रस आक्साइड निकलता है, जो वैश्विक तापमान को बढ़ाता है ।
आज मनुष्य अलग-अलग तरीकों से धरती को नुकसान पहुंचा रहा है, जिसमें प्लास्टिक का बढ़ता प्रदूषण भी एक है। प्लास्टिक कचरा नष्ट होने में सैकड़ों साल लेता है। इसे जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं, जो वातावरण को गर्म करती हैं। अगर इन्हें मिट्टी में दबा दिया जाए तो मिट्टी की उर्वरता घटती है। फिर बढ़ती गाड़ियां और हवाई जहाजों से निकले धुएं में मौजूद कार्बन डाई आक्साइड और अन्य गैसें ग्रीनहाउस प्रभाव को तेज कर रही हैं। हवा और जमीन का यह प्रदूषण अब नदियों और समुद्र को भी प्रदूषित कर रहा है। समुद्रों में तेल रिसाव और प्लास्टिक प्रदूषण से समुद्री जीवन प्रभावित होता है। समुद्रों की कार्बन सोखने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे वातावरण में तापमान बढ़ता है।
पीढ़ियों से चली आ रही प्राकृतिक सुविधाओं और पर्यावरण का उपभोग वर्तमान पीढ़ी जिस तरह से कर रही है, वह व्यवस्था आने वाली पीढ़ियों को भी उसी रूप में मिले, इस बात को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी हमारी है। ऐसा न हो कि हमको मिल रहा है तो सब खत्म कर दें और आगे जो आएंगे उनका वे जाने! आज संपोषित विकास को अपनाने की आवश्यकता है। इसका तात्पर्य ऐसे विकास से है जो विकास के साथ-साथ वन क्षेत्र, जैविक संसाधनों, चक्रीय व्यवस्था को उनके मूल रूप में बनाए रखे, ताकि भावी पीढ़ी को भी स्वच्छ पर्यावरण, स्वस्थ जीवन, स्वच्छ धरती और संसाधन मिलें । वन संपदा और जीव-जंतु संरक्षित रहें। वैश्विक तापमान को रोकने के लिए हमें स्वच्छ ऊर्जा यानी सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना होगा, वृक्षारोपण, ईंधन की बचत और टिकाऊ जीवनशैली अपनानी होगी । अगर अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, क्योंकि आज हमारे पास चीजों को ठीक करने का मौका है। अगर हम अभी भी नहीं संभले, तो यही समस्या संपूर्ण जीव जगत को लील लेगी ।
(सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब)
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