बंगाल में शांति बहाली
इलमा अज़ीम
सत्ता में काबिज रहने के लिए आम लोगों की जान-माल से किस हद तक खिलवाड़ किया जा सकता है, इसका मौजूदा उदाहरण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस की सरकार है। पश्चिम बंगाल देश का ऐसा अकेला राज्य है जहां वक्फ बोर्ड के विरोध में हिंसा हुई है।
वैसे देश के ज्यादातर राज्यों में इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन तक नहीं हुए। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई। दरअसल, टीएमसी ने प्रदेश में कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने वालों को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह सख्त कार्रवाई करके जवाब नहीं दिया। यही वजह है कि ऐसे अराजक तत्वों के हौसले पश्चिम बंगाल में बुलंद हैं।
पिछले वर्ष रामनवमी पर जुलूस के दौरान हिंसा भडक़ने से करीब दो दर्जन लोग घायल हो गए। इस मामले में भी पश्चिम बंगाल ही सबसे आगे रहा। यह राज्य हिंसा के लिए अभिशप्त हो गया है। कारण भी स्पष्ट है, सारा संघर्ष सत्ता प्राप्ति का है। बीते पांच दशकों में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा में करीब 30 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।
पिछले दो दशकों में सबसे ज्यादा मौतें सिंगुर और नंदीग्राम आंदोलन में हुईं। इस राज्य में अब बिना किसी चुनाव के भी राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर हमला आम बात हो गई है। पश्चिम बंगाल राजनीतिक और सांप्रदायिक हिंसा के लिए ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के लिए भी कुख्यात बन चुका है। जितनी बेशर्मी से भ्रष्टाचार और उस पर पर्दादारी इस राज्य में हुई है, उसकी मिसाल देश के दूसरे राज्यों में देखने को नहीं मिलती।
राजनीतिक क्षुद्र स्वार्थों के लिए यदि ऐसी ही प्रवृत्ति दूसरे राज्यों की सरकारों ने भी अपना ली तो इस तरह का रवैया देश के संघीय ढांचे को कमजोर करेगा। बेहतर होगा कि ऐसी क्षेत्रीय समस्याओं का मिल-बैठ कर कानून के दायरे में समाधान ढूंढा जाना चाहिए। इस राज्य में शांति बहाली पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
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