नई टैरिफ जंग में भारत कैसे उभरेगा?
राजीव त्यागी 
दो अप्रैल को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा देना और व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए मित्र और विरोधी दोनों तरह के देशों पर नए पारस्परिक टैरिफ (रेसिप्रोकल टैरिफ) लगाए हैं। भारत पर 26 फीसदी टैरिफ लगाया गया है। ट्रंप के नए टैरिफ ऐलान से दुनिया भर के बाजारों और शेयर बाजारों में हाहाकार मच गया है। यद्यपि भारत में सरकार ने संसद में ट्रंप की नई टैरिफ नीति के मद्देनजर घरेलू उद्योगों के संरक्षण की बात कही है, लेकिन अब देश के उद्योग जगत के द्वारा टैरिफ संरक्षण की बजाय वैश्विक प्रतिस्पर्धा व अनुसंधान व विकास (आरएंडडी) पर ध्यान दिया जाना होगा।
गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2024 में भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 18 फीसदी रही, जो करीब 77.5 अरब डॉलर थी, निर्यात की ऐसी ऊंचाई अमेरिका को भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनाती है। अतएव ट्रंप के टैरिफ से भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। इनमें टेक्सटाइल और परिधान, ऑटोमोबाइल पाट्र्स, रत्न और आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स, कृषि उत्पाद शामिल हैं। लेकिन टैरिफ के प्रभाव से अन्य देशों की तुलना में भारत कम प्रभावित होगा। एसबीआई रिसर्च के अनुसार भारत के कुल निर्यात पर प्रभाव 3.3.5 प्रतिशत तक सीमित रह सकता है। इसमें कोई दोमत नहीं हैं कि ट्रंप के टैरिफ जंग में भारत के लिए घरेलू मांग, घरेलू आर्थिक घटक नए व्यापार समझौते और रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन व रिकॉर्ड खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्यात कारगर हथियार दिखाई दे रहे हैं।

नि:संदेह देश में बढ़ते मध्यम वर्ग के कारण खपत भारत में दिखाई दे रही है। देश के उपभोक्ता बाजार को देश का मध्यम वर्ग नई आर्थिक ताकत दे रहा है। देश में आर्थिक सुधारों के साथ ऊंची विकास दर और शहरीकरण की ऊंची वृद्धि दर के बलबूते भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है। हाल ही में प्रकाशित दि राइज ऑफ मिडल क्लास इंडिया नामक डॉक्यूमेंट के मुताबिक भारत के मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या तेजी से बढक़र वर्ष 2021 में लगभग 43 करोड़ हो गई है और वर्ष 2047 तक यह संख्या बढक़र 102 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इस वर्ग को 5 लाख से 30 लाख रुपए की वार्षिक आय वाले परिवारों के रूप में परिभाषित किया गया है। निश्चित रूप से भारत के मध्यम वर्ग की मुठ्ठियों में बढ़ती क्रय शक्ति और जेन जी एवं मिलेनियल्स की आंखों में उपभोग और खुशहाली के जो सपने दिखाई दे रहे हैं, उनके कारण जहां दुनिया के कई देश भारत से आर्थिक और कारोबारी संबंध बढ़ाने के लिए तत्पर हैं, वहीं दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने नामी ब्रांडों के साथ भारत के बहुआयामी उपभोक्ता बाजार में नई रणनीतियों के साथ दस्तक दे रही हैं। निश्चित रूप से भारत डोनॉल्ड ट्रंप की टैरिफ मार से बचने और वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए नए वैश्विक व्यापार समीकरणों के साथ आगे बढ़ रहा है।


हाल ही में 26 से 29 मार्च तक नई दिल्ली में भारत और अमेरिका के वरिष्ठ व्यापार प्रतिनिधियों ने दोनों देशों के बीच 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंचाने के प्रस्तावित व्यापार समझौते की रूपरेखा और संदर्भ की शर्तों को अंतिम रूप देने के लिए सार्थक वार्ता की है। जहां एक ओर सरकार तेजी से मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है। अब जहां नॉर्वे, हंगरी, ग्वाटेमाला, पेरू, चिली के साथ भी शीघ्र ही व्यापार समझौते की बातचीत शुरू की जानी चाहिए, वहीं अब भारत के द्वारा ओमान, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, इजरायल, भारत गल्फ कंट्रीज काउंसिल के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप देने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ा जाना होगा। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जिस तरह पांच साल पहले कोरोना से जंग में देश के खाद्यान्न भंडार देश के हथियार बन गए थे, उसी प्रकार इस समय अमेरिका के टैरिफ की मार के साथ-साथ शुल्क व गैर शुल्क बाधाओं को कम करने से होने वाली किसी भी प्रकार की हानि को कम करने के मद्देनजर देश में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन और रिकॉर्ड खाद्य प्रसंस्करण उत्पाद एक मजबूत हथियार दिखाई दे रहे हैं।



चूंकि इस वर्ष 2025 में वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न उत्पादन में कमी के आकलन प्रस्तुत हुए हैं, ऐसे में ट्रंप के टैरिफ से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में होने वाली 3 से 3.5 फीसदी हानि की बहुत कुछ भरपाई खाद्यान्न और कृषि प्रसंस्करण के निर्यात से भी की जा सकेगी। निश्चित रूप से देश में बढ़ता खाद्यान्न उत्पादन और मजबूत होती ग्रामीण आर्थिकी देश की आर्थिक शक्ति बन गई है। नि:संदेह ऐसे मजबूत आर्थिक आधार के बावजूद हमें ट्रंप की टैरिफ चुनौतियों के साथ वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार नीति में अनिश्चितता, अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिंसों के दाम और वित्तीय बाजार में अस्थिरता तथा विदेश में व्याप्त आर्थिक निराशावाद के प्रति भी सतर्क रहना होगा। हमें इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि खाद्य कीमतों में तेज गिरावट और कम मुख्य मुद्रास्फीति के कारण नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश बनती है, किन्तु घटती महंगाई और बढ़ते खाद्य उत्पादन को देखकर सरकार को कृषि क्षेत्र में लंबे समय से पसरी हुई चुनौतियों से नजर हटाने से बचना होगा। निश्चित रूप से ट्रंप के टैरिफ से इस समय देश की आर्थिकी को होने वाले किसी भी नुकसान की भरपाई के साथ भविष्य में भी अन्य किसी भी वैश्विक आर्थिक चुनौती का मुकाबला करने के लिए सरकार के द्वारा कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संवारने की डगर पर लगातार तेजी से आगे बढऩा होगा।
अब नई टैरिफ चुनौतियों के बीच भारत का लक्ष्य अनिवार्य रूप से निर्यात का विस्तार ‘पारंपरिक बाजार’ से बाहर बढ़ाने का होना चाहिए। भारत ऐसे क्षेत्रों में निर्यात की संभावनाएं तलाशे जहां उसको प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल है। पारंपरिक साझेदारों से परे व्यापार का विविधीकरण हो। इस क्रम में गैर पारंपरिक बाजार जैसे लेटिन अमेरिका, अफ्रीका और ओशियानिया में निर्यात की संभावनाएं खोजना महत्त्वपूर्ण है। निर्यात संभावना वाले उत्पादों को चिह्नित करने और इन उत्पादों की अधिकतम मांग वाले देशों में निर्यात की रणनीति को बेहतर बनाने की जरूरत पर जोर दिया जाना होगा। इन सबके साथ-साथ अब देश के उद्योग जगत को टैरिफ से संरक्षण के बजाय वैश्विक प्रतिस्पर्धा और अनुसंधान व संसाधन विकास (आरएंडडी) पर निवेश बढ़ाने की जरूरत पर ध्यान देना होगा।



नि:संदेह भारत के विनिर्माण क्षेत्र को संरक्षण के लिए टैरिफ पर निर्भर रहने के बजाय प्रतिस्पर्धा और कारोबार बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। भारत ने ऐतिहासिक रूप से घरेलू निवेशकों के संरक्षण के लिए ऊंचे शुल्क बनाए रखे हैं। 1991 में उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ाने के लिए उदारीकरण के लाभ मिले हैं। चूंकि टैरिफ प्रतिस्पर्धा से जुड़े हैं, अगर हम टैरिफ की आड़ में रहेंगे तो प्रतिस्पर्धी नहीं बन पाएंगे। हम उम्मीद करें कि भारत 2 अप्रैल को अमेरिका के द्वारा भारत पर लगाए गए 26 फीसदी टैरिफ की चुनौती का मुकाबला करने में सफल होगा। भारत की बढ़ती घरेलू मांग, नए व्यापार समझौते, रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन, बढ़ता खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और बढ़ता कृषि व खाद्य प्रसंस्करण निर्यात और घरेलू आर्थिक घटक भारत के लिए मजबूत और असरकारक आर्थिक हथियार के रूप में उपयोगिता देते हुए दिखाई देंगे। साथ ही उद्योग-कारोबार के द्वारा वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ाए जाने पर भारत टैरिफ की चुनौतियों के बीच वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौकों को भी मुठ्ठी में लेते हुए दिखाई देगा।
 लेखक एक स्वत्रंत पत्रकार 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts