पेंशन की लड़ाई: कर्मचारियों का हक़ या सरकारी बोझ?

-डॉ. सत्यवान सौरभ

भारत में पुरानी पेंशन योजना की बहाली एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक मुद्दा बन चुका है। यह केवल सरकारी कर्मचारियों का ही नहीं, बल्कि देश की वित्तीय नीति और सामाजिक सुरक्षा का भी विषय है। 2004 में पुरानी पेंशन योजना को समाप्त कर नई पेंशन योजना लागू की गई, लेकिन बीते कुछ वर्षों में ओपीएस की बहाली को लेकर कर्मचारियों में व्यापक आंदोलन और राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है।
कल्पना कीजिए कि आपकी नौकरी के बाद भी आपको हर महीने एक निश्चित आय मिलती रहे, जैसे एक जादुई खजाना जो कभी खाली न हो! यही थी ओपीएस एक डिफाइंड बेनिफिट पेंशन योजना, जिसमें सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद अपने अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में प्राप्त करते थे। इसमें महंगाई भत्ता भी जोड़ा जाता था, जिससे पेंशन समय-समय पर बढ़ती रहती थी। इस योजना के तहत सरकार पेंशन की पूरी गारंटी देती थी और कर्मचारी को कोई योगदान नहीं देना पड़ता था।
2004 में केंद्र सरकार ने ओपीएस को समाप्त कर एनपीएस लागू किया, जो एक डिफाइंड कंट्रीब्यूशन योजना है। इसमें कर्मचारियों को अपनी सैलरी का एक निश्चित हिस्सा पेंशन फंड में निवेश करना होता है, जिसे बाजार आधारित रिटर्न पर निर्भर रहना पड़ता है। अब कल्पना कीजिए कि आपकी पेंशन स्टॉक मार्केट की लहरों पर तैर रही हो – कभी ऊपर, कभी नीचे! यही कारण है कि एनपीएस को लेकर कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना बनी रहती है, क्योंकि इसमें कोई गारंटीशुदा पेंशन नहीं होती।
दुनिया के कई देशों में पेंशन प्रणाली को लेकर अलग-अलग मॉडल अपनाए गए हैं। कुछ देशों ने सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस जैसी योजनाएं जारी रखी हैं, जबकि अन्य देशों ने निजी निवेश आधारित प्रणाली अपनाई है। अमेरिका में सोशल सिक्योरिटी सिस्टम के तहत सरकारी और निजी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन मिलती है। हालांकि, इसमें सरकारी योगदान सीमित होता है और व्यक्तिगत निवेश भी आवश्यक होता है। ब्रिटेन में स्टेट पेंशन योजना लागू है, जिसमें सरकार न्यूनतम पेंशन सुनिश्चित करती है, लेकिन अतिरिक्त पेंशन के लिए निजी योजनाओं को प्रोत्साहित किया जाता है।
जर्मनी में सार्वजनिक पेंशन प्रणाली काफी मजबूत है, जहाँ कर्मचारी और नियोक्ता दोनों अनिवार्य योगदान देते हैं, जिससे सुनिश्चित पेंशन मिलती है। फ्रांस में भी डिफाइंड बेनिफिट पेंशन प्रणाली मौजूद है, जिसमें सरकार प्रमुख भूमिका निभाती है और कर्मचारियों को स्थायी पेंशन प्रदान की जाती है। यहाँ सुपर एशन फंड प्रणाली लागू है, जिसमें कर्मचारी और नियोक्ता दोनों नियमित निवेश करते हैं, और रिटायरमेंट के बाद यह राशि पेंशन के रूप में दी जाती है।


सांसदों और विधायकों को पेंशन क्यों?
एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी उठता है कि जब सरकारी कर्मचारियों की पेंशन समाप्त कर दी गई, तो सांसदों और विधायकों को आज भी पेंशन क्यों दी जाती है? क्या सांसद और विधायक अपने कार्यकाल के दौरान नीतिगत निर्णय लेते हैं, जिसके लिए उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं कई राज्यों में विधायकों को एक कार्यकाल के बाद ही आजीवन पेंशन मिलती है, जो सामान्य सरकारी कर्मचारियों के नियमों से अलग है। कई पूर्व सांसद और विधायक पहले से ही सरकारी सेवाओं में कार्यरत रहे होते हैं और उन्हें दोहरी पेंशन मिलती है। कई कर्मचारी संगठनों का तर्क है कि जब सरकारी कर्मचारियों की पेंशन समाप्त की गई, तो जनप्रतिनिधियों को भी उसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए। सरकारी खजाने पर सांसदों और विधायकों की पेंशन का बोझ बढ़ता जा रहा है, जिससे इसे समाप्त करने की माँग तेज हो रही है।
ओपीएस बहाली से संभावित लाभ, वित्तीय प्रभाव और चुनौतियाँ
ओपीएस की बहाली से सरकारी वित्तीय बोझ बढ़ सकता है। सरकार को अपने बजट का बड़ा हिस्सा पेंशन भुगतान के लिए आवंटित करना होगा, जिससे अन्य विकास योजनाओं पर असर पड़ सकता है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ओपीएस लागू करने से दीर्घकालिक आर्थिक असंतुलन हो सकता है। एक स्थायी पेंशन योजना से कर्मचारियों को सुरक्षा मिलेगी और वे अपने भविष्य को लेकर निश्चिंत रहेंगे। सरकारी नौकरियों की ओर लोगों का रुझान बढ़ेगा, जिससे योग्य और प्रतिभाशाली लोग प्रशासनिक सेवाओं में शामिल होंगे। जब सेवानिवृत्त कर्मचारियों को सुनिश्चित आय मिलेगी, तो वे अपनी क्रय शक्ति बनाए रखेंगे, जिससे बाज़ार में स्थिरता बनी रहेगी। OPS से कर्मचारियों को वृद्धावस्था में गरिमा के साथ जीवनयापन करने का अवसर मिलता है।


निष्कर्ष
पुरानी पेंशन बहाली केवल एक कर्मचारी कल्याण नीति नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है। सरकार को संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए ऐसी नीति बनानी होगी, जो कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करे और साथ ही सरकारी वित्तीय संतुलन भी बनाए रखे। ओपीएस बहाली का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार इस मुद्दे का समाधान किस प्रकार निकालती है और क्या कोई मध्य मार्ग संभव है।
(आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट)

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