जल स्रोतों का प्रबंधन जरूरी
इलमा अज़ीम
यदि हम पुराने जल स्रोतों की स्थिति सुधारें और जल का सही प्रबंधन करें, तो पानी की कमी का समाधान किया जा सकता है। तालाबों को नष्ट करने का खामियाजा समाज ने किस तरह भुगता, इसकी सबसे बड़ी मिसाल बेंगलुरु है। यहां समाज, अदालत और सरकार सभी जमीन माफिया के सामने असहाय नजर आते हैं।
यदि हम शहर की जल स्थिति पर नजर डालें तो यह अस्वाभाविक-सा लगता है कि वहां जरूरत का महज 80 प्रतिशत जल ही आपूर्ति हो पा रहा है। एक करोड़ 40 लाख की आबादी वाले महानगर में हर कदम पर जल स्रोत हैं। लेकिन अंधाधुंध शहरीकरण और उसके लालच में पारंपरिक जल स्रोतों और हरियाली का अगर यही हाल रहा, तो बेंगलुरु को केपटाउन बनने से कोई नहीं रोक सकता। देश के 10 में से सात महानगरों में भूजल स्तर अब खतरनाक स्तर पर है और अब उसे और उलीचा नहीं जा सकता।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की एक रिपोर्ट चेता चुकी है कि जब भारत आजादी के सौ साल मनाएगा तब 30 शहर जलहीन की सीमा तक सूख जाएंगे। इनमें महानगर और राजधानियां तो हैं ही, इंदौर, बठिंडा और कोयंबटूर जैसे शहर भी हैं। यह कड़वा सच है कि जलवायु परिवर्तन के चलते चरम मौसम ने जल-चक्र को गड़बड़ाया है, लेकिन इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ तेज पलायन, अनियोजित शहरीकरण, कम बरसात, अधिक गर्मी, उथले जल स्रोतों में अधिक वाष्पीकरण और जल का खराब प्रबंधन– ये सभी ऐसे कारण हैं जो जल संकट के लिए प्रकृति से अधिक इंसान को जिम्मेदार ठहराते हैं।
हमारी परंपरा पानी की हर बूंद को सहेजने की रही है, जिसमें पारंपरिक जल स्रोतों जैसे तालाब, कुएं और बावड़ियों का संरक्षण शामिल है। आज, अनियोजित शहरीकरण और जल प्रबंधन की कमी के कारण जल संकट गहरा गया है। प्रकृति ने पानी को एक चक्र के रूप में दिया है, और इस चक्र को बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। यदि हम पुराने जल स्रोतों की स्थिति सुधारें और जल का सही प्रबंधन करें, तो पानी की कमी का समाधान किया जा सकता है।
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