आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से सही हो रहे हैं कैंसर के मरीज

जिस बीमारी के लिए चिकित्सकों ने हाथ खडे़ किउ उन मरीजों ने बताया कैसे उपाय बची जान 

मेरठ। कैंसर का वर्तमान समय में चल रहा अंग्रेजी उपचार मात्र एक विकल्प नहीं है, बल्कि प्राकृतिक तरीकों से भी कई रोगी लगातार इस गंभीर और जानलेवा बीमारी को हरा रहे हैं। भारत में आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा के सबसे बड़े हॉस्पिटल ग्रुप हिम्स  (हॉस्पिटल एंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड मेडिकल साइंसेज) में हजारों रोगी कैंसर का उपचार प्राप्त करके लगातार लाभान्वित हो रहे हैं।

 रविवार को जानी मेरठ दिल्ली कांवड़ मार्ग पर अस्पताल के प्रांगड़ में देशभर के विभिन्न मीडिया से जुड़े लोगों के सामने कई ऐसे रोगियों ने अपनी कैंसर से जुड़ी समस्या में प्राकृतिक उपचारों से मिले लाभ के विषय में विस्तार से अपनी प्रेरणादायक जानकारियां साझा की, इनमें से अधिकांश रोगियों को वर्तमान समय में चल रही पारंपरिक चिकित्सा में लाइलाज घोषित कर दिया गया था, लेकिन अस्पताल द्वारा दी गयी  प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाकर उन्होंने न केवल कैंसर को मात दी, बल्कि बिना किसी साइड इफेक्ट के पूरी तरह स्वस्थ हो गए। इस कार्यक्रम में कई मरीजों ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि उन्होंने कीमोथेरेपी और रेडिएशन जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के बजाय अस्पताल  द्वारा सुझाई गई चिकित्सा पद्धतियों को अपनाया और सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए। इनमें फीवर थेरेपी, डीआईपी डाइट, ज़ीरो-वोल्ट थेरेपी, पंचकर्म थेरेपी, 'टाइम ऐज़ मेडिसिन, आयुर्वेद और होम्योपैथी जैसी विधियों को शामिल किया गया था। मरीजों का कहना था कि इन उपचारों के माध्यम से उनका शरीर पूरी तरह स्वस्थ्य हो गया और उन्हें किसी भी प्रकार के हानिकारक दुष्प्रभावों का सामना नहीं करना पड़ा। 

डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी और आचार्य मनीष ने  समग्र चिकित्सा पद्धतियों पर विस्तार से चर्चा की और इस बात पर जोर दिया कि कैंसर जैसी जटिल बीमारी के इलाज के लिए पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। आचार्य मनीष ने कहा कि पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली मुख्य रूप से लक्षणों को दबाने पर केंद्रित होती है, जबकि अस्पताल  की चिकित्सा प्रणाली शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने पर आधारित है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि कैंसर का उपचार उसकी जड़ से किया जाना चाहिए, न कि केवल उन लक्षणों को दबाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जिनके कारण बीमारी और गंभीर होती जाती है। 

"रैबिट-टॉर्टाइज़ मॉडल फॉर कैंसर क्योर" का विमोचन

इस मौके पर डॉ. बिस्वरूप रॉय चौधरी ने अपनी नई पुस्तक "रैबिट-टॉर्टाइज़ मॉडल फॉर कैंसर क्योर" का विमोचन भी किया। उन्होंने अपने शोध और वैज्ञानिक प्रमाणों का हवाला देते हुए कहा कि कीमोथेरेपी और रेडिएशन कई मामलों में कैंसर को ठीक करने के बजाय उसे और बढ़ा सकते हैं। उन्होंने इस धारणा को खारिज किया कि कैंसर मौत की सजा के समान है और कहा कि मेडिकल इंडस्ट्री ने इस बीमारी को भय का प्रतीक बना दिया है, जबकि वास्तविकता यह है कि प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। उन्होंने मरीजों के अनुभवों को इसका सबसे बड़ा प्रमाण बताया और कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा न केवल प्रभावी है, बल्कि यह बिना किसी साइड इफेक्ट के स्थायी रूप से स्वास्थ्य को पुनस्र्थापित करने में भी मदद करती है। इस कार्यक्रम में HIIMS की चिकित्सा पद्धति को अपनाकर कैंसर को हराने वाले रोगियों ने अपनी जर्नी साझा की।

डीआईपी डाइट, फीवर थेरेपी और ज़ीरो-वोल्ट थेरेपी को अपनाया 

ओडिशा की निशामणि बेहरा की आंख के नीचे के हिस्से की बायोप्सी कराई गई, जिसमें कैंसर का पता चला, इसके बाद चेहरे और आंख के करीब के पूरे हिस्से में सड़न और कीड़े लगने लगे व समस्या बढ़कर आंख तक फैल गई, अंग्रेजी उपचार में उन्हें सर्जरी करके आंख निकालने के बारे में कह दिया गया था व कीमोथेरेपी आदि उपचारों को तत्काल करवाने को कहा गया, लेकिन उन्होंने सर्जरी व सभी अंग्रेजी उपचार को नकारते हुए अस्पताल की डीआईपी डाइट, फीवर थेरेपी और ज़ीरो-वोल्ट थेरेपी को अपनाया और पूरी तरह ठीक हो गईं।

  दुबई की प्रतिभा सामल, जिन्हें ओवरी कैंसर था, ने पंचकर्म और आयुर्वेदिक उपचारों को अपनाया और सफलतापूर्वक इस बीमारी को मात दी। हरियाणा की चंदरवती, जिन्होंने फेफड़ों के कैंसर से लड़ाई लड़ी ने अस्पताल द्वारा सुझाई गई ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ और हर्बल थेरेपी को अपनाकर स्वयं को पूरी तरह स्वस्थ किया।चंडीगढ़ की अंबिका पुरी, जिन्हें ल्यूकेमिया था, ने प्लांट-बेस्ड डाइट और हर्बल डिटॉक्स थेरेपी से कैंसर को पूरी तरह समाप्त कर दिया।

आयोजन एक महत्वपूर्ण पहल

 हिम्स  चिकित्सा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य शरीर को विषमुक्त करना, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना और सेलुलर हेल्थ को पुनस्र्थापित करना है। संस्थान पंचकर्म, DIP डाइट, ज़ीरो-वोल्ट थेरेपी, योग और सनलाइट थेरेपी जैसी प्राकृतिक तकनीकों का उपयोग करता है। इस कार्यक्रम में एक अनूठी तुलना भी प्रस्तुत की गई, जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस के स्वतंत्रता संग्राम की तुलना चिकित्सा क्रांति से की गई। वक्ताओं ने कहा कि जिस तरह नेताजी ने विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष किया, उसी तरह HIIMS पारंपरिक जहरीले उपचारों के प्रभुत्व को चुनौती दे रहा है। 

कैंसर कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक मेटाबोलिक विकार है

 कार्यक्रम के अंत में यह संदेश दिया गया कि कैंसर कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक मेटाबोलिक विकार है, जिसे प्राकृतिक चिकित्सा से पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। यह आयोजन एक महत्वपूर्ण पहल थी, जो कैंसर मरीजों को नई आशा और स्वास्थ्य के प्रति एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था।

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