पाकिस्तान के अस्तित्व का प्रश्न

- कुलदीप चंद अग्निहोत्री
तीन-चार दिन पहले पाकिस्तान सरकार ने सार्वजनिक छुट्टी की थी। सरकार का कहना है कि पाकिस्तान के लोगों को कश्मीर के साथ एकजुटता का प्रदर्शन करना है जो शहबाज शरीफ के अनुसार पाकिस्तान में शामिल होने के लिए तड़प रहे हैं, लेकिन भारत सरकार उन्हें जबरदस्ती भारत में रखे हुए है। जब पाकिस्तान सरकार पाकिस्तान के लोगों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही थी कि कश्मीरी पाकिस्तान में मिलने के लिए छटपटा रहे हैं, उन्हीं दिनों पाकिस्तान में रहने वाले बलोच और पश्तून पाकिस्तान से अलग होने की कोशिश में मशगूल थे। बलोचिस्तान के लोगों ने इस काम के लिए बीएलए यानी बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी बना रखी है। इसी प्रकार पश्तूनों ने पाकिस्तान से निकलने के लिए टीटीपी यानी तहरीके तालिबान पाकिस्तान का गठन किया हुआ है। ये दोनों संगठन अपने स्वभाव और प्रकृति के अनुरूप ही अपना मुकाम हासिल करने के लिए हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। बलोचों को यह अंदेशा हो गया है कि पाकिस्तान सरकार बलोचिस्तान को परोक्ष रूप से चीन के हवाले करने जा रही है।
दरअसल इस्लामाबाद ने बलूचिस्तान में गवादर बंदरगाह एक प्रकार से चीन के हवाले की हुई है। इसलिए उस इलाके में बलोच कम और चीनी ज्यादा दिखाई देने लगे हैं। ये चीनी सैनिक और चीनी इंजीनियर इत्यादि बलोचों से तिरस्कार से बात करते हैं। बलोच लिबरेशन आर्मी समय-स्थान देखकर पाकिस्तानी सेना पर हमला करती रहती है। लेकिन जिन दिनों पाकिस्तान कश्मीरियों को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहा था, उन्हीं दिनों बलोच नौजवान कलात में घात लगा कर पाकिस्तानी सेना के लोगों का इंतजार कर रहे थे। घात लगा कर किए इस हमले में पाक सेना के 18 सैनिक तो मौके पर ही मारे गए, यह सूचना है।


बहुत से सैनिक घायल भी हुए। इसके दूसरे दिन ही पश्तूनों के सूबे खैबर पख्तूनखवा में बलूचिस्तान के चार सरकारी कर्मचारियों की डेरा ईसमाईल खान में हत्या कर दी गई। यह माना जा रहा है कि यह टीटीपी का कारनामा है। पश्तून और बलोचों का गुस्सा पंजाबियों के खिलाफ है। पाकिस्तान में बलोच, सिंधी और पश्तून यह मान कर चलते हैं कि पाकिस्तान का अर्थ असल मायने में पंजाबी जाटों, राजपूतों और सैयदों का देश है। इनके देश में बाकी बिरादरियां मसलन सिंधी, बलोच और पश्तून दोयम दर्जे के नागरिक ही हैं। सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनखवा के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पंजाब के लोग करते हैं और बाकी बिरादरियों का पंजाबियों द्वारा शोषण किया जाता है। सिंधियों का ‘जिए सिंध’ अहिंसक है, लेकिन बलोचों और पश्तूनों का आंदोलन उनकी परंपरा के अनुसार ‘बंदूक का आंदोलन’ है। पहले पहल बीएलए और टीटीपी अलग-अलग आंदोलन चलाते थे। पाकिस्तान सरकार को शक है कि पिछले कुछ समय से ये दोनों आपसी तालमेल बढ़ा रहे हैं और आपसी सहयोग से ही निशाना चुनते हैं और उसे अंजाम देते हैं। पाकिस्तान की चिंता का एक दूसरा कारण भी है। खैबर पख्तूनखवा (केपी) के पश्तून लड़ाकों को अफगानिस्तान में तीन साल पहले बनी पश्तूनों की सरकार भी मदद कर रही है।
पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करके काबुल को डराने और धमकाने की कोशिश की। लेकिन लम्बे अरसे तक रूस और अमेरिका की फौजों से लड़ते लड़ते पश्तून इस स्ट्राइक से और भी उग्र हो गए और उन्होंने पाकिस्तान के भीतर घुस कर पाक सरकार को चुनौती दी। अकेले बलोचिस्तान में ही पिछले एक महीने में बलोच नौजवानों ने 24 बार अलग अलग स्थानों पर पाकिस्तानी सेना की टुकडिय़ों पर हमले किए जिनमें ग्यारह पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। जहां तक हथियारों का प्रश्न है, कहा जाता है कि काबुल छोड़ते समय अमेरिकी सेना हथियारों के जो जखीरे छोड़ गई थी, उसका कुछ हिस्सा टीटीपी के हाथ भी लग गया है। अब प्रश्न उठता है कि जिस पाकिस्तान में पंजाबी जाटों, सैयदों को छोड़ कर शेष बचे सिंधी, बलोच और पश्तून भी रहना नहीं चाहते, वहां भला कश्मीरी क्या करने जाएगा? इतना ही नहीं, वहां से निकलने के लिए बलोच और पश्तून तो बंदूक लेकर पाकिस्तानी सेना से लगातार लड़ रहे हैं। वहां कश्मीरी की क्या हैसियत होगी? लेकिन पाकिस्तान की सरकार, जिसको बलोच और पश्तून आम तौर पर पाकिस्तान की सरकार नहीं कहते बल्कि पंजाबियों और सैयदों की सरकार ही कहते हैं, कश्मीरियों को पाकिस्तान में आने के लिए निमंत्रण दे रही है।
अब इसकी चर्चा कश्मीर के उस हिस्से में भी होने लगी है, जो 1947 से ही पाकिस्तान के कब्जे में बना हुआ है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण गिलगित और बलतीस्तान ही हैं। बलतीस्तान का एक हिस्सा कारगिल को 1947 में ही भारतीय सेना ने छुड़ा लिया था, लेकिन उसका शेष विशाल हिस्सा पाकिस्तान सरकार के कब्जे में ही रहा। पाकिस्तानी सेना ने 1999 में कारगिल पर एक बार फिर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। गिलगित में से चीन सरकार सडक़ बना रही है, इसलिए वहां चीनी सैनिकों एवं अन्य चीनी कर्मियों का जमावड़ा बना रहता है। गिलगित के दरद और बलतीस्तान के बलती पाकिस्तान सरकार द्वारा किए जा रहे सौतेले व्यवहार से त्रस्त होकर पिछले कुछ वर्षों से संगठित होने लगे हैं, ऐसी सूचना है।


वे भी पाकिस्तान सरकार के खिलाफ किसी न किसी रूप में लामबंद होने लगे हैं। पाकिस्तान सरकार इन इलाकों की किसी न किसी तरह पहचान समाप्त करने की कोशिश में लगी रहती है। उसने हजारा और चित्राल को तो केपी में ही मिला दिया है। अब बलती और दरद, पाकिस्तान सरकार से प्रश्न करने लगे हैं कि हम पाकिस्तान में रहते हैं, उसके बावजूद हमें बेगानों की तरह देखा ही नहीं जाता बल्कि परोक्ष रूप से पंजाबी और सैयद ही हम पर राज करते हैं। बलती और दरद भाषाओं को अकादमिक जगत और प्रशासन में से दूध की मक्खी की तरह निकाल दिया गया है। यही कारण है कि अब पाकिस्तान में पंजाबियों और सैयदों को छोड़ कर बाकी बिरादरियों में चर्चा का विषय यह बनता जा रहा है कि शासन पर कब्जा जमा कर बैठे सिंडीकेट से देश के भीतर के ही बलोच और पश्तून तो संभाले नहीं जाते। वे पंजाबियों और सैयदों के व्यवहार से तंग आकर बंदूक उठा रहे हैं और सरकार कश्मीरियों को झांसा देकर अपने जाल में फंसाना चाहती है।
यही कारण है कि अब कश्मीर में चर्चा का विषय पाकिस्तान में बलतियों, सिन्धियों, बलोचों, दरदों और पश्तूनों की हालत बना हुआ है। जो कश्मीरी नौजवान सैयदों के झांसे में आकर पाकिस्तान चले भी गए थे, वे भी निराश होकर वापस आने के प्रयास करने लगे हैं। ताज्जुब है कि पाकिस्तान वास्तव में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन उसके साथ-साथ कश्मीरियों को भी पाकिस्तान में आने का निमंत्रण दे रहा है।

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