शिक्षा में दूर हो बाधा
इलमा अजीम
ग्लोबल वार्मिंग से जहां सामान्य जनजीवन बाधित है, वहीं खेती किसानी पर भी नया संकट मंडरा रहा है। लेकिन अब ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ पत्रिका में प्रकाशित वह रिपोर्ट चौंकाती है, जिसमें खुलासा किया गया है कि भारत में करीब साढ़े पांच करोड़ बच्चों की शिक्षा हीटवेव से बाधित हुई है। यह संकट यूं तो पूरी दुनिया में है लेकिन दक्षिण एशिया के अन्य देशों के मुकाबले दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाले भारत में इसका ज्यादा प्रभाव देखा गया है।
रिपोर्ट दावा करती है कि वर्ष 2024 में लू के कारण भारत में शिक्षा व्यवस्था पर खासा प्रतिकूल असर पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘लर्निंग इंटरप्टेड : ग्लोबल स्नैपशॉट ऑफ क्लाइमेट-रिलेटेड स्कूल डिसरप्शंस इन 2024’ में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। उल्लेखनीय है कि अब तक कृषि व मौसम के चक्र पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के अध्ययन निष्कर्ष तो सामने आए, लेकिन बच्चों के प्रति कोई ऐसा संवेदनशील अध्ययन सामने नहीं आया था।
जिसने जहां एक ओर अभिभावकों की चिंता बढ़ा दी, वहीं सरकार पर दबाव बनाया कि वह बच्चों व शिक्षा पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर को कम करने के लिये कारगर नीतियां यथाशीघ्र बनाये। निस्संदेह, यह अध्ययन देश के नीति-नियंताओं को चेताता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बच्चों को बचाने के लिये शिक्षा ही नहीं स्वास्थ्य आदि अन्य क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर काम करने की जरूरत है। शिक्षाविदों के साथ ही चिकित्सा बिरादरी के लोगों को भी इस ज्वलंत मुद्दे पर मंथन करने की जरूरत है क्योंकि अध्ययन में वर्ष 2050 तक बच्चों पर गर्म हवाओं का असर आठ गुना तक बढ़ने की आशंका है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग संकट से बच्चों की शिक्षा बाधित होने से उनके भविष्य पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। लू की गर्म लहरों के बीच छोटे बच्चों का स्कूल जाना संभव नहीं हो पाता। अभिभावक भी पढ़ाई की तुलना में उनके जीवन को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे में समय रहते स्कूलों के समय निर्धारण में परिवर्तन और बढ़ती गर्मी से जुड़ी सावधानियों के प्रति जागरूकता बढ़ाकर इस संकट का मुकाबला किया जा सकता है।
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