गांवों में गरीबी घटने का परिदृश्य
- डा. जयंती लाल भंडारी
इन दिनों प्रकाशित हो रही भारत में गरीबी से संबंधित विभिन्न आर्थिक शोध अध्ययन रिपोर्टों में यह तथ्य रेखांकित हो रहा है कि भारत में शहरों की तुलना में गांवों में गरीबी तेजी से घट रही है और आमदनी व क्रय शक्ति में भी तेज वृद्धि हो रही है। हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) रिसर्च के द्वारा गरीबी पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्य रूप से गरीबों को सीधे, लाभान्वित करने वाले सरकारी सहायता कार्यक्रमों के सकारात्मक प्रभावों और विकास के कारण गरीबी में कमी आई है। गरीबी में कमी शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक तेजी से हुई है। जहां वर्ष 2011-12 में ग्रामीण गरीबी 25.7 प्रतिशत और शहरी गरीबी 13.7 प्रतिशत थी, वहीं वर्ष 2023-24 में ग्रामीण गरीबी घटकर 4.86 प्रतिशत और शहरी गरीबी घटकर 4.09 प्रतिशत पर आ गई।
इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 14 साल में आमदनी बढऩे से जहां शहरों में हर माह प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च (एमपीसीई) 3.5 गुना हो गया, वहीं यह ग्रामीण इलाकों में करीब चार गुना हो गया है। वर्ष 2009-10 से 2023-24 के बीच शहरी इलाकों में एमपीसीई 1984 रुपए से बढक़र 6996 रुपए और ग्रामीण इलाकों में यह खर्च 1054 रुपए से बढक़र 4122 रुपए हो गया। ऐसे में शहरों की तुलना में गांवों की ग्रोथ ज्यादा है। गौरतलब है कि 4 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्रामीण भारत महोत्सव 2025 को संबोधित करते हुए कहा कि देश में ग्रामीण गरीबी में तेजी से कमी आ रही है। यह पिछले वर्ष 2024 में घटकर पांच प्रतिशत से भी कम रह गई है। साथ ही ग्रामीणों की आमदनी और क्रयशक्ति बढ़ी है।
मोदी ने कहा कि आज गांवों के लाखों घरों को पीने का साफ पानी मिल रहा है। लोगों को डेढ़ लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिरों से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं। आज डिजिटल तकनीक की मदद से बेहतरीन डॉक्टर और अस्पताल भी गांवों से कनेक्ट हो रहे हैं। पीएम किसान सम्मान निधि के जरिए देश के किसानों को तीन लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी जा रही है। बीते 10 वर्षों में कृषि ऋण साढ़े तीन गुना बढ़ गए हैं। अब पशुपालकों और मछली पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिए जा रहे हैं। बीते 10 वर्षों में फसलों पर दी जाने वाली सब्सिडी और फसल बीमे की राशि को बढ़ाया है। स्वामित्व योजना जैसे अभियान चलाए हैं, जिनके जरिए गांव के लोगों को संपत्ति के दस्तावेज दिए जा रहे हैं। गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी योजनाओं के जरिए मदद की जा रही है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत 80 करोड़ से अधिक गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने उनकी गरीबी को कम करने में अहम भूमिका निभाई है।
सरकार ने पीएमजीकेएवाई के तहत गरीबों को 2028 तक मुफ्त अनाज दिया जाना सुनिश्चित किया है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश में गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को व्यवस्थित रूप से निशुल्क खाद्यान्न वितरित किए जाने में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की भूमिका प्रभावी बनाई गई है। देश भर में मौजूदा पांच लाख से अधिक उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से निशुल्क खाद्यान्न वितरण किया जाता है। यह बात महत्वपूर्ण है कि वर्ष 2016 से राशन की दुकानों में पाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनों की शुरुआत से लीकेज में कमी आई है। वर्ष 2011-12 की खपत संख्या के आधार पर शांता कुमार समिति ने कहा था कि पीडीएस व्यवस्था में करीब 46 फीसदी लीकेज है।
इस समय यह लीकेज घटकर 28 फीसदी रह गया है। राशन कार्ड के डिजिटलीकरण के चलते देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को अधिक कारगर बनाने के लिए आधार एवं ईकेवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) प्रणाली के माध्यम से सत्यापन कराने के बाद अब तक फर्जी पाए गए 5 करोड़ 80 लाख से अधिक राशन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि डिजिटल इंडिया, शौचालय, स्वच्छ पेयजल और आयुष्मान भारत योजना, स्वच्छ ईंधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना अभियानों से देश में गरीबी में कमी आ रही है। खास तौर से करीब 54 करोड़ से अधिक जनधन खातों (जे), करीब 138 करोड़ आधार कार्ड (ए) तथा करीब 115 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं (एम) की शक्ति वाले जैम से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचा गरीबों के सशक्तिकरण में असाधारण भूमिका निभा रहा है। इस जैम के बल पर देश के गरीब लोगों के खातों में सीधे आर्थिक राहत हस्तांतरित हो रही है। वर्ष 2014 से वर्ष 2024 तक 40 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि डीबीटी से लाभार्थियों के खातों में सीधे जमा हो चुकी है। इन सबसे गरीबी में बड़ी कमी आई है और ग्रामीण भारत विशेष रूप से लाभान्वित हुआ है।
यह भी उल्लेखनीय है कि विभिन्न वैश्विक रिपोर्टों में भी भारत में गरीबों के सशक्तिकरण और विकास से गरीबी में कमी आने और गरीबों की उत्पादकता में वृद्धि होने के विश्लेषण प्रस्तुत किए जा रहे हैं। विश्व बैंक के द्वारा प्रकाशित दुनिया में गरीबी संबंधी रिपोर्ट 2024 में कहा गया है कि भारत में अत्यधिक गरीबों की संख्या वर्ष 1990 में 43.1 करोड़ थी। यह संख्या घटते हुए 2021 में 16.74 करोड़ रह गई और वर्ष 2024 में करीब 12.9 करोड़ ही रह गई है। नीति आयोग की तरफ से वैश्विक मान्यता के मापदंडों पर आधारित बहुआयामी गरीबी इंडेक्स (एमपीआई) 2024 के मुताबिक पिछले दस सालों में करीब 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं।
दुनिया के ख्यात अर्थशास्त्री और वर्ल्ड इनइक्वेलिटी डेटाबेस के सह संस्थापक रहे थॉमस पिकेटी का कहना है कि भारत में तेजी से बढ़ता विकास आम आदमी की आमदनी बढ़ा रहा है और गरीबी में तेजी से घटने की प्रवृत्ति उभर रही है। हम उम्मीद करें कि सरकार नए वर्ष 2025 में देश से गरीबी को और घटाने के लिए इस समय देश में लागू गरीबों के सशक्तिकरण की योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन के साथ नई योजनाओं व नए रणनीतिक प्रयासों के साथ आगे बढ़ेगी। साथ ही इस परिप्रेक्ष्य में सरकार देश में बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे करीब 15 करोड़ से अधिक गरीबों को वर्ष 2030 तक गरीबी से बाहर लाने के लक्ष्य पर पूर्णतया ध्यान देगी।
हम उम्मीद करें कि खास तौर से ग्रामीण गरीबी का सामना कर रहे परिवारों के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल कौशल से सुसज्जित करके रोजगार से सशक्तिकरण का रणनीतिक अभियान आगे बढ़ाएगी। साथ ही हम उम्मीद करें कि सरकार विकसित भारत 2047 के लिए आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत के परिप्रेक्ष्य में ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को और सशक्त बनाने की डगर पर आगे बढ़ेगी, इसमें भी ग्रामीणों की आमदनी में तेज वृद्धि होगी तथा इससे ग्रामीण गरीबी में और कमी आएगी। इस तरह ग्रामीण भारत का भविष्य उज्ज्वल लगता है, हालांकि बेहतर कार्यान्वयन की जरूरत रहेगी।
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