बच्चों की परवरिश
इलमा अजीम 
भारतीय बच्चों की परवरिश एक महत्वपूर्ण विषय है, जो उनके भविष्य को आकार देता है। बच्चों की परवरिश के दौरान उन्हें विभिन्न मूल्यों, संस्कारों और ज्ञान की प्राप्ति होती है। लेकिन जब वे युवा बन जाते हैं, तो वे अपने जीवन की दिशा के बारे में सोचने लगते हैं। आजकल के युवा अपने जीवन की दिशा के बारे में बहुत सोचते हैं। वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। लेकिन कई बार वे अपने जीवन की दिशा के बारे में सोचते समय भ्रमित हो जाते हैं। 
और अपने जीवन को एक अलग ही दिशा में मोड़ लेते हैं, जहां से वापसी असंभव सी प्रतीत होती है। शहरों में नए मध्यमवर्ग का एक हिस्सा ऐसा है जहां अभिभावक अपनी संतानों को महंगी से महंगी चीजें दिला रहे हैं। उन्हें इसकी परवाह भी नहीं है कि ऐसी बेशकीमती चीजें पाने वाले उनके बच्चे उसकी कीमत और उनके इस्तेमाल की समझ भी रखते हैं या नहीं। आज देश के उच्च शिक्षण संस्थानों, खासकर महंगे निजी विश्वविद्यालयों में पढऩे वाले छात्र हर छोटे अंतराल पर पार्टी करने, देर रात कारों में सवार होकर सडक़ों पर हुड़दंग मचाने, नाचने और तेज रफ्तार से वाहन चलाते हुए स्टंट करने में लिप्त पाए जाते हैं। बेहद गंभीर पक्ष यह है कि देश के ज्यादातर बड़े शहरों में नशीले पदार्थों की बड़ी-बड़ी खेपें पकड़े जाने की कई खबरें आई हैं। युवा पीढ़ी की परवरिश कैसी है, इसे परखा जाना चाहिए।


 देर रात पार्टी, नशीले पदार्थों का सेवन, आधुनिक फोन और गैजेट से लेकर फैशनेबल कपड़ों और महंगी कारों के शौकीन अठारह से बाईस चौबीस साल के नौजवानों को देख कर लगता है कि उनकी जिंदगी में कोई अभाव नहीं है। न उन्हें अपने भविष्य की चिंता है और न ही इसकी कोई फिक्र है कि अगर नौकरी नहीं मिली तो क्या होगा? जरूरी नहीं कि ऐसे दृश्य सिर्फ दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में आम हों। 

बल्कि हर मझोले और बड़े शहरों में करीब एक जैसी स्थिति दिखाई देती है। हमारे देश में बीते दो-तीन दशकों के बीच जो नवधनाढ्य या नया मध्यमवर्ग सामने आया है, उसमें दिखावा अधिक प्रतीत होता है। नव-धनाढ्य में कई बार तो दिखावा इतना अधिक बढ़ गया है कि माता-पिता अपने बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए भारी-भरकम कर्ज ले लेते हैं। नई पीढ़ी की परवरिश, उनकी दिशा और दशा पर व्यापक चिंतन होना चाहिए।

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