गोपनीयता पर मंथन आवश्यक
- संजीव ठाकुर
हिंदुस्तान की आबादी की 141करोड़ जनसंख्या में से 120 करोड़ जनमानस के पास आधार कार्ड है और पैन कार्ड धारकों की भी संख्या अब करोड़ों में पहुंच चुकी है। ये आंकड़े सरकार के पास भी हैं जो अक्सर यह संदेह पैदा कतें है कि इसका कही दुरुपयोग होकर कहीं आपके निजी जीवन में हस्तक्षेप तो नहीं किया जा रहा है। सरकार द्वारा समस्त शासकीय सुविधाओं की प्राप्ति के लिए आधार कार्ड, पैन कार्ड एवं मोबाइल सिम के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता लागू कर दी गई है। यह बात तो सर्वविदित है कि मोबाइल में सिम कार्ड लेते वक्त आधार कार्ड की अनिवार्यता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण तो है ही पर इसमें कभी-कभी यह आशंका भी होने लगती है कि भारत में निवास करने के लिए आधार के रूप में निजी जीवन में कहीं दखलअंदाजी तो नहीं है अथवा व्यक्ति के जीवन में उसकी निजता पर प्रहार तो नहीं है।
चूंकि आधार कार्ड व्यक्ति की निजी पहचान को अपने में सम्मिलित करता है और इसकी अनिवार्यता से व्यक्ति की निजी पहचान का दुरुपयोग हो सकता है। व्यक्ति कहां क्या गतिविधियां कर रहा है यह आधार की अनिवार्यता के साथ सरकार के पास सारी जानकारी उपलब्ध हो जाती है, जिससे सरकार द्वारा अथवा डाटा संग्रहण केंद्र के माध्यम से किसी भी हैकर द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है ।जो व्यक्तिगत इच्छा के विपरीत है और यदि सरकार आधार से संबंधित आंकड़े किसी अन्य पक्ष के साथ साझा करती है तो इसके दुरुपयोग की संभावना प्रबल हो जाती है। आधार कार्ड के दुरुपयोग की दूसरी समस्या इसके राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में उपयोग किए जाने की हो सकती है। राजनीति में सत्ता पक्ष की जितनी भूमिका होती है विपक्ष की भूमिका उससे अधिक होती है। आधार कार्ड के आंकड़ों के माध्यम से कोई भी सत्ता पक्ष, विपक्ष की इस भूमिका को सीमित करने का प्रयास कर सकता है।
आधार कार्ड की अनिवार्यता के साथ विपक्षी राजनेताओं के संवादों को टेप कर रणनीति का पूर्वानुमान लगाना सत्ता पक्ष की मंशा हो सकती है,इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। पर इसके कई फायदे भी हैं, आधार कार्ड की पैन कार्ड में अनिवार्यता ने वर्षों से टैक्स की छूट ले रहे फर्जी पैन कार्ड धारकों के हितों में चोट तो की है। इससे सरकार के कर संग्रहण में बढ़ोतरी होने से योजनाओं के लिए धन आवंटन एवं भौतिक सामाजिक निवेश में वृद्धि होगी। आधार कार्ड की अनिवार्यता से स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता नहीं बढ़ाया जा सकता है क्योंकि इससे सरकार के पास वास्तविक सफलता के आंकड़े भी उपलब्ध होंगे जो बेहतर नीति निर्माण के लिए सहायक भी होगी।
विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि भले ही निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हो किंतु सरकार द्वारा जनकल्याण के कार्यों के लिए उसका अतिक्रमण किया जा सकता है। एक लोकतांत्रिक सरकार का प्रथम एवं अंतिम उद्देश्य लोक कल्याणकारी रूप में स्वयं को स्थापित करना है। यदि लोक कल्याण के लिए सरकार व्यक्तियों के आंकड़ों का संग्रहण करती है उसे उचित माना जाना चाहिए। शर्त यह है कि सरकार विधि सम्मत स्थापित कर दें कि उन एकत्रित आंकड़ों का दुरुपयोग कि किन्ही भी स्थिति में नहीं किया जाएगा। व्यक्ति की निजता एक अखंडनिय अधिकार है, किंतु इसकी निरंतरता के लिए सरकार का सहयोग अपनी कर्तव्यनिष्ठा का पालन भी आवश्यक है। व्यक्ति को चाहिए कि वर्तमान डिजिटल युग के खतरों को भांपते हुए निजी पहचान को किसी भी अनाधिकृत वेबसाइट अथवा व्यक्ति को देने से बचें क्योंकि निजता का वास्तविक खतरा उससे है,ना कि सरकार के आंकड़ों के संग्रहण से है। आंकड़ों की उपलब्धता सरकार के लिए अत्यंत आवश्यक भी है और अनिवार्य भी है। किंतु सरकार को यह आश्वासन देना होगा कि एकत्रित आंकड़ों का किन्हीं भी परिस्थितियों में दुरुपयोग नहीं किया जाएगा और व्यक्ति की निजता पर किसी तरह की आंच आने की संभावना नहीं होगी।
आज इंटरनेट हमें देख रहा है हमारी प्रत्येक गतिविधि पर नजर है, कल टीवी पर भी हमें देखेगा हमारी सूचियों की जानकारी रखेगा इससे यह लाभ होगा कि हमारा जीवन सरल हो जाएगा किंतु कीमत होगी हमारी निजता की इस पर खतरा ना हो तो सारी सुविधाएं मानवीय पहलुओं को सहायता करना ही है। आज के डिजिटल युग में हमें किसी किसी भी साइट अथवा किसी भी चैनल को अपना आधार कार्ड नंबर तुरंत नहीं बताना चाहिए इससे साइबर अपराध को बढ़ोतरी मिलती है एवं धन हानि की संभावना ज्यादा होने लगेगी।
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