घरेलू प्रवासन में आई कमी
आर्थिक अवसरों और शहरीकरण की नई तस्वीर
इमला अजीम
आंकडों के मुताबिक तकरीबन 40 करोड़ भारतीय देश में ही प्रवासन करते हैं 2011 की पिछली जनगणना में देश में प्रवासन के आंकड़ों से 11.78 फीसदी कम है। इसके परिणामस्वरूप प्रवासन दर जो 2011 में आबादी की 37.64 फीसदी थी, 2023 में कम होकर 28.88 फीसदी रह गई है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा जारी अध्ययन देश में प्रवासन और शहरीकरण के रुझानों को समझने में बहुत मददगार साबित हो सकता है। आधिकारिक आंकड़ों पर निर्भर रहने के बजाय अध्ययन उच्च तीव्रता वाले आंकड़ों का इस्तेमाल करता है।
मसलन ट्रेनों में अनारक्षित यात्रियों की संख्या, मोबाइल फोन के रोमिंग आंकड़े और जिलावार बैंकिंग आंकड़े। वह इनकी मदद से यह समझने का प्रयास करता है कि प्रवासन किस प्रकार हो रहा है। देश में प्रवासन की बात करें तो यह मुख्य रूप से ग्रामीण गरीबों या देश के कम विकसित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक किस्म की पलायन रणनीति होती है ताकि वे अपनी स्थिति बेहतर बना सकें। हालांकि अक्सर यह उनकी आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाती। ऐसे में घरेलू प्रवासन आमतौर पर असमान विकास रणनीतियों और क्षेत्रीय असमानता का नतीजा होता है।
जैसा कि अध्ययन दर्शाता है, प्रवासन में कमी को इस तरह भी देखा जा सकता है कि शायद इन प्रवासियों के मूल निवास वाली जगहों पर आर्थिक हालात और अवसरों में सुधार हुआ हो। यह भी माना जा सकता है कि वे जगहें देश के सामाजिक-आर्थिक विकास से लाभान्वित हुई हों। इसके साथ ही यह बड़ी शहरी बसाहटों में कमजोर होते आर्थिक अवसरों का भी परिणाम हो सकता है जिसके चलते संभावित मजदूर अपने घरों को रुक कर वहीं आजीविका के अवसर तलाश करते हों या फिर वे अपने घर के आसपास के राज्यों में काम करने जाते हों।
राज्यवार अंतर एक दिलचस्प तस्वीर पेश करता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल मिलकर करीब आधे यानी 48 फीसदी प्रवासी श्रमिक भेजते हैं। इसी के साथ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु मिलकर 48 फीसदी प्रवासी श्रमिकों का ठिकाना बनते हैं। परंतु इन राज्यों में भी संबंधित राज्यों को जाने वाले प्रवासियों का प्रतिशत कम हो गया है। महामारी के दौरान उलट प्रवासन के स्पष्ट प्रमाण देखने को मिले लेकिन प्रतिबंध समाप्त होने के बाद लोग वापस शहरों और औद्योगिक ठिकानों की ओर वापस लौटे। हालांकि यह वापसी अभी भी महामारी के पहले वाले स्तर तक नहीं पहुंच सकी है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा जारी एक पर्चा इस मुद्दे को आगे और स्पष्ट करता है। यह पर्चा भारतीय रेल के उपनगरीय परिवहन के रुझानों का अध्ययन करता है। पिछले दशक में चार महानगरों की उपनगरीय यात्रा कम हुई या बहुत कम बढ़ी। इसके साथ ही महाराष्ट्र में ठाणे, तमिलनाडु में कांचीपुरम, उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद और पश्चिम बंगाल में उत्तर चौबीस परगना और दक्षिण चौबीस परगना जैसे वैकल्पिक शहरों का तेजी से विकास हुआ जो प्रवासी श्रमिकों के ठिकाने बने। स्पष्ट है कि ये क्षेत्र मुंबई, चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता जाने वाले श्रमिकों को कुछ हद तक रोक पाने में कामयाब रहे।
इस बारे में दो अहम मुद्दे हैं जिन पर नीतिगत ध्यान देने की जरूरत है। पहला, सार्वजनिक सेवा आपूर्ति में सुधार करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों में रोजगार तैयार करने की जरूरत है ताकि देश में अतिशय प्रवासन को रोका जा सके। रोजगार और आजीविका के अवसरों को लोगों के पास लाने तथा परिवहन अधोसंरचना को मजबूत बनाने से देश भर में उपनगरीय तथा ग्रामीण इलाकों में कारोबारों के स्थानांतरण में मदद मिल सकती है।
दूसरा, कोशिश की जानी चाहिए कि शहरीकरण के एकतरफा रुझान को सुधारा जा सके और शहरों की भीड़भाड़ को कम किया जा सके। नए औद्योगिक केंद्र और उपनगर बनाकर भी प्रवासन को छोटे कस्बों की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है। इससे देश भर में संतुलित विकास संभव होगा।
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