बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न
इलमा अजीम
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के पैरोकार दास को कथित रूप से बांग्लादेशी झंडे का अपमान करने तथा राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। उनकी गिरफ्तारी और जमानत न दिए जाने के कारण बांग्लादेश और सीमा पार भारत में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। दरअसल, इस अशांति का संदर्भ लगातार अल्पसंख्यक उत्पीड़न के पैटर्न में निहित हैं। बांग्लादेश के संवैधानिक आश्वासन के बावजूद वहां के हिंदू, जो कि आबादी का लगभग नौ फीसदी हैं, लगातार हिंसा, बर्बरता और सामाजिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। वहां हिंदुओं के घरों व मंदिरों पर भीड़ पर हमलों की खबरें चिंता बढ़ाने वाली हैं।
जिसमें हसीना सरकार के पतन के बाद खासी तेजी आई है। आधिकारिक रूप से इस्लामिक धर्म वाले इस देश में यह स्थिति अल्पसंख्यकों की व्यापक असुरक्षा को दर्शाती है। अल्पसंख्यक संगठनों द्वारा सुरक्षा की गुहार लगाये जाने के बाद विश्वास बहाली की जिम्मेदारी कार्यवाहक सरकार पर है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लगातार उत्पीड़न के विरोध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं गाहे-बगाहे आती रही हैं। पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर गंभीर चिंता जतायी थी। यहां तक कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भी अपनी हालिया रिपोर्ट में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के दौरान अल्पसंख्यकों पर बढ़े हमलों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है।
रिपोर्ट में हसीना सरकार के पतन के बाद के एक पखवाड़े में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के दो हजार से अधिक मामलों का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट इस बात पर भी चिंता जताती है कि ऐसे मामलों में अपराधियों की पहचान होने के बावजूद उन्हें दंडित नहीं किया गया। बल्कि इसके बहाने राजनीतिक विरोधियों को ही निशाना बनाया गया। ऐसी हिंसा के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की तरफ से भी तल्ख प्रतिक्रिया दर्ज की गई है। यह विडंबना ही है कि जिस बांग्लादेश की स्थापना भारत के त्याग व बलिदान के चलते एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में हुई थी, आज वहां यूनुस सरकार उन मूल्यों को ताक पर रख रही है। भारत सरकार के विरोध के बावजूद यूनुस सरकार किसी भी तरह से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी देने को तैयार नहीं है।
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