स्ट्रोक प्रबंधन पर चिकित्सकों को सक्षम बनाने के लिए न्यूरोइंटरवेंशन मीट का आयोजन

रोहतक।  पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के न्यूरोइंटरवेंशन विभाग ने आज स्थानीय न्यूरोसाइंसेज समूह और वरिष्ठ चिकित्सकों के सहयोग से एक न्यूरोइंटरवेंशनल मीट का आयोजन किया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य स्ट्रोक प्रबंधन के लिए नवीनतम न्यूरोइंटरवेंशनल तकनीकों पर विचार-विमर्श करना और स्ट्रोक व अन्य न्यूरोवैस्कुलर स्थितियों के उन्नत उपचार विकल्पों के प्रति जागरूकता बढ़ाना था।

कार्यक्रम का नेतृत्व पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के ग्रुप डायरेक्टर और प्रमुख न्यूरोइंटरवेंशन विशेषज्ञ, डॉ. विपुल गुप्ता ने किया। उन्होंने अपनी टीम के साथ इस बात पर प्रकाश डाला कि स्ट्रोक, जिसे पहले केवल वृद्धावस्था की समस्या माना जाता था, अब युवा वर्ग को भी तेजी से प्रभावित कर रहा है। भारत में 45 वर्ष से कम उम्र के लगभग 15% लोगों को स्ट्रोक हो रहा है।

नवीन न्यूरोइंटरवेंशनल तकनीकों के बारे में बताते हुए, डॉ. विपुल गुप्ता ने कहा,"स्ट्रोक के दौरान हर मिनट में 20 लाख कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, इसलिए उपचार में थोड़ी सी भी देरी रोगी के परिणामों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। प्रारंभिक हस्तक्षेप जैसे थ्रॉम्बोलाइसिस और मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टमी, स्ट्रोक को इसके ‘गोल्डन ऑवर्स’ के दौरान प्रभावी ढंग से उलट सकते हैं। 

थ्रॉम्बोलाइसिस में क्लॉट-डिसॉल्विंग दवाओं को नसों में इंजेक्ट किया जाता है, जो स्ट्रोक के चार से पांच घंटे के भीतर दिया जाता है। वहीं, मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टमी, जो पिछले एक दशक में लोकप्रिय हो रही है, में न्यूरोइंटरवेंशन विशेषज्ञ एक स्टेंट रिट्रीवर डिवाइस का उपयोग करके मस्तिष्क की अवरुद्ध रक्त वाहिकाओं से क्लॉट को हटाते हैं और सामान्य रक्त प्रवाह को बहाल करते हैं।"

यह न्यूरोइंटरवेंशन मीट चिकित्सा समुदाय को स्ट्रोक के आधुनिक उपचार तरीकों के बारे में जागरूक करने के लिए आयोजित की गई थी। भारत में हर साल लगभग 18 लाख स्ट्रोक मामलों के साथ, ऐसी पहलें चिकित्सकों को इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए आवश्यक ज्ञान और उपकरण प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

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