नदियों की सेहत और अदालतों के निर्देश
- योगेंद्र योगी
हिंदू शास्त्रों में गंगा और यमुना नदी का धार्मिक महत्व बताया गया है। इन नदियों की उपयोगिता के कारण इन्हें जीवनदायिनी कहा गया है। वर्तमान में हालत यह है कि ये जीवनदायिनी खुद जीवन के लिए तरस रही हैं। देश में अन्य समस्याओं की तरह इन नदियों के की बर्बादी के लिए भी राजनीति जिम्मेदार है। नदियों के प्रदूषण का मुद्दा राजनीतिक दलों को वोट नहीं दिला सकता, इसलिए इनकी सेहत लगातार बिगड़ती जा रही है। सत्तारूढ़ दलों की प्राथमिकता में नदियों की पवित्रता बरकरार रखना नहीं रह गया है। इन नदियों की हालत नालों जैसी बन चुकी है। भ्रष्टाचार और वोट बैंक की राजनीति के कारण इस हालत से निपटने के लिए सरकारी प्रयास विफल साबित हुए हैं। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद नदियों में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है। अदालतों ने नदियों में प्रदूषण के लिए कई बार भारी जुर्माना लगाया है। चूंकि जुर्माना नेता-अफसरों की जेब से नहीं जाता, इसलिए उसका ऊंट के मुंह में जीरे जितना ही असर हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने यमुना नदी को अनुपचारित अवशिष्ट से प्रदूषित करने के लिए आगरा नगर निगम को 58.39 करोड़ रुपए पर्यावरणीय मुआवजा देने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम के सारे दावों की पोल खोल कर रख दी और यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण स्तर को लेकर नगर निगम को फटकार लगाई। इस तरह के मामले में इससे पहले राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने भी नगर निगम के खिलाफ अप्रैल में आदेश दिया था। यह पहला मौका नहीं है कि जब एनजीटी या अदालत ने नदियों के प्रदूषण के लिए सरकारी एजेंसियों पर जुर्माना लगाया हो, इससे पहले भी ऐसे कदम उठाए जा चुके हैं, किन्तु शासन-प्रशासन की मिलीभगत से नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है।
हालात यह हो गए हैं कि नदियों का जल पीने लायक तो दूर, आचमन करने लायक भी नहीं रह गया है। दिल्ली में बहने वाली यमुना नदी कभी धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थी। अब प्रदूषण के कहर से जूझ रही है। आंकड़े बताते हैं कि यमुना का प्रदूषण स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। छठ जैसे पर्व पर महिलाओं को इस नदी पर स्नान करने से रोक लगाई गई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार यमुना में खतरनाक बैक्टीरिया और प्रदूषकों का स्तर मानक सीमा से कई गुना अधिक पाया गया है। दिल्ली में यमुना के प्रमुख हिस्सों में पानी की गुणवत्ता, बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) और अन्य प्रदूषक तत्वों के कारण न केवल पीने के योग्य नहीं है। यमुना में प्रतिदिन लगभग 3000 मिलियन गैलन से अधिक सीवेज प्रवाहित होता है। यह बिना किसी सफाई प्रक्रिया के सीधे नदी में जा रहा है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने नोएडा विकास प्राधिकरण पर 100 करोड़, यानी एक अरब रुपए और दिल्ली जल बोर्ड पर 50 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। इसी तरह बिहार सरकार में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सॉलिड और लिक्विड वेस्ट का वैज्ञानिक तरीके से निपटारा नहीं कर पाने को लेकर राज्य सरकार पर चार हजार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। सर्वोच्च न्यायालय ने 28 नवंबर, 2023 को एनजीटी के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें महाराष्ट्र को अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन के लिए पर्यावरण मुआवजे के रूप में 12000 करोड़ रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। एनजीटी ने पंजाब सरकार पर कई चेतावनियों के बावजूद राज्य में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन में विफल रहने के लिए 1000 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा राजस्थान सरकार पर लगाए 3000 करोड़ रुपए के जुर्माने पर रोक लगा दी। एनजीटी ने राजस्थान में गीले और सूखे कचरे के समुचित प्रबंधन में नाकाम रहने से पर्यावरण पर पड़ रहे बुरे असर को लेकर यह जुर्माना लगाया था। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की ओर से 5 जून को पर्यावरण दिवस के मौके पर जारी स्टेट ऑफ एनवायरमेंट (एसओई) रिपोर्ट 2023 में यह खुलासा किया गया कि देश के 30 राज्यों में कुल 279 (46 फीसदी) नदियां प्रदूषित हैं, हालांकि 2018 के मुकाबले मामूली सुधार 2022 में देखा गया है।
2018 में 31 राज्यों में 323 नदियां प्रदूषित थीं। एसओई रिपोर्ट के मुताबिक देश की 279 अथवा 46 फीसदी प्रदूषित नदियों में सर्वाधिक प्रदूषित नदियां महाराष्ट्र (55) में हैं, जबकि इसके बाद मध्य प्रदेश में 19 नदियां प्रदूषित हैं। वहीं, बिहार में 18 और केरल में भी 18 नदियां प्रदूषित हैं। उत्तर प्रदेश में 17 और कर्नाटक में भी 17 नदियां, जबकि राजस्थान में 14 और गुजरात में 13, मणिपुर में 13, पश्चिम बंगाल में 13 नदियां प्रदूषित हैं। देश की सर्वाधिक पवित्र नदी गंगा के जल को घरों में रखा जाता था। अब हालत यह है कि गंगा नदी दो साल में 10 गुना मैली चुकी है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की 94 जगहों से गंगा जल की जांच की गई। नदी के पानी में प्रदूषण का बुरा हाल देखने को मिला। प्लास्टिक की थैलियां, दूध की पॉलिथीन, नदी के किनारे शवों का जलाना, गंगा नदी को लगातार प्रदूषित कर रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के 94 स्थानों पर गंगा जल की जांच में यह भयावह तस्वीर सामने आई थी। 13 फरवरी 2023 को केंद्रीय जल शक्ति (जल संसाधन) राज्य मंत्री विश्वेश्वर टुडू ने संसद को बताया था कि नमामि गंगे कार्यक्रम गंगा नदी में प्रदूषण को कम करने में कारगर रहा है। उन्होंने कहा था कि 2014 से केंद्र ने नदी की सफाई के लिए 32912.40 करोड़ रुपए के बजट के साथ 409 परियोजनाएं शुरू की हैं। लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा नदी के पूरे भाग के 71 प्रतिशत क्षेत्र में कोलीफॉर्म के खतरनाक स्तर पाए गए। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2022 की रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश में कोलीफॉर्म का स्तर सात स्टेशनों पर सबसे ज्यादा था।
एनजीटी ने राज्यों से सीवेज ट्रीटमेंट पर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। इसी की पालना में दिसंबर 2022 में उत्तर प्रदेश ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें स्वीकार किया गया कि गंगा और उसकी सहायक नदियों में मिलने वाले 1340 नालों में से 895 (66.8 प्रतिशत) बिना किसी सिवेज ट्रीटमेंट के सीधा गंगा को दूषित कर रहे हैं। वर्तमान में भी हालात में ज्यादा सुधार नहीं है। वर्ष 2018-2019 में गंगा द्वारा ले जाए गए प्लास्टिक कचरे का आकलन किया गया। नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी के गंगा नदी अभियान में यह पाया गया कि गंगा नदी का प्लास्टिक का कचरा बड़े पैमाने पर सुमद्र में मिल रहा है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि दुनिया के कुल प्लास्टिक कचरे का लगभग 20 प्रतिशत भारत में पैदा होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल देश में लगभग 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जिसमें से 90 प्रतिशत नगर निगमों से आता है। नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर 50000 से अधिक नगरपालिकाओं में प्लास्टिक कचरे पर नजर रखने के लिए उन्नत एआई मॉडल का इस्तेमाल किया गया। प्रकृति का सबसे बड़ा खजाना नदियों को शुद्ध रखने के प्रयासों की कमजोर हालत के कारण वे दिन दूर नहीं, जब देश में जल संकट और गहरा होगा। शासन-प्रशासन और अदालतों ने शीघ्र इस दिशा में ध्यान नहीं दिया, तो कृषि के लिए तो दूर, पीने के पानी के लिए भी तरसना पड़ेगा।
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