आपदा में न बदले मौसम का बदलाव

इलमा अजीम 
पिछले वर्षों में समूची दुनिया जलवायु परिवर्तन के खतरों से जूझ रही है। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के साथ-साथ कड़ाके की सर्दी व अतिवृष्टि जैसे हालात ने लोगों की सेहत के लिए खासी चुनौतियां पेश की हैं। लैंसेट की ताजा रिपोर्ट के चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि स्वास्थ्य जोखिमों को ट्रैक करने वाले 15 में से 10 संकेतक बीते वर्ष ही नए कीर्तिमान कायम कर चुके हैं। यह वर्ष अब तक का सबसे गर्म दिन भी देने वाला रहा है। जाहिर है जलवायु परिवर्तन के इस दौर में गर्मी जनित बीमारियां जानलेवा साबित हुई हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में मौसम चक्र गड़बड़ा रहा है। 


तापमान बढऩे के पुराने आंकड़े पीछे छूटते जा रहे हैं। भीषण गर्मी का यह दौर इसलिए ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि इससे लोगों की जान पर बन आई है। मक्का में हज के लिए गए यात्रियों की मौत को लेकर सामने आया ताजा आंकड़ा बताता है कि बढ़ते तापमान और इससे होने वाले वैश्विक संकट के मुकाबले की दिशा में अभी समुचित प्रयास नहीं हो पाए हैं। न ही विभिन्न देशों की सरकारें वैज्ञानिकों की ओर से जारी चेतावनियों को लेकर ज्यादा गंभीर नजर आ रहीं। गर्मी से होने वाली मौतों की खबर उन सब देशों से आ रही है, जहां जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम चक्र ने भी करवट बदली है। होने यह लगा है कि गर्मी के मौसम में तेज गर्मी और सर्दी में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। लोगों को शायद यह लगता है कि भीषण गर्मी का यह दौर भी मौसम चक्र का हिस्सा है और कुछ समय बाद इसकी तीव्रता अपने आप कम हो जाएगी। लेकिन, राहत मिलने की जगह हालात विकट हो रहे हैं। मौसम में यह बदलाव आपदा में बदल रहा है। यही कारण है कि तापमान की मार से लोगों की जान तक जा रही है। जलवायु में बदलाव ने ज्यादा खतरा 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए पैदा किया है।


 गर्मी की वजह से हुई मौतों में इस आयुवर्ग के लोग वर्ष 1990 के दशक की तुलना में 167 फीसदी बढ़े हैं। बदलती जलवायु के कारण भविष्य को लेकर जोखिमों और आशंकाओं के बीच यह एक सुखद संकेत जरूर हो सकता है कि कोयला जलाने में कमी के कारण वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में कमी आई है। पर यह भी है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के ठोस प्रयास नहीं हुए तो हालात गंभीर होते जाएंगे।

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