भ्रष्टाचार-महंगाई रोकने के उपाय
- लक्ष्मी कांता चावला
भ्रष्टाचार और महंगाई दो ऐसे सुरसा के खुले मुंह जैसे रोग हैं जो देश में बढ़ते ही जा रहे हैं और हर सरकार यह घोषणा करती है कि भ्रष्टाचार मुक्त शासन देगी और महंगाई नियंत्रित करेगी, पर जिस देश में आधे से ज्यादा सांसद, विधायक दागी हों, अरबपति हों और नोट देकर वोट खरीदते हों, वहां भ्रष्टाचार समाप्त करने की बात दिवास्वप्न जैसी ही लगती है। सबसे पहला भ्रष्टाचार तो वहां शुरू हो जाता है जहां चुनाव लडऩे वाले जो विवरण चुनावी खर्च का देते हैं, उसे 99 प्रतिशत प्रत्याशियों का चुनाव आयोग स्वीकार कर लेता है। कौन नहीं जानता कि धन बल, बाहुबल और शराब की नदियां बहाकर अधिकतर चुनावी संग्राम जीते जाते हैं। जीतने वाले और हारने वाले दोनों इन्हीं शस्त्रों का सहारा लेते हैं, पर पूरे देश में न महंगाई नियंत्रण में हुई और न भ्रष्टाचार। यह ठीक है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भ्रष्टाचार नियंत्रण करने की बात कही थी और उन्होंने अपने समय में विधायक समेत कई प्रमुख लोगों को जेल में भिजवाया। आईएएस, आईपीएस तक के अधिकारी पकड़े गए और अभी कुछ दिन पूर्व ही पंजाब के मुक्तसर के एडीसी भी सलाखों के पीछे पहुंच गए। मेरा यह मानना है कि जो भी नेता या अधिकारी अनुचित अवैध साधनों से कमाया धन घर लाता है, उसके परिवार को, बच्चों को, पत्नी को उसकी पूरी जानकारी होती है, क्योंकि उसी धन के बल पर वे आकाश पर उड़ते हैं और देश-दुनिया घूमते हैं।
वैसे यह हर दिन का समाचार है कि पुलिस के कनिष्ठ, वरिष्ठ बहुत से कर्मचारी पकड़े गए। नागरिक प्रशासन के लोग भी पकड़े गए और सत्ता पक्ष के कुछ कार्यकर्ता भी जो रिश्वत मांगते या बिचौलिये का काम करते थे, पकड़ लिए। यह भ्रष्टाचार को नकेल डालने का एक स्वस्थ प्रयास है। वैसे रिश्वत लेने वाले कुछ ज्यादा ही हिम्मत रखते हैं। यह देखने के बाद भी कि रिश्वत लेने वाले पकड़े गए, अपमानित हुए, जेलों में भेजे गए और उनके रिटायरमेंट के सारे लाभ खत्म हो रहे हैं, फिर भी वे हिम्मत करके रिश्वत ले ही लेते हैं, लेकिन यह मानना पड़ेगा कि जब तक नैतिक मूल्यों की समाज में ज्यादा मान्यता नहीं होती, दंड से ही भ्रष्टाचार रोकना होगा। लड़ाई अभी बहुत लंबी है, पर इसके लिए एक काम तो करना ही पड़ेगा, वह है परिवार का रिश्वत के पैसे को नकार देना। मैं यह विश्वास रखती हूं कि अगर परिवार की महिलाएं, माता, पत्नी, बेटियां अपने पति-पिता-पुत्र को यह सख्ती से समझा दें कि घर में मेहनत की कमाई आएगी, रिश्वत की नहीं, तब बहुत अंतर पड़ सकता है, पर अब तो महिला अधिकारी भी रिश्वत लेने में संकोच नहीं करतीं। इसलिए यह परिवार के किशोर और युवा बच्चों को निर्णय लेना होगा कि उन्हें पिता की रिश्वत की कमाई से सुख सुविधाएं चाहिए या पिता का सम्मान और मेहनत की रोटी चाहिए। जिस दिन बच्चे पिता द्वारा आमदनी से अधिक लाया धन, उपहार और अन्य सुविधाएं पूरी तरह से नकार देंगे तब एक बहुत बड़ा परिवर्तन समाज में देखने को मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। वैसे महिलाएं भी बहुत कुछ बदल सकती हैं। मैंने बार-बार यह लिखा है व समाज को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि अगर देश की महिलाएं और परिवार के बच्चे यह तय कर लें कि वे सीमित साधनों में ही अपना गुजर बसर कर लेंगे तो रिश्वत लेने-देने की बीमारी काफी कम हो जाएगी। मेरा यह भी मानना है कि अगर विवाह शादियों पर भारी खर्च और अमीरी का प्रदर्शन बंद हो जाए तब भी कुछ ऐसे अधिकारी और कर्मचारी भ्रष्टाचार से दूर रहेंगे जो यह तर्क देते हैं कि बच्चों की शादी के कारण उन्हें अनुचित साधनों से धन कमाना पड़ता है। राजस्थान के इतिहास में महारानी महामाया का बहुत सुंदर उदाहरण मिलता है। जब उसने यह तय कर लिया कि युद्ध में पीठ दिखा कर आए पति को किले में प्रवेश नहीं करने देगी और पति को यह आदेश सुना दिया कि उसका स्वागत होगा, पर जब वह विजयी अथवा रण क्षेत्र में शहीद होकर आएगा। इसका पूरा असर हुआ और पूरी शक्ति से शत्रुओं से जूझते हुए महाराजा जसवंत सिंह विजयी होकर वापस आए।
इसी प्रकार अगर आज की महिलाएं, परिवारों के बच्चे यह संकल्प कर लें कि पिता, पति अथवा पुत्र द्वारा अनुचित साधनों से कमाया, घर लाया धन स्वीकार नहीं करेंगे तो अधिकतर लोग रिश्वत के मोह से बचेंगे और अपने देश को दीमक की तरह खा रही यह भ्रष्टाचार की बीमारी नियंत्रण में आ जाएगी। वैसे भी होना यह चाहिए कि जो अधिकारी या कर्मचारी, महिला या पुरुष कोई भी हो, अनैतिक साधनों से धन कमा कर लाता है, अगर उसका परिवार इस धन संपत्ति को स्वीकार कर ले तो उसे भी अपराधी घोषित किया जाना चाहिए। कुछ वर्ष पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने रिश्वत लेने वाले अधिकारी की पत्नी को रिश्वत लेने के आरोप में दंडित किया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 379, 380, जो अब बदल गई, के अंतर्गत चोरी का अपराध करने वाले को सजा होती है, पर साथ ही जो व्यक्ति जानते हुए भी कि वह जो वस्तु या धन संपत्ति स्वीकार कर रहा है चोरी का माल है, उसे भी भारतीय दंड संहिता की धारा 411 (पुरानी) के अंतर्गत गिरफ्तार करके सजा दिलवाई जाती है। अब इसका सीधा अर्थ यह है कि जो परिवार पति या परिवार के मुखिया द्वारा रिश्वत के रूप में लाई हुई धन संपत्ति को स्वीकार करता है उसे भी सलाखों के पीछे होना ही चाहिए। अगर इस धारा का सख्ती से पालन किया जाए तो बहुत से परिजन अपने परिवार के मुखिया को भ्रष्ट साधनों से धन कमाने से रोक लेंगे। एक पटवारी या एक डॉक्टर या एक वरिष्ठ अधिकारी पकड़ में आ गया तो यह नहीं समझ लेना चाहिए कि रिश्वतखोरों पर नकेल कसी गई। जब तक इस देश के चुनाव लडऩे वाले नेताओं के परोक्ष धन स्रोतों का पता लगा कर सब कुछ पकड़ा नहीं जाएगा, तब तक प्रशासनिक क्षेत्र से भी रिश्वत बंद नहीं हो सकती। जब तक ट्रांसफर करवाने और मनचाहे पदों पर नियुक्ति पाने के लिए इस देश और समाज में चांदी के पहियों का सहारा लिया जाएगा, तब तक कुछ वरिष्ठ अथवा कनिष्ठ अधिकारियों को रिश्वत लेते गिरफ्तार करके पीठ थपथपाने वाली सरकारी मशीनरी कभी भी इस बुराई को दूर नहीं कर सकती। जिस देश में डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए भी लोगों को प्राइवेट कॉलेजों में अब मोटी रकम का चढ़ावा करके प्रवेश मिलता है, वहां नैतिकता का पाठ पढ़ाने का साहस भी कौन करेगा? हम आशा यह रखते हैं कि डॉक्टर भगवान का रूप बन जाएं, इंजीनियर मजबूत निर्माता बनें, पर कोई सरकार उस तंत्र के लिए मुंह खोलने को भी तैयार नहीं जिसमें डॉक्टर और इंजीनियर बनने से पहले प्रवेश के लिए ही अब तो करोड़ रुपए से भी ज्यादा देना पड़ता है।
कभी स्कूलों में लिखा होता था- सीखने के लिए आइए और सेवा के लिए जाइए। अब तथाकथित पब्लिक स्कूलों में मैकॉले के रंग में रंगा कर बच्चों को भारत का भविष्य बनाने के लिए हजारों रुपए देकर ही स्कूल की दहलीज के अंदर प्रवेश मिलता है। पहले प्रवेश के लिए नोट बरसाओ, फिर ग्रेस माक्र्स पाने के लिए चढ़ावा दो, इसके बाद टॉपर बनने के लिए टॉप में बैठे लोगों की कृपा प्राप्त करने के लिए सभी उचित-अनुचित साधनों का प्रयोग करो। बहरहाल, सामाजिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार परिवारों के नियंत्रण के बिना खत्म नहीं हो सकता। दीपावली के दिन माननीयों के घरों में उपहारों की वर्षा होगी। गिफ्ट के बंद डिब्बे में न जाने क्या-क्या चढ़ावा चढ़ाया जाएगा। यहीं से शुरू करें सभी बच्चे और परिजन। इसे ठुकराएं और अपने परिवार के गिफ्ट के नाम पर रिश्वत लेने वाले मुखिया को सही रास्ता दिखाएं। सरकार को महंगाई रोकने के मसले पर भी गंभीरता से विचार करना होगा। जमाखोरी-कालाबाजारी पर रोक लगनी चाहिए।
(स्वतंत्र लेखिका)
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