सड़कों पर होती मौत

इलमा अजीम 
सवाल उठाया जा सकता है कि आखिर भारत की सड़कों पर चलना जान हथेली पर लेकर चलने जैसा क्यों होता जा रहा है? ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि देश में हर दस हजार किलोमीटर पर मरने वालों की दर 250 है जबकि अमेरिका, चीन और आस्ट्रेलिया में यह संख्या 57, 119 व 11 है। निश्चित रूप से भारत में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों का यह आंकड़ा एक संवेदनशील व्यक्ति को हिलाकर रख देता है। हालांकि, देश में समय के साथ वाहनों की संख्या और सड़क निर्माण में भी वृद्धि हुई है, लेकिन दुर्घटनाओं का आंकड़ा कम नहीं हो रहा है। वर्ष 2012 में करीब 16 करोड़ गाड़ियां रजिस्टर्ड थी जो पिछले एक दशक में दुगनी हो गई हैं। लेकिन उस अनुपात में सड़कें नहीं बढ़ीं। जहां वर्ष 2012 में देश में भारतीय सड़कों की लंबाई 48.6 लाख किलोमीटर थी, तो वर्ष 2019 में यह 63.3 लाख किलोमीटर तक जा पहुंची थी। यहां यह विचारणीय प्रश्न है कि सड़क सुरक्षा के तमाम उपायों के बावजूद देश में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या कम क्यों नहीं हो रही है। इसके लिये ट्रैफिक व सामान्य पुलिस को सतर्क करने तथा यात्रियों को जागरूक करने की भी जरूरत है। देश की सड़कों पर चलना अब जान हथेली में रखकर चलने जैसा ही होता जा रहा है।


 हाल ही में दिल्ली-चंडीगढ़ हाईवे पर पानीपत के निकट रॉन्ग साइड से आए एक ट्रक ने पांच लोगों की जान ले ली। बताया जाता है कि ड्राइवर नशे में था। रास्ते में जो आया उसे कुचलता चला गया। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि ऐसी दुर्घटनाओं में निर्दोष लोग ही मारे जाते हैं।  कमोबेश सारे देश में ऐसी घटनाएं सुनने में आती हैं जिनमें रोज सैकड़ों लोगों की जीवन लीला समाप्त हो जाती है। देश की इन कातिल सड़कों की हकीकत बताता केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय का एक डराने वाला आंकड़ा पिछले दिनों सामने आया। मंत्रालय के अनुसार पिछले दस सालों में हुए सड़क हादसों में 15 लाख लोग मारे गए। यह हमारी व्यवस्था की नाकामी को भी उजागर कर रहा है कि क्यों हर साल डेढ़ लाख लोग मारे जा रहे हैं।

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