जागरूकता से रुकेगा प्रदूषण
 इलमा अजीम 
दीपावली के बाद राजधानी दिल्ली के प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हुई। यहां तक कि छठ पूजा के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण का संकट बढ़ा हुआ है। पिछले दिनों खबर आई कि दिल्ली दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित राजधानी है। एक हकीकत यह भी है कि सिर्फ सरकारी प्रयासों से ही प्रदूषण की समस्या का समाधान संभव नहीं है। यह स्थिति तभी बदलेगी जब लोगों की तरफ से भी ईमानदार पहल होगी। अब चाहे बात राष्ट्रीय सरोकारों की हो, पानी संकट की हो या फिर प्रदूषण की हो। जब नागरिकों को अहसास होगा कि बिना पटाखे छुड़ाए भी खुशी मनायी जा सकती है तो हम समाज के लोगों, जीव-जंतुओं व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सार्थक प्रगति कर सकेंगे। बात तब बनेगी जब हम बच्चों के पाठ्यक्रम में यह बात शामिल करेंगे कि उनके भविष्य के लिये पर्यावरण, पानी व हवा की रक्षा कितनी जरूरी है।



बच्चों को अहसास कराएं कि जिस तरह से बड़े लोग पानी का दुरुपयोग कर रहे हैं, उससे उनके भविष्य के लिये पानी का संकट गहरा हो जाएगा। इसके लिये टीवी, प्रिंट मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाये जा सकते हैं। इस अभियान में सूचना माध्यमों की भी जवाबदेही तय करने की जरूरत है। हम भूल जाते हैं कि इस संकट को बढ़ाने में राजनीति की बड़ी भूमिका है। किसानों के मुद्दों को जोरशोर से उठाकर श्रेय लेने वाले राजनेताओं की जवाबदेही तय होनी चाहिए। दरअसल, बंपर पैदावार का श्रेय लेने वाले राजनेता तब कहां चले जाते हैं जब पराली जलाने का संकट पैदा होता है? सही मायनों में जहां पराली जलाने की घटनाएं ज्यादा होती हैं, वहां क्षेत्र के विधायकों की भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए कि वे क्षेत्र के किसानों को जागरूक क्यों नहीं कर पाते। क्यों वे पराली के निस्तारण के वैकल्पिक संसाधन उपलब्ध कराने में किसानों का सहयोग नहीं करते? विडंबना यही है कि वे वोट की राजनीति के प्रलोभन में पराली जलाने के खिलाफ आवाज उठाने में चुप्पी साध लेते हैं। 



उनके खिलाफ भी तो लापरवाही के मामले दर्ज होने चाहिए। वहीं यह भी हकीकत है कि प्रदूषण संकट के मूल में सिर्फ पराली समस्या ही नहीं है। हमारी उपभोक्ता संस्कृति, वाहनों का अंबार, सार्वजनिक यातायात सुविधा का पर्याप्त न होना, अनियोजित निर्माण कार्य, जीवाश्म ईंधन का प्रयोग तथा कूड़े का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण न होना भी प्रदूषण संकट के मूल में है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये व्यापक स्तर पर जनजागरण अभियान चलाने, शैक्षिक पाठ्यक्रम में प्रदूषण-पर्यावरण के मुद्दे शामिल करने तथा तंत्र की जवाबदेही तय करना प्राथमिकता होनी चाहिए। 

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