नक्सली समस्या : समाधान जरूरी
इलमा अजीम
नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की सख्ती के समानांतर इस समस्या की जड़ों पर वार करना भी जरूरी है। इसके लिए निरंतर सामाजिक-आर्थिक पहलुओं की पहचान के साथ निदान के प्रयास करने ही होंगे। नक्सल विरोधी अभियान का एक चिंताजनक पहलू भी है। वह यह कि खुफिया तंत्र की सतत निगरानी के दावे के बावजूद नक्सली रह-रहकर सुरक्षा बलों पर हमले करते हैं और फिर भूमिगत हो जाते हैं। इससे सरकार के इस दावे की कलई खुल जाती है कि छत्तीसगढ़ में नक्सली समूहों पर नकेल कसी जा चुकी है और उनका प्रभाव बहुत छोटे इलाके तक सीमित रह गया है। ऐसे में नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की सख्ती के समानांतर इस समस्या की जड़ों पर वार करना भी जरूरी है। इसके लिए निरंतर सामाजिक-आर्थिक पहलुओं की पहचान के साथ निदान के प्रयास करने ही होंगे।छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिलों की सीमा पर अबूझमाड़ में 30 से ज्यादा नक्सलियों को मार गिराने से स्पष्ट हो गया कि घने जंगलों वाला यह इलाका अब सुरक्षा बलों के लिए अबूझ नहीं रहा। लोकसभा चुनाव से पहले अप्रेल में इसी इलाके में सुरक्षा बलों ने 29 नक्सलियों को ढेर किया था। नक्सली अक्सर हमलों के बाद जंगलों में छिप जाते हैं। दुर्गम व अनजान इलाका होने के कारण सुरक्षा बल पहले उनकी टोह नहीं ले पाते थे, पर अब लगातार सघन ऑपरेशन से नक्सलियों की कमर तोड़ी जा रही है। इस साल से पहले के पांच साल में छत्तीसगढ़ में करीब 200 नक्सली मारे गए थे। इस साल अब तक करीब 180 का मारा जाना दर्शाता है कि राज्य को नक्सली मुक्त करने का अभियान पहले के मुकाबले ज्यादा तेजी से चलाया जा रहा है।
नक्सली नेता दावा करते हैं कि उन्होंने आदिवासियों के हितों के लिए लड़ाई छेड़ रखी है, पर विकास और जनकल्याणकारी योजनाओं के खिलाफ कुचक्र रचकर वे खुद गरीब आदिवासियों का सबसे ज्यादा अहित कर रहे हैं। उगाही के लिए वे आतंक फैलाते हैं और सुरक्षा बलों पर हमलों के लिए ए.के. 47 जैसे हथियार जुटाने के साथ बारूदी सुरंगें बिछाते हैं। उन्हें कड़ा संदेश देना जरूरी है कि संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ उठने वाली बंदूकों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बार-बार आग्रह के बावजूद हथियार छोडक़र मुख्यधारा में शामिल होने से इनकार करने वाले नक्सलियों को सबक सिखाना जरूरी है।
लेखिका एक स्व्त्रंत पत्रकार
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