डिजिटल गिरफ्तारीः रहें सतर्क
इलमा अजीम
डिजिटल अरेस्ट शब्द ने लोगों को दहशत में डाल रखा है। सरकारी आंकड़े डराने वाले हैं कि इस साल की पहली तिमाही में नागरिकों से इस धोखाधड़ी के जरिये एक अरब बीस करोड़ की ऑनलाइन लूट हुई। बीते रविवार को मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा इस संकट का जिक्र करने के बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय विमर्श में आ गया। उन्होंने देशवासियों से इस भय से मुक्त होने का आह्वान किया और कहा कि उन्हें इससे बचने के लिये सजगता का मंत्र अपनाना है। उन्होंने लोगों से कहा कि वे घबराएं नहीं। साथ ही कहा कि सरकारी एजेंसियां कभी व्हाट्स ऐप या स्काइप आदि माध्यमों के जरिये नागरिकों से संवाद नहीं करती हैं। ये एजेंसिया कभी भी पैसे की मांग नहीं करती हैं। तेजी से पनप रहे इस संकट से बचने के लिये उन्होंने मंत्र दिया कि रुको, सोचो और एक्शन लो। दरअसल, भयादोहन करके लोगों को लूटने वाले व्हाट्स ऐप आदि से कॉल करके डराते हैं कि वे पुलिस, सीबीआई, आरबीआई या नारकोटिक्स विभाग से बोल रहे हैं।
कभी कहा जाता है कि पकड़ी गई नशे की खेप में उनकी भूमिका है। कहा जाता है कि ड्रग्स वाले पार्सल जब्त होने के बाद यह सूचना दी जा रही है। उनसे कहा जाता है कि या तो वे मोटी रकम जमा करें या फिर परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहें। दरअसल, ये शातिर अपराधी यह दावा करते हैं कि ठगे जाने वाले व्यक्ति के बारे में वे बहुत कुछ जानते हैं। भय व अज्ञान के कारण बहुत सारे भोले-भाले लोग उनके बिछाए जाल में फंसकर मोटी रकम चुका देते हैं। यह विडंबना ही है कि नागरिकों को डिजिटली सशक्त करने के लिए भारत सरकार के महत्वाकांक्षी डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ने सफलता तो पाई लेकिन लोगों को साइबर अपराधों के प्रति संवेदनशील भी बना दिया।
कुछ महीने पहले एक बेहद चौंकाने वाला डिजिटल अरेस्ट का घटनाक्रम सामने आया। खुद को सीबीआई अधिकारी बताने वाले एक अंतर्राज्यीय गिरोह ने पद्मभूषण से सम्मानित और वर्धमान समूह के चेयरमैन एसपी ओसवाल से सात करोड़ रुपये की ठगी की थी। उन्हें दो दिनों तक डिजिटल भयचक्र में रखा गया। उन्हें किसी को फोन करने या संदेश भेजने से रोका गया। इतना ही नहीं जालसाजों ने वीडियो कॉल के जरिये सुप्रीम कोर्ट की फर्जी सुनवाई आयोजित की। कल्पना कीजिए इतने प्रभावशाली व्यक्ति को जब साइबर अपराधियों ने असहाय बना दिया, तो आम आदमी की क्या गति होगी? निस्संदेह, इससे बचने के लिये लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है। खासकर उन बुजुर्गों को जो ऑनलाइन व्यवहार के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं हैं।
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