महात्मा गांधी एक वास्तविक हकीकत
- प्रो. एनएल मिश्र
दो अक्टूबर महात्मा गांधी जी की जन्मतिथि है।उस महापुरुष की जयंती जो समूचे विश्व का पथ प्रदर्शक है। दुनिया में जहां चारो तरफ हाहाकार मची है,वर्चस्व के लिए निर्दोषों की जान ले रही है।नवह दुनिया इतना निराश और हताश क्यों है। यह दुनिया इतना परेशान क्यों है?मरोज रोज हजारों लोग लेबनान और यूक्रेन में मारे जा रहे हैं। इन मौतों में निर्दोषों की भी मौतें हैं। आखिर उन्हें क्या चाहिए। हथियारों की होड़ और वर्चस्व की लड़ाई में दोनो तरफ की जनता अपना जान गवां रही है क्या इस चाहत का कोई अंत है।

आज दुनिया जिधर मुंह किए खड़ी है वह मानवता के खिलाफ है। साउथ अफ्रीका में लंबे संघर्ष के बाद भी कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। आखिरकार एक काले व्यक्ति ने अमेरिका के खुले आसमान में खुली हवा लेने और अपने बच्चों को खुशहाली से जीने का सपना देखा था और ये सपने गांधी जी के बताए रास्ते से खुले भी।नेल्सन मंडेला ने उसी महात्मा के सिद्धांत को अमल में लाया और वहां युद्ध का अंत किया।मार्टिन लूथर किंग के देखे सपने सच हुए और बराक ओबामा अमेरिका के अश्वेत राष्ट्रपति बने।लेकिन नागासाकी और हिरोशिमा ने कोई आदर्श प्रस्तुत नही किए।
        आज भारत वर्ष विश्व गुरु बनने की राह पर आगे बढ़ना चाहता है पर गांधी जी के रास्ते को पकड़े बिना वहां पहुंच पाना संभव नहीं है।हम अमेरिका और चीन बनकर वहां नही जा सकते।हम गांधी जी के आदर्शों और भारतीय संस्कृति के बारीक तंतुओं के सहारे उस मुकाम को हासिल कर सकते हैं।भारतीय संस्कृति के तत्व और गांधी जी के आदर्श अलग न होकर एक ही है।हमारे संस्कृति में न जाने कितने ऐसे तत्व हैं जो हमे विश्व गुरु बनाने में सक्षम हैं।गांधी जी ने तो मात्र सत्य और अहिंसा को अपना हथियार बनाया था।आज का राष्ट्रवाद उसी रास्ते को खोज रहा है और उसे खोजना भी चाहिए क्योंकि इसके अलावा राष्ट्रवाद फल फूल नही सकता।सत्य और अहिंसा उसके लिए बीज और खाद है।
       गांधी जी ने प्राथमिक शिक्षा,तकनीकी शिक्षा और उच्च शिक्षा के लिए भी अपने विचार दिए हैं।संभव है बढ़ती जनसंख्या उस शिक्षा के क्रियान्वयन में बाधा डालती हो पर तकनीकी शिक्षा तो देने का संकल्प इस सरकार ने लिया है और उसे क्रियान्वित करने की कोशिश भी हो रही है।लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में गांधी जी का वह कथन कि"यहां हर हाथ को काम देना चाहिए और यहां बड़ी बड़ी मशीनों की आवश्यकता नहीं है क्योंकि लोग मिल जुलकर सभी काम कर डालेंगे" यह उतना सटीक नही लगता जिसकी हमे आज जरूरत है।देश में विदेश में गांधी जी की प्रासंगिकता और उनके आदर्श दिन प्रतिदिन महत्वपूर्ण होते जा रहे है जब दुनिया भौतिक चकाचौध को ही अपना पड़ाव मान बैठी हो।हम रहेंगे,शान से रहेंगे,मेरा अधिकार रहेगा,मेरी मर्जी चलेगी और इसके अतिरिक्त कुछ भी नही होगा ऐसे में हमारी संस्कृति का वह अंग और मूल्य सत्य एवं अहिंसा के रूप में अमिट होकर प्रत्यक्ष हो रहे हैं।शांति का कोई विकल्प नहीं होता किंतु समाज के कुछ दुर्योधन अपने हठ को ही सर्वोपरि मानने लगते हैं और आपस में वर्षो से युद्ध में उलझे हुए हैं।
           धर्म मानवता को मानवता के चरमोत्कर्ष पर पहुंचाने का साधन है।उसी धर्म ने गांधी जी के चिंतन में आमूल चूल परिवर्तन ला दिया और गांधी जी के हाथ में गीता हमेशा सुशोभित होती थीं।यह क्षमता भारतीय संस्कृति में ही हो सकती है।स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात भारतीय राजनीतिक दलों में तमाम मतभेदों के बावजूद सांस्कृतिक तत्वों पर कभी मतभेद की गुंजाइश नहीं पनप पाती क्योंकि भारतीय संस्कृति के तत्व अकाट्य और शाश्वत हैं।इसीलिए हम वर्चस्व की बात नहीं करते अपितु वसुधैव कुटुंबकम् की बात पर यकीन रखने वाले हैं।यही पर भगवान कृष्ण जन्म लेते हैं  और अधर्म का नाश करके धर्म को पुनः स्थापित भी करते हैं।अर्थात भारतीय संस्कृति में एक तरफ करुणा है तो दूसरी तरफ संघार भी है।


          आज गांधी जी उस महा नायक की याद बरबस सजीव हो उठती है जब दुनिया बारूद के ढेर पर बैठकर अट्टहास करती है और यकीन का भ्रम भी पालती है कि उनके पास शांति का बम है और उस शांति बम से दुनिया में शांति कायम की जा सकती है। कम से कम भारतीयों को उस महामानव के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने का दिन है जिसने शांति के लिए सत्य और अहिंसा को हथियार का रूप दिया।
(महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट)

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