राजनीति में शुचिता जरूरी
इलमा अजीम
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जब चुने हुए जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार के मामलों में घिरते नजर आते हैं तो चिंता होना स्वाभाविक है। यह इसलिए भी कि एक दौर हमारी सियासत में ऐसा भी रहा है जब नेताओं ने खुद के खिलाफ महज आरोप लगने पर ही पद छोड़ दिए। आज के दौर में तो राजनेता, राजनीति के मैदान में भ्रष्टाचार के अंधियारे को अपने जश्न का न केवल माध्यम बना रहे हैं बल्कि आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में भी उलझे नजर आते हैं। देश ने वह दौर भी देखा है जब हवाला प्रकरण में खुद पर आरोप लगते ही लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देते हुए आडवाणी ने ऐलान कर दिया था कि जब तक उन्हें भ्रष्टाचार के इस आरोप से मुक्ति नहीं मिल जाती वे सदन में कदम तक नहीं रखेंगे। इसके बाद उन्होंने 1996 का चुनाव भी नहीं लड़ा। इसके विपरीत ताजा प्रकरण कर्नाटक में देखने को मिला है। वहां के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर जमीन से जुड़े घोटाले के आरोप लगे हैं। पिछले महीने जहां कर्नाटक के राज्यपाल ने सिद्धारमैया के खिलाफ जांच को मंजूरी दी थी वहीं दो दिन पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस जांच के खिलाफ सिद्धारमैया द्वारा दायर की गई याचिका को भी खारिज कर दिया। अब इस मामले में जहां भाजपा सिद्धारमैया का इस्तीफा मांग रही है वहीं सिद्धारमैया एवं कांग्रेस इसे षडयंत्र की संज्ञा दे रहे हैं।
राजनीति की ही एक और चिंताजनक तस्वीर तब सामने आई जब दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुए बीते दिनों भ्रष्टाचार के मामले में जेल से बाहर आए अरविन्द केजरीवाल का उनकी पार्टी के शीर्ष नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं ने ऐसा जश्न मनाया मानो वे भ्रष्टाचार के मामले में अदालत से बरी कर दिए गए हों। सर्वोच्च न्यायालय ने जिन कठोर शर्तों पर उन्हें जमानत दी, उनके बावजूद ऐसा माहौल बनाया गया कि जैसे उन पर बीते दो सालों में लगे भ्रष्टाचार के सारे आरोप समाप्त हो गए हों। ऐसा ही माहौल कुछ महीने पहले झारखंड में देखने को मिला था जब भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल गए हेमंत सोरेन को जमानत मिली थी। उस दौरान भी सोरेन एवं उनकी पार्टी ने ऐसा माहौल बनाया था कि मानो वे भी अदालत से आरोपमुक्त होकर बाहर आए हों।
एक बात तो साफ है कि आरोप-प्रत्यारोप का जो माहौल झारखंड एवं दिल्ली में रहा, वही अब कर्नाटक में भी देखने को मिलेगा। भ्रष्टाचार के आरोप इससे पहले और भी कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर लग चुके हैं, और कुछ को तो पद छोडक़र जेल तक जाना पड़ा था। लेकिन चिंता इसी बात की है कि शुचिता की राजनीति के बजाए हमारे नेता भ्रष्टाचार में नाम आने पर भी पद से चिपके रहना चाहते हैं।
स्वतंत्र पत्रकार ,मेरठ
No comments:
Post a Comment