मुंशी प्रेमचन्द हिंदी या उर्दू के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लेखक हैं : आरिफ नकवी

 मुंशी प्रेमचंद की कला, शैली और चरित्रों से हमें प्रेमचंद के समाज का अच्छा अंदाज़ा मिलता है। : प्रो. रेशमा परवीन 

उर्दू विभाग, सीसीएसयू में "मुंशी प्रेमचंद के कला पर विचार" विषय पर ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन

मेरठ।  मुंशी प्रेम चंद एक अंतर्राष्ट्रीय लेखक हैं। मुंशी प्रेमचंद हिंदी या उर्दू के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लेखक हैं। मुंशी प्रेम चंद ने उस समय लिखना शुरू किया था जब बहुत कम सुविधाएं उपलब्ध थीं।

  मुंशी प्रेम चंद की रचनाओं में हम उस दौर का माहौल देख सकते हैं उस युग में जो समाज था, वहां गरीबी, प्रतिकूल वातावरण, किसी भी आंदोलन से मुक्ति और स्वतंत्र दृष्टिकोण के साथ कोई अन्य लेखक दिखाई नहीं देता। लेकिन इस कठिन कार्य को प्रेमचंद ने बड़े साहस के साथ किया। मुंशी प्रेम चंद ने हिंदी, उर्दू के साथ-साथ अंग्रेजी में भी अपनी विशिष्टता दिखाई। उनकी कई कहानियों का  अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। ऐसे लेखक हर जगह देखने को मिलते हैं। ये शब्द थे जर्मनी के जाने-माने लेखक आरिफ नकवी के, जो चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग और इंटरनेशनल न्यू उर्दू स्कॉलर्स एसोसिएशन (आईयूएसए) द्वारा आयोजित "मुंशी प्रेमचंद का फिक्रो फन" कार्यक्रम में शामिल हुए। 

   कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी द्वारा पेश की गई तिलावत से हुई। कार्यक्रम में डॉ. विद्या सागर सिंह (हिंदी विभाग), डॉ. शादाब अलीम एवं डॉ. अलका वशिष्ठ (उर्दू विभाग)औरडॉ. शुचि गुप्ता(इतिहास विभाग) ने वक्ता के रूप में भाग लिया। जबकि विशेष वक्ता के रूप में आयुसा की अध्यक्षा प्रो. रेशमा परवीन ने भाग लिया.

  विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. इरशाद सयानवी ने कहा कि किसी भी लेखक या कलाकार की जीवन के प्रति भावनाएं और विचार ही उसकी मुख्य पूंजी होती है और इसी पूंजी से वह मोती चुनता है और अपनी कला में आता है ऐसे कलाकारों में मुंशी प्रेम चंद अग्रणी हैं। मुंशी प्रेमचंद अपनी रचनाओं के माध्यम से आज भी जीवित हैं।

  इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. असलम जमशेदपुरी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध और आलोचनात्मक रचनाएँ भी कीं। जितनी अच्छी कहानियाँ प्रेमचंद की हैं उतनी किसी अन्य कथाकार की नहीं। उनकी रचनाएँ ग्रामीण पृष्ठभूमि पर लिखी गई हैं लेकिन ग्रामीण पृष्ठभूमि पर लिखे गए उनके उपन्यासों और कथाओं से शहरवासी भी काफी प्रभावित हुए हैं।

  डॉ. विद्यासागर ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद पूर्णतः सामाजिक व्यक्ति थे। उन्होंने किसी धर्म या आंदोलन का प्रभाव नहीं लिया बल्कि प्रेमचंद ने साझी हिंदू-मुस्लिम सभ्यता को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।

   प्रो. रेशमा परवीन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचंद के विचारों और कला पर आधारित आज के कार्यक्रम की अपनी विशिष्टता है, इसलिए हम सभी का कर्तव्य है कि हम आज के कार्यक्रम के लिए मुंशी प्रेमचंद को प्राथमिकता दें. उन्हें कथा लेखकों का इमाम क्यों कहा जाता है? इस अवसर पर डॉ. शादाब अलीम ने प्रेमचंद की कहानी पर सुंदर विश्लेषण प्रस्तुत किया।

  कार्यक्रम में डॉ. आसिफ अली, डॉ. ताबिश फरीद, सैयदा मरियम इलाही, मुहम्मद शमशाद, शाहे जमन, उजमा सहर आदि जुड़े रहे।

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