स्ट्रोक इलाज में नई क्रांति: जान बचाने की समय सीमा अब 24 घंटे

 नई दिल्ली।स्ट्रोक पूरी दुनिया में मौत और अपंगता के बड़े कारणों में से एक है। भारत में, हर 40 सेकंड में एक स्ट्रोक होता है, और हर चार मिनट में एक व्यक्ति की स्ट्रोक से मौत हो जाती है। हाल ही में स्ट्रोक के इलाज में हुई महत्वपूर्ण प्रगति ने इलाज का समय बढ़ाकर 24 घंटे तक कर दिया है। इस नए बदलाव ने स्ट्रोक के इलाज को बेहतर बनाया है और उन मरीजों के लिए नई उम्मीदें पैदा की हैं, जो पहले इलाज के लिए तय समय सीमा से बाहर होते थे।

स्ट्रोक तब होता है जब ब्रेन के किसी हिस्से में खून की सप्लाई रुक जाती है या कम हो जाती है, जिससे ब्रेन को ऑक्सीजन और जरूरी न्यूट्रिएंट्स नहीं मिल पाते। इसका जल्दी से जल्दी इलाज होना जरूरी है ताकि ब्रेन को कम नुकसान हो और बेहतर नतीजे मिल सकें।

डॉ. सुमित गोयल, डायरेक्टर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट - न्यूरोसर्जरी विभाग, यथार्थ अस्पताल, ग्रेटर नोएडा कहते हैं, "स्ट्रोक के इलाज में यह नई प्रगति उन मरीजों के लिए एक नई रोशनी लेकर आई है, जो पहले इलाज के लिए समय से बाहर हो जाते थे। पहले, स्ट्रोक के इलाज की सीमा सिर्फ 4.5 घंटे होती लेकिन अब हम 24 घंटे तक भी ऐसे मरीजों का इलाज कर सकते हैं और हम उन्हें बेहतर जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।हैं।"

पहले, इस्केमिक स्ट्रोक का इलाज करने के लिए इंट्रावीनस थ्रोम्बोलाइसिस का समय सीमा 4.5 घंटे तक सीमित था। इसी तरह, मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी, जिसमें बंद नसों से ब्लड क्लॉट को हटाया जाता है, केवल 6 घंटे के अंदर किया जा सकता था। इन सीमित समय के कारण, कई मरीज इस जीवनरक्षक इलाज का लाभ नहीं उठा पाते थे, खासकर जो रात के समय स्ट्रोक का शिकार होते थे या जल्दी अस्पताल नहीं पहुंच पाते थे।

लेकिन, न्यूरोइंटरवेंशनल तकनीकों में हाल के सुधारों ने इस्केमिक स्ट्रोक के इलाज के लिए समय सीमा को 24 घंटे तक बढ़ा दिया है। नई एडवांस इमेजिंग तकनीकों की मदद से अब डॉक्टर यह जान सकते हैं कि ब्रेन का कौन सा हिस्सा अभी भी बचाया जा सकता है, जिससे देर से इलाज का सही फायदा उठाया जा सकता है।

हालांकि, इन बेहतरीन तकनीकों का फायदा सभी को नहीं मिल पाता। भारत के कई हिस्सों में एडवांस इमेजिंग और न्यूरोइंटरवेंशनल सुविधाओं की कमी है, और स्ट्रोक के लक्षणों की जानकारी भी जरूरी है। फिर भी, 24 घंटे की समय सीमा का विस्तार स्ट्रोक के इलाज में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो मरीजों के बेहतर नतीजे और कम अपंगता के रूप में सामने आ रहा है। भविष्य में और भी बेहतर तकनीकों के साथ, स्ट्रोक के मरीजों के लिए एक उज्जवल भविष्य की उम्मीद की जा सकती है।

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