छोडऩी होगी पुरानी लीक
इलमा अजीम
भारत कोरानाकाल की आर्थिक अनिश्चितता से करीब-करीब उबर चुका है। अब देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए नीतिगत ठोस कदम उठाने चाहिए, लेकिन पुराने ढर्र्रे को छोड़कर कुछ नवाचार पर भी ध्यान देना होगा। निवेश शक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हुए बुनियादी ढांचे और विनिर्माण को बढ़ावा देना होगा। सड़कों, बिजली ग्रिड और डिजिटल नेटवर्क जैसी महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने की सतत जरूरत है ताकि नए रोजगार पैदा किए जा सकें।
यदि नेटवर्क कनेक्टिविटी बढ़ेगी तो आगे निवेश आकर्षित होगा जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी बुनियादी ढांचे के अंतर को पाटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके साथ ही व्यवसाय के अनुकूल माहौल बनाने और टारगेट प्रोत्साहन की पेशकश करने से घरेलू और विदेशी कंपनियों को विनिर्माण में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा सकता है। इससे न केवल आयात पर निर्भरता कम होगी बल्कि निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा जो रोजगार सृजन को एक नई ऊर्जा प्रदान कर सकता है। साथ ही मानव शक्ति का कौशलयुक्त सशक्तीकरण और व्यवसाय जगत में उत्साह पैदा करना भी जरूरी है। कौशल विकास से युवाओं को कुशल बनाना या उन्हें पुन: कुशल (रीस्किल) बनाने पर ध्यान केंद्रित करने से रोजगार की स्थितियां सुधर सकती हैं। मगर सनद रहे कि आइटीआइ और पॉलिटेक्निक के पुराने ढर्रे से बचना होगा। अब हमें बाजार, प्रयोग और क्वालिटी आधारित प्रशिक्षण पर ध्यान देना ही होगा। ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों को उद्योग की जरूरतों के साथ जोड़कर उत्पादकता और नवाचार दोनों को बढ़ावा देना होगा। सरकार की स्थाई नौकरी का तिलिस्म अब भी स्टार्टअप, इनोवेशन, कॉर्पोरेट सैलरी पर भारी पड़ रहा है। असल में भारत में सरकारी नौकरी में सुविधाओं की भरमार और जिम्मेदारी के अभाव ने कई जटिल समस्याएं पैदा की हैं। कर्मचारी चाहे वह निजी क्षेत्र का हो या सरकारी क्षेत्र का, सरकार की नजर में सिर्फ कर्मचारी होना चाहिए। सरकार स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा, महंगाई भत्ता, हाउसिंग जैसी सुविधाओं में सरकारी कर्मचारियों के साथ ही निजी कर्मचारियों के लिए भी नीति बनाकर एक आनुपातिक संतुलन स्थापित कर सकती है। अर्थात उपभोग एवं सृजन के दोनों पहिए अन्य पहियों एवं तंत्रों के साथ मिलकर ही देश को आर्थिक महाशक्ति बना सकते हैं।
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