पूरे देश में एक सामान रियायती दरों पर दाम निश्चित करें दवा कंपनियां - गोपाल अग्रवाल
एक्सपायरी दवा को वापस लेने का समय तीन माह के बजाय एक साल हो
उत्तर प्रदेश केमिस्ट संघर्ष समिति की बैठक का आयोजन
मेरठ। सोमवार को गढ़ रोड स्थित एक होटल में उत्तर प्रदेश के केमिस्टों की केंद्रीय संघर्ष समिति की बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में समिति ने दवा निर्माताओं के तीनों बड़े इडमा संगठनों ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ फार्मास्यूटिकल प्रोड्यूसर्स ऑफ़ इंडिया ,इंडियन फार्मास्यूटिकल्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन तथा "फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन के समक्ष तीन मांगों को रखा है तथा इन तीनों मांगों का अनुमोदन उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले से हो रहा है।
सोमवार को जनपद की कार्य समिति ने बैठक कर इन तीनों मांगों को अनुमोदित कर दिया। इन तीनों मांगों के पूरा होने पर दवा विक्रेताओं को शोषण से मुक्ति मिलेगी और उपभोक्ता वर्ग को मूल्य में रियायत तथा उपलब्धता में सुलभता मिलेगी।
समिति के सस्थापक गोपाल अग्रवाल ने कहा उनकी पहली मांग है दवा की एक्सपायरी को खुदरा व्यापारी से वापस लेने का समय तीन माह से बढ़कर 1 वर्ष किया जाए। कोई भी रिटेलर रोजाना दो-तीन घंटे खराब करके एक्सपायरी नहीं छांट सकता। एक साल की सुविधा मिलने पर उपभोक्ता को दवाई देते में जब भी एक्सपायरी हाथ में आएगी, उसको एक अलग टोकरी में डालता चला जाएगा। 1 वर्ष में उसको दो-चार दिन अवश्य मिल जाएंगे जब पूरी दुकान की बची-खुची एक्सपायरी छांट सकेगा। इसी प्रकार होलसेलर के लिए यह समय 6 महीने किया जाना चाहिए। इससे समाज में रोगी के हाथ एक्सपायर दवाई की शिकायत सदैव के लिए मिट जाएगी।दूसरी मांग है कि कंपनियां चिकित्सकों और चिकित्सालयों को सीधी दवा की आपूर्ति बाजार के मुकाबले सस्ती दर पर ना करें। बेहतर होगा कि कंपनियां एमआरपी कम कर चिकित्सकों और मेडिकल स्टरों के लिए पूरे भारत में एक समान रियायती दाम निश्चित करें। केवल डॉक्टर के लिए दाम कम करने से इसका लाभ रोगी को नहीं मिलता क्योंकि डॉक्टर अपने यहां से तो एमआरपी पर ही दवाई बेचते हैं जबकि दवाई वाले प्रतिस्पर्धा में भारी डिस्काउंट दे देते हैं। अनेकों जगह डॉक्टर अपनी दवा के ब्रांड की मोनोपोली कर लेते हैं जिसके कारण मरीज को अपने घर के नजदीकी मेडिकल स्टोर से वह दवा नहीं मिल पाती है।तीसरी मांग है कि कंपनियों द्वारा सप्लाई केवल दवा विक्रेता की डिमांड पर हो। वर्तमान में यह चल निकला है कि कंपनियां अपनी मर्जी से दवा की आपूर्ति कर देती हैं और दवाई वाले से भुगतान अग्रिम लिए हुए ब्लैंक चेक को बैंक में प्रस्तुत कर प्राप्त कर लेती हैं। बाद में यह दवाएं या तो कंपनी को वापस होती हैं या नष्ट की जाती हैं। इससे दवा विक्रेता की तरल पूंजी के प्रवाह में बाधा होती है और उसे व्यापार में नुकसान हो जाता है।
उन्होंने बताया विगत 16 जून को कानपुर में प्रदेश की संघर्ष समिति का गठन किया गया था जिसमें प्रदेश में कार्य कर रहे सभी संगठनों को आमंत्रित कर सुझाव रखा गया की दवा विक्रेताओं की समस्याओं का सदैव के लिए समाधान निकालने का अब संघर्ष एकमात्र विकल्प रह गया है। यदि कहीं छोटे-बड़े संगठन स्वार्थवश दवा निर्माता के साथ जुड़े हुए हैं तो उनसे भी आग्रह किया गया कि वे केमिस्ट भातृत्व को ध्यान में रखते हुए मूल धारा में वापस लौट आएं, उनका हार्दिक स्वागत रहेगा। प्रदेश संघर्ष समिति ने चेतावनी दी यदि मांगे नहीं माननी गयी तो आगामी 5 अगस्त को मेरठ में होने वाले प्रदेश कार्य समिति की बैठक में आंदोलन की घोषणा की जाएगी। बैठक में दिनेश गोयल, कविन्द्र दुग्गल, मनोज अग्रवाल, कपिल चडढा, विशाल गुप्ता, सचिन गोयल, देविन्द्र भसीन, रामअवतार , अरूण शर्मा, सुधीर चौधरी आदि मौजू रहे।
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