परीक्षा घोटालों के जिम्मेदार कौन ?

- डा. वरिंद्र भाटिया
नीट परीक्षा को लेकर पूरे देश के शिक्षा जगत में जबरदस्त मायूसी की लहर देखने को आ रही है। इस मेडिकल प्रवेश परीक्षा के आयोजन से जुड़ी अनेक अनियमितताएं विदित हो रही हैं। नीट परीक्षा एनटीए (राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी) आयोजित कराती है। देश भर के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस और बीडीएस यानी डॉक्टरी की व दांतों की डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए करीब एक लाख सीटें हैं। इनमें से करीब 40 हजार सीटें सरकारी कॉलेजों में हैं। 60 हजार के करीब सीटें प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में हैं। प्रवेश का खेल इन्हीं 40 हजार सीट्स के लिए होता है, क्योंकि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में 5 साल के कोर्स के लिए एक से सवा करोड़ रुपए तक लगते हैं, जबकि सरकारी मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई के लिए 5 साल में औसतन सिर्फ 5 लाख रुपए ही लगते हैं।



इस बार 5 मई को पूरे देश में नीट की परीक्षा आयोजित हुई थी। कुल 23 लाख 33 हजार 297 छात्रों ने परीक्षा दी थी। एग्जाम का रिजल्ट पहले 14 जून को आना था, मगर 10 दिन पहले 4 जून को घोषित कर दिया गया। इस बार रिजल्ट आया तो कई तरह की खामियां नजर आईं। धीरे-धीरे आवाज उठी तो यह पूरा एग्जाम ही दाल में काला नजर आने लगा। मीडिया पर उपलब्ध एक न्यूज रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के एक नामवर जिले में पैसों के दम पर पूरा का पूरा सेंटर ही बिक गया था। एक स्कूल में नीट का एग्जामिनेशन सेंटर था। इस सेंटर में 30 छात्रों को गलत तरीके से एग्जाम दिलवाया जा रहा था। यहां गुजरात के लोकल स्टूडेंट्स तो थे ही, लेकिन यहां पर महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों से भी स्टूडेंट्स आए थे।


अब कोई छात्र अपने प्रदेश को छोडक़र गुजरात के इस सेंटर में जाकर परीक्षा क्यों देगा? क्योंकि इस सेंटर पर बच्चों को पास कराने की पूरी सेटिंग हो चुकी थी। इन सारे बच्चों के माता-पिता से लाखों रुपए लिए गए थे। यहां इन छात्रों से कहा गया था कि उन्हें जितने सवाल आते हों, अपनी आंसर शीट में मार्क कर दें, बाकी सेंटर पर मौजूद लोग देख लेंगे, क्योंकि एक बार एग्जाम का वक्त खत्म होने से लेकर सारी कॉपियां पैक होकर भेजने तक में ढाई से तीन घंटे का वक्त लगता है। एग्जाम खत्म होने के सिर्फ आधे घंटे के भीतर कई सारे बड़े कोचिंग सेंटर सारे सवालों की आंसर की, यानी सही जवाब ऑनलाइन जारी कर देते हैं। इस सेंटर के कर्मचारियों को उन्हीं आंसर की की मदद से सारे छात्रों की ओएमआर शीट पर सही आंसर को सर्किल कर देना था। इस तरह से यह सारे छात्र पास हो जाते, लेकिन यह सब हो पाता, उससे पहले ही जिला प्रशासन को यह सूचना मिल गई। उन्होंने इस सेंटर को अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद प्रशासन की देखरेख में फिर यह एग्जाम हुआ। अब जब एक सेंटर पर यह हो सकता है तो फिर देश के किसी भी सेंटर पर यह सेटिंग हो सकती है। गड़बडिय़ां तो कई सारे सेंटरों में हुई हैं, लेकिन बस कुछ गड़बडिय़ों का ही पता चल रहा है। हरियाणा के एक परीक्षा केंद्र का घटनाक्रम सोशल मीडिया पर हैरान करने वाला है। एग्जाम पेपर सरकारी बैंकों के पास होता है और एग्जाम वाले दिन वहीं से एग्जाम सेंटर पर पहुंचता है। ऐसे एग्जाम के दो अलग-अलग प्रश्न पत्र होते हैं।


एक वो जो सभी छात्रों को मिलता है और दूसरा वो जो इमरजेंसी के लिए होता है। मगर, ऐसा नहीं हो सकता कि कहीं इमरजेंसी वाला प्रश्न पत्र इस्तेमाल हो और कहीं सामान्य वाला इस्तेमाल हो। इन प्रश्न पत्रों में सवाल आगे-पीछे होते हैं, लेकिन सारे सवाल एक जैसे ही होते हैं। सुनते हंै कि इस एग्जाम सेंटर पर सामान्य और इमरजेंसी दोनों प्रश्न पत्र पहुंचा दिए गए। यदि यह सच निकलता है तो किसकी जिम्मेवारी तय होती है? इस केंद्र पर खबरों के मुताबिक छात्रों को एग्जाम सॉल्व करने के लिए इमरजेंसी प्रश्नपत्र दे दिया गया, यानी देश के बाकी छात्रों के लिए नीट की परीक्षा देने के लिए सामान्य प्रश्न पत्र था और इस सेंटर पर उन्हें वह प्रश्न पत्र दिया गया जो इमरजेंसी के लिए था। जिन छह छात्रों को पूरे 720 माक्र्स मिले हैं, उन्होंने यही एग्जाम पेपर सॉल्व किया था।
कहना ही होगा कि जैसे-जैसे परीक्षा के तरीके आधुनिक होते गए, तो शिक्षा माफिया से जुड़े कुछ लोग भी ‘जहां चाह, वहां राह’ बनाते गए। उनके जाल से कोई राज्य या परीक्षा बाहर नहीं रहती है। देश का शायद ही कोई राज्य होगा और शायद ही कोई परीक्षा होगी, जहां धांधली का ग्राफ ऊंचा ही ऊंचा उठता न गया हो। परीक्षाएं ऑनलाइन होने के बाद तो जैसे परीक्षा घोटालों में तेजी आई है और घोटालेबाज खुलेआम व्यवस्था को चुनौती देते नजर आ रहे हैं। इसकी वजह नौकरियों के घटते मौके हों या कुछ और, लोग भी इन परीक्षाओं में पास होने के लिए लाखों की रकम देने को तैयार बैठे हैं। जानकार मानते हैं कि हर साल यह धंधा कई सौ करोड़ रुपए का होता है। ऑनलाइन परीक्षा की हामी भरने वाले मानते हैं कि जब परीक्षाएं ऑनलाइन होने लगीं तो कहा गया कि इनमें धोखाधड़ी संभव नहीं है। इनमें प्रश्नपत्र कागज पर नहीं छपते।
विशेषज्ञ सवालों का बैंक तैयार करते हैं और सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम उन्हें चुनता है। प्रश्नपत्र टेस्ट सेंटर पर भेजे जाने से पहले एनक्रिप्टेड होते हैं। परीक्षार्थी के क्लिक करने पर ही वह खुलता है। परीक्षार्थियों के प्रश्नपत्र भी अलग-अलग होते हैं। इसके बावजूद हम चैन से नहीं बैठ सकते, क्योंकि गड़बड़ी करने वाले नए-नए तरीके तलाशते रहते हैं। धांधलीबाजों ने विदेशी संस्थानों में दाखिले के लिए होने वाली परीक्षाओं को भी नहीं बख्शा है। ऑनलाइन में जो घोटाला होता है, उसे बाद में पकडऩा मुश्किल है, क्योंकि बाद में सर्वर से डेटा हटा दिया जाता है। अगर गड़बड़ी करने वालों को पकड़ भी लिया, तो उसे साबित करना और कठिन होता है। पिछले कई वर्षों से शैक्षणिक-प्रशासनिक संस्थानों ने ऑनलाइन परीक्षा तो शुरू कर दी, लेकिन इसका जिम्मा निजी कंपनियों को दे दिया जाता है। क्या इनकी ईमानदारी पर शक किया जा सकता है? आज परीक्षा घोटालों से शायद ही कोई प्रदेश अछूता हो। प्रवेश परीक्षाओं का दबाव इतना अधिक होता है कि अनेक परीक्षार्थी असफल होने पर खुदकुशी कर लेते हैं।


उपरोक्त विश्लेषण से लगता है कि इन परीक्षा घोटालों के लिए शिक्षा के धंधेबाजों का पैसे का लालच, कुछ तथाकथित कोचिंग सेंटरों की शमूलियत, परीक्षा के संचालन से जुड़े कुछ लोगों के ईमान का बिकाऊ होना, ऑनलाइन परीक्षा का फुलप्रूफ न होना और हमारे लिए पर्याप्त संख्या में कम खर्चे वाले मेडिकल शिक्षा संस्थानों का न होना आदि बातें जिम्मेवार हैं। बहरहाल, इस घोटाले से प्रभावित छात्रों को न्याय मिलना चाहिए।
(कालेज प्रिंसिपल)

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