हादसों के सबक की जरूरत
इलमा अजीम
बीते दिनों पश्चिम बंगाल में जो रेल दुर्घटना हुई थी, उसमें 10 लोगों को अपनी जिंदगी खोनी पड़ी। दुर्घटना कोई भी हो, विध्वंस होती है। दुर्घटना की शुरुआती रपटें इसे ‘मानवीय चूक’ करार दे रही हैं। संभव है कि ऐसा ही हो, लेकिन रेलवे सुरक्षा आयुक्त की सम्यक जांच के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि टक्कर का बुनियादी कारण क्या था? जांच में यह तथ्य भी विचाराधीन होना चाहिए कि मालगाड़ी का लोको पायलट लगातार चार रातों से सोया नहीं था। यह भी अमानवीय नौकरी है। नियम अधिकतम दो रात लगातार ड्यूटी करने की अनुमति देते हैं। यह भी अमानवीय नियम है। वैकल्पिक लोको पायलटों की व्यवस्था होनी चाहिए। यह कैसे होगा, क्योंकि रेलवे में बीते 10 सालों से करीब तीन लाख पद खाली पड़े हैं।
उनमें 21 फीसदी लोको पायलट के पद हैं। उन्हें कब भरा जाएगा? वे तो स्वीकृत और अधिकृत पद हैं, फिर सरकार को इन पदों को भरने में क्या दिक्कत रही है? खुद रेलवे बोर्ड का मानना है कि लोको पायलट की लगातार कई घंटों, दिनों की नौकरी भी बड़े हादसों का बुनियादी कारण है। ‘कवच’ एक ऑटोमैटिक रेल सुरक्षा सिस्टम है, जिसे स्वदेशी तौर पर ही विकसित किया गया है। सवाल है कि बालासोर रेल हादसे के बाद एक भी रूट किलोमीटर ‘कवच’ प्रणाली स्थापित क्यों नहीं की जा सकी? इसका जवाब रेल मंत्री देंगे अथवा जांच के बाद कोई यथार्थ सामने आएगा! अभी तक 1465 रूट किमी और 139 रेल इंजनों पर ही ‘कवच’ स्थापित किया गया है। यह स्थिति फरवरी, 2024 की है और दक्षिण मध्य रेलवे में ही यह व्यवस्था की गई है। बताया जाता है कि कई हजार रूट किमी पर ‘कवच’ प्रणाली के लिए टेंडर दे दिए गए हैं। वे कब तक इस सुरक्षा प्रणाली को स्थापित कर देंगे, ताकि कोई भी अमूल्य जिंदगी गंवानी न पड़े? ‘कवच’ ही सुरक्षा की 100 फीसदी गारंटीशुदा व्यवस्था नहीं है। सिग्नल और इंटरलोकिंग सरीखी तकनीकी समस्याएं हैं, जिनके कारण रेलवे टकराव होते हैं और त्रासद हादसे सामने आते हैं। हालांकि बालासोर दुर्घटना के बाद कुछ प्रयास किए गए थे, ताकि ये विसंगतियां कम की जा सकें। सवाल यह भी पूछा जाना चाहिए कि भारतीय रेल की व्यापकता को अपेक्षाकृत सुरक्षित करने के मद्देनजर क्या ‘कवच’ प्रणाली को कुछ शीघ्रता से स्थापित नहीं किया जा सकता? सवाल यह भी है कि क्या ‘वंदे भारत’ सरीखी टे्रन के आकर्षक आधुनिकीकरण पर राजनीतिक और नीतिगत फोकस अधिक है, लिहाजा ‘कवच’ जैसी प्राथमिकताएं पीछे छूट जाती हैं? क्या रेलवे की सुरक्षा से ऐसे समझौते किए जा सकते हैं? सवाल यह भी है कि बार-बार रेल हादसे क्यों होते हैं और क्या इनको लेकर जवाबदेही तय नहीं की जा सकती?
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