यह एक ऐसा रोल है, जिसका मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी सपना देखा है। सैयामी खेर
मुंबई।ज़िंदगी जब मुंह पे दरवाज़ा बंद करती है, तब उसे खोलना नहीं, तोड़ना पड़ता है” - ज़ी सिनेमा पर ‘घूमर’ के प्रीमियर के साथ इंसानी हौसले और अटूट जज़्बे की सच्ची मिसाल देखने के लिए तैयार हो जाइए! अभिषेक बच्चन और सैयामी खेर अभिनीत, यह फिल्म एक युवा क्रिकेट स्टार अनीना के सफर की कहानी है, जिसकी ज़िंदगी उसकी एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय शुरुआत से ठीक पहले पूरी तरह बदल जाती है और फिर कैसे वो विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए उनसे पार पाती है। आर. बाल्की द्वारा निर्देशित, घूमर के वर्ल्ड टेलीविज़न प्रीमियर के साथ प्रेरणा और मनोरंजन के लिए तैयार हो जाइए, रविवार, 30 जून को रात 8 बजे सिर्फ़ ज़ी सिनेमा पर।
सैयामी खेर ने फिल्म और अपनी तैयारी के बारे में खुलकर बात की -
- फिल्म ‘घूमर’ में अभिषेक बच्चन के साथ काम करना कैसा रहा?
मुझे लगता है, चूंकि हम पहले भी साथ काम कर चुके हैं, इसलिए घूमर के मामले में हमारे बीच सहजता थी, जो बहुत जरूरी थी। एबी इतने मिलनसार और इतने गर्मजोशी से भरे हैं कि वे सभी को घर जैसा महसूस कराते हैं। वे आपके साथ परिवार की तरह पेश आते हैं। वे बहुत अच्छे इंसान हैं और मैं इसका पूरा श्रेय अमितजी और जयाजी को देती हूं। उनकी परवरिश इतने अच्छे से हुई है कि मैं चाहती हूं कि उनके जैसे और लोग हों। मैं अब तक जितने लोगों से भी मिली हूं, उनमें वे सबसे सुरक्षित इंसान हैं। साथ ही वे बहुत ही सजग और गुणी एक्टर हैं। मुझे एबी के साथ काम करके बहुत अच्छा लगा।
- जब आपको घूमर ऑफर की गई, तो आप उत्साहित थीं या नर्वस?
यह एक ऐसा रोल है, जिसका मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी सपना देखा है। साथ ही, मुझे पैरा-एथलीट का किरदार निभाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी महसूस हुई। इसलिए मैं बहुत नर्वस थी। मैं अपना सबकुछ और उससे भी ज्यादा देना चाहती थी। क्योंकि यह ज़िंदगी में एक बार मिलने वाला रोल है। ज़ाहिर है, उत्साह तो था, लेकिन फिर मैंने सोचा कि अब मैं सबसे अच्छा कैसे कर सकती हूं? मेरे लिए, यह फिल्म ईश्वर से मिला एक उपहार है। मुझे खेल पसंद है, लेकिन एक अलग तरह के किरदार को निभाने मैं इसमें सच्चाई लाने की कोशिश कर रही थी। इसलिए, तुरंत तो मुझे घबराहट महसूस हुई।
- इस फिल्म के लिए आपको किन संघर्षों से गुजरना पड़ा?
शारीरिक रूप से, यह चुनौतीपूर्ण था। मुझे हर काम के लिए अपने बाएं हाथ का इस्तेमाल करना पड़ा क्योंकि मैं जन्म से ही दाएं हाथ का इस्तेमाल कर रही थी। शूटिंग के दौरान मेरा हाथ बारह घंटे तक बंधा रहता था। मुझे एक हाथ से सबकुछ करने की ट्रेनिंग दी गई जो आखिर मेरी दूसरी आदत बन गई। भले ही मेरी शारीरिक यात्रा कठिन थी, लेकिन इस किरदार के जज़्बातों को जीना मेरे लिए और भी मुश्किल था। मेरे किरदार, अनीना को निभाने के लिए वाकई मेरी काबिलियत की परीक्षा हुई, जो इतनी बुरी स्थिति को देखती है और फिर खुद को संभालती है। शारीरिक रूप से, मुझे अपने बाएं हाथ से क्रिकेट खेलना सीखना पड़ा और इसी में खुद को ढालना पड़ा। मुझे एक हाथ से किरदार को निभाते हुए अनोखे घूमर एक्शन में भी महारत हासिल करनी थी। अंतिम मैच के दृश्यों को भीषण गर्मी के मौसम में शूट किया गया था, जिससे मुश्किलें और बढ़ गईं। भावनात्मक रूप से, यह मेरे लिए एक थका देने वाला अनुभव था जहां मुझे इस सदमे को जीना पड़ा। पैरा-एथलीटों के साथ समय बिताने से मुझे अनीना के किरदार में उतरने में मदद मिली।
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