क्यों होता है कम मतदान?
- डा. वरिंदर भाटिया
इस बार के लोकसभा चुनाव में मतदान का कम प्रतिशत लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव की शुरुआत से ही कम मतदान प्रतिशत से असमंजस बढ़ रहा है। लोगों का अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने में इस प्रकार से कम दिलचस्पी लेना यकीनन मजबूत लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। आइए, इस मुद्दे का विश्लेषण करें।
भारत में गरीब और अल्पसंख्यक वर्ग को वोट एक अस्त्र जैसा लगता है जिसके इस्तेमाल से वे अपनी अहमियत जता सकते हैं। तो ये लोग कोशिश करते हैं कि वोट अवश्य दें। शहरों के गरीबों में एक बड़ी संख्या प्रवासी लोगों की होती है जिनके नाम मतदाता सूची में नहीं होते हैं, जबकि गांवों में कई बार मतदान केंद्र बहुत दूर होते हैं जिसकी वजह से भी कई लोग मतदान करने नहीं जाते हैं। फिर भी कुल मतदान प्रतिशत में इस वर्ग के लोगों का प्रतिशत 30 से कम नहीं होता है। इनके द्वारा अल्पसंख्यकों की समर्थक पार्टी या जाति आधारित पार्टी या पैसा बांटने वाली पार्टी को वोट देने की संभावना ज्यादा होती है। बाकी 20 प्रतिशत मतदान निम्न मध्यम वर्ग और कुछ मध्यम वर्ग द्वारा किया जाता है। उच्च वर्ग अक्सर मतदान से विरक्त रहता है। इस प्रकार सामान्य समय में जब हम 50 प्रतिशत मतदान देखते हैं तो इसका अर्थ होता है कि लोग सरकार से न तो ज्यादा खुश होते हैं, न ज्यादा असंतुष्ट होते हैं। लेकिन जब सरकार निरंकुश, भ्रष्ट, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण करती या निष्क्रिय प्रतीत होती है, तो मध्यम वर्ग और बहुसंख्यक वर्ग अपनी पूरी ताकत के साथ सरकार बदलने के लिए बाहर निकलता है और मतदान प्रतिशत में 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जाती है। इस प्रकार यह देखा गया है कि जब भी मतदान 60 प्रतिशत से काफी ऊपर हो जाता है तो विपक्ष की पार्टी जीत जाती है।
जीवंत लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि मतदाता पूरी सक्रियता और तन्मयता से चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बने, लेकिन इस बार के चुनाव में पहले चरण से ही देखने में आया कि मतदान के रोज अनेक मतदाता अपने परिवार के साथ घूमने-फिरने निकल पड़े। कुछ कहते सुने गए कि उनके परिवार के मत न भी पड़े तो क्या फर्क पड़ेगा? जीतने वाली पार्टी तो जीत ही जाएगी। बाहरी उम्मीदवार की मौजूदगी भी कम मतदान के उभरते हुए कारणों में एक है। बताया जा रहा है कि भीषण गर्मी होने के कारण भी मतदाता वोट करने घर से नहीं निकल रहे। चुनाव आयोग ने पहले चरण के कम वोट प्रतिशत रहने पर अपनी कोशिशें और तेज कर दी थी ताकि ज्यादा से ज्यादा मतदाता वोट करने घरों से निकलें, लेकिन मतदाता की उदासीनता टूटी नहीं।
दिल्ली जैसे राजधानी शहर, जहां के निवासी बनिस्बत पढ़े-लिखे और जागरूक माने जाते हैं, में भी मत प्रतिशत पिछली दफा से भी कम रह जाना वाकई चिंता की बात है। दरअसल, एक तो चुनाव में कोई लहर नहीं बन सकी है, और चुनाव पूरी तरह स्थानीय मुद्दों पर आ सिमटा है, मगर कम मतदान को किसी भी तर्क से वाजिब नहीं ठहराया जा सकता है। कम मतदान चिंता की बात है। भारत के घटते मतदाता टर्नआउट के लिए पांच स्पष्ट कारण हैं। सामान्य तौर पर, पहला, बहुत से समृद्ध और शहरी निवासियों का मानना है कि सरकार पर निर्भर न होने के कारण उनके जीवन पर मतदान का बहुत कम बोझ है। दूसरा, प्रवासन के कारण बड़ी संख्या में लोग अपने शहरों से बाहर निकल गए हैं। तीसरा, युवा और मध्यम वर्ग के मतदाताओं को अक्सर ऐसे राजनीतिज्ञों से संबंधित करना मुश्किल हो जाता है जो आपराधिक, सामंती प्रभु या नीतिगत विशेषज्ञता के अभाव वाले सेलिब्रिटी हैं।
चौथा, कुछ लोग मतदान नहीं करते बल्कि वास्तविकता में वे मुद्दों या उम्मीदवारों से अनभिज्ञ हैं। पांचवां, मतदान को प्रोत्साहित करने के लिए सेलिब्रिटी और आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग करने में पूरी सफलता नहीं मिली है। आज तमाम राजनीतिक दल, उम्मीदवार और खुद चुनाव आयोग भी इस बात को लेकर चिंतित नजर आ रहा है कि आखिर लोग वोट देने घरों से क्यों नहीं निकले? कम वोटिंग के पीछे गर्मी बड़ा कारण भले ही न हो, लेकिन एक कारण जरूर हो सकता है। कई वर्षों के बाद अप्रैल महीने में इतनी तेज गर्मी पड़ी है। इससे कुछ फर्क पड़ता दिखाई दे रहा है। लेकिन दूसरी तरफ कम से कम मैं तो गर्मी की वजह से वोटिंग कम होने को बड़ा कारण नहीं मानता। अगर ऐसा होता तो फिर सुबह और शाम वोटिंग प्रतिशत अधिक होता, जो अभी तक ट्रेंड में दिखाई नहीं दिया।
वोटर लिस्ट में वोटर और वोट देने वालों में अंतर के कई कारण हो सकते हंै। जैसे, वोटर उस समय उस स्थान पर से कहीं कार्य के लिए बाहर चला गया। वह कार्य निजी, व्यावसायिक या नौकरी का हो सकता है। करोड़ों सरकारी कर्मचारी चुनाव ड्यूटी में लगाए जाते हैं। हालांकि उनको पोस्टल बैलेट की सुविधा दी जाती है, लेकिन उसमें फार्मलिटी अधिक है। इसलिए बहुत से फॉर्म नहीं भरते। कई लोग नौकरी दूसरे शहरों में करते हैं, लेकिन वोट अपनी पुश्तैनी जगह ही बनवाया हुआ होता है। वोट के लिए ही अपने शहर या ग्राम खुद के खर्च से जाकर वोट के लिए ही लोग जा नहीं पाते। कुछ लोगों ने दो जगह भी वोट बनाया होता है, एक पुश्तैनी जगह, दूसरा नौकरी का शहर। वह एक ही जगह तो वोट डाल सकते हैं। कुछ स्टूडेंट्स दूसरी जगह पढ़ाई कर रहे होते हैं और होस्टल में या किराए पर रहते हंै। वे भी वोट डालने नहीं आ पाते।
वृद्ध लोग या अकेली गृहिणी भी वोट देने में संकोच करती है। कुछ लोग बीमार हो सकते हंै। कुछ लोगों की शादी होने पर दूसरी जगह जाने से या वोटर का निधन होने से भी वोट नहीं पड़ पाता। कुछ लोग स्विंग वोटर होते हैं, वे नार्मल परिस्थितियों में वोट देने की जहमत नहीं उठाते। ये लोग जब वर्तमान सरकार को हटाना होता है, तब दूसरे पक्ष के फेवर में वोट करते हैं। बाकी जो जिस पार्टी के वोटर हैं, वे तो अपनी-अपनी लॉयल पार्टी को वोट करते ही हंै। ये स्विंग वोटर ही मतदान का प्रतिशत बढ़ाते हैं। परंतु अगर शत-प्रतिशत मतदान नहीं हो रहा है, तो डेमोक्रेसी के लिए इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता।



हमें मतदान को मूलभूत आवश्यकता के रूप में समझकर मतदान करना चाहिए, साथ ही औरों को भी प्रेरित करना चाहिए। मतदान एक मौलिक अधिकार और एक नागरिक कर्तव्य है। इसे अनिवार्य बनाने से अधिक लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित होंगे और यह सुनिश्चित होगा कि सरकार लोगों की इच्छा की प्रतिनिधि है। मतदान डेमोक्रेसी की आत्मा है। गलत मतदान/मतदान नहीं करना, तटस्थ मतदान, लालच, सम्प्रदाय, जाति, पंथ, भाषा या क्षेत्रवाद से प्रेरित होकर मतदान करना किसी भी डेमोक्रेसी के लिए सही नहीं है।
(कालेज प्रिंसिपल)

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