विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर कार्यशाल का आयोजन 

 मेरठ।  मेरठ कॉलेज चिकित्सा समिति द्वारा विश्व तंबाकू निषेध दिवस के अवसर पर तंबाकू तथा इसके अन्य उत्पाद के सेवन से मानव स्वास्थ्य तथा परिवार, समाज एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जागरूकता हेतु एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।  

 गोष्ठी का शुभारंभ प्राचार्या प्रो• अंजलि मित्तल ने किया। विषय की औपचारिक शुरुआत करते हुए प्रो• दयानंद द्विवेदी,संयोजक, चिकित्सा समिति, मेरठ कॉलेज ने इस दिवस के संदर्भ में बताया कि 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर तंबाकू के उपयोग के विनाशकारी प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व तंबाकू निषेध दिवस की स्थापना की जिसमें 7 अप्रैल को धुम्रपान निषेध दिवस तथा 31 मई को तंबाकू निषेध दिवस नामित किया गया। उन्होंने बताया कि तंबाकू का किसी भी रूप ( बीड़ी,सिगरेट,गुटका) में सेवन जानलेवा होता है। इसका सबसे विनाशकारी प्रभाव अन्य बीमारियों साथ कैंसर का होना है जिसमें मुंह,गला, फेफड़े, स्वरयंत्र,यकृत, पेट मूत्राशय, गुर्दे, के साथ तीव्र माईलायड ल्यूकोमिया शामिल है। इसके सेवन से हर वर्ष करीब 1 करोड़ से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो जाती है। तंबाकू न सिर्फ मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है बल्कि पर्यावरण पर भी बुरा असर डालता है।

 इसी कड़ी के रूप में मेरठ कॉलेज परिसर को तंबाकू मुक्त क्षेत्र घोषित किया गया है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो• हरजिंदर सिंह, वनस्पति विभाग, मेरठ कॉलेज, ने अपने वक्तव्य रखते हुये बताया कि ताजा आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में वयस्कों के अलावा 13 से 15 वर्ष की आयु के कम से कम 37 मिलियन युवा किसी न किसी रूप से तंबाकू का सेवन करते हैं जो अधिक चिंता का विषय है। इसमें तंबाकू के अन्य उत्पाद के अलावा ई-सिगरेट तथा निकोटिन का पाउच जैसे उत्पाद स्कुली छात्रों में ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है। इसका मुख्य कारण ज्यादा मुनाफा अर्जित करने के लिए तंबाकू उद्योग द्वारा ऐसे उत्पाद और उसके विज्ञापन प्रस्तुत करना है जो बच्चों तथा किशोर को ज्यादा आकर्षित करती है और सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म के माध्यम से उसके पास पहुंचती है। इसलिए वर्ष 2024 को विश्व तंबाकू निषेध दिवस का थीम “बच्चों को तंबाकू उद्योग के हस्तक्षेप से बचाना” है इसमें तंबाकू उद्योग द्वारा युवा को लक्षित कर उत्पादन तथा विज्ञापन पर रोक लगाने तथा बच्चों को इसके प्रति जागरूक करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उन्होंने बताया कि तंबाकू सिगरेट गुटके के प्रयोग की परिणति ड्रग्स की सेवन तक पहुंच जाती है क्योंकि एक बार तंबाकू सेवन के चपेट में आ जाने के बाद उसे इससे निकलना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में सरकार को ऐसी नीति अथवा कानून बनना चाहिए जिससे तंबाकू कंपनी के भ्रामक विज्ञापन जिसमें उत्पादों को पर्यावरण अनुकूल बताकर इसे बेचने पर पाबंदी लगाई जा सके।  तंबाकू अपने प्राकृतिक अवस्था मे उतना घातक नही होता परंतु इसके प्रसंस्करण के दौरान उपयोग किये गये रसायन के कारण यह अत्यधिक मारक हो जाता है। तंबाकू की खेती में अन्य फसल की तुलना में रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशकों के भारी मात्रा में उपयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है और खेतों का मरुस्थलीकरण होने का खतरा भी बढ़ जाता है।अतः इसके नीति निर्माता से अपेक्षा की जाती है कि नीति और दिशानिर्देश का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करे जिससे तंबाकू की खेती, उत्पादन, वितरण, इसके उपयोग से होने वाले नुकसान और अपशिष्ट प्रबंधन के प्रति लोगों को जागरूक किया जा सके तथा इसके मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव से वर्तमान तथा भावी पीढ़ी को बचाया जा सके। कार्यक्रम में छात्रो के अलावा  चिकित्सा समिति के सदस्य डां पल्लव अग्रवाल, प्रोफेसर सतीश कुमार, प्रो• रिजवान, प्रो• चंद्रशेखर भारद्वाज, संयोजक, इग्नु केंद्र, मेरठ कॉलेज, प्रो• कामेश्वर प्रसाद,प्रो• प्रवीण दुवलिश, प्रो• अर्चना सिंह , संयोजिका, आईक्युएसी, डाॅ दीपक वर्मा, प्रो• सीमा पंवार , अधिष्ठाता, मेरठ कॉलेज उपस्थित रहे।

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