भारत की कुर्बानियां भूल रहा बांग्लादेश
- प्रताप सिंह पटियाल
‘ईस्ट पाकिस्तान की हरियाली को लाल रंग से रंग दिया जाएगा’। ये अल्फाज सन् 1971 में पाक सेना द्वारा बांग्ला लोगों के सामूहिक कत्लेआम को अंजाम देने वाले सैन्य आपरेशन ‘सर्च लाइट’ का ‘कोडवर्ड’ थे। इन अल्फाज का जिक्र सर्च लाइट मंसूबे के मास्टरमाईंड व पाक सेना के मेजर ‘राव फरमान अली’ की डायरी में मौजूद था। सन् 1971 की जंग में पाकिस्तान को तकसीम करके भारतीय सेना ने 93 हजार पाक सैनिकों सहित राव फरमान अली को भी युद्धबंदी बनाकर हिरासत में ले लिया था। जिस रफ्तार से भारत आलमी सतह पर आर्थिक महाशक्ति तथा सैन्य कुव्वत के तौर पर उभर रहा है। कई मुल्क भारत विरोधी हिकारत का शिकार हो रहे हैं।
हिंदोस्तान के फजल से वजूद में आया बांग्लादेश भी भारत विरोधी देशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है। हाल ही में मालदीव की तर्ज पर बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी के रहनुमाओं ने इंडिया आउट का नारा देकर भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की आवाज बुलंद की है। हांलाकि बांग्लादेश की वजीरे आजम मोहतरमा शेख हसीना ने 26 मार्च 2024 को अपने मुल्क के यौम ए तासीस के मौके पर हिंदोस्तान की मुखालफत करने वाले लोगों को तल्ख तेवर जरूर दिखाए थे मगर भारत के रहमो करम पर पलने वाले मुल्क बांग्लादेश में भारत विरोधी आवाज चितांजनक है। दिसंबर 1971 से पहले बाग्लांदेश पूर्वी पाक के रूप में पाकिस्तान का हिस्सा था। पाकिस्तान के फौजी हुक्मरानों के जुल्मों सितम से परेशान हो चुकी बांग्ला आवाम अपने लिए एक आजाद मुल्क के तौर पर जीना चाहती थी। मगर पाक तानाशाह याहिया खान के आदेश पर पूर्वी पाक के सैन्य कमांडर ‘टिक्का खान’ ने बांग्ला आवाम की आजादी की आवाज को खामोश करने के लिए 25 मार्च 1971 को आपरेशन सर्च लाइट के तहत बांग्ला लोगों का नरसंहार करके बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं। पाक सेना ने आधी रात को ढाका विश्वविद्यालय पर हमला करके सैकड़ों छात्रों व प्रोफेसरों का कत्ल कर दिया था।
आपरेशन सर्च लाइट में पाक सेना द्वारा कत्लोगारत की हकीकत को ब्रिटेन के अखबार ‘संडे टाइम्स’ में पत्रकार ‘एंथनी मैस्करनेहास’ ने अपने आर्टिकल के जरिए जब आलमी सतह पर पेश किया तो हलाकत के उस खौफनाक मंजर से आहत होकर अमरीका की टाइम मैगजीन ने टिक्का खान को ‘बूचर ऑफ बांग्लादेश’ कहा था। सन् 1971 की जंग की वजह तथा पाकिस्तान का दो टुकड़ों में तब्दील होने का कारण टिक्का खान का जहालत भरा आपरेशन सर्च लाइट ही बना था। मगर पाकिस्तान के हुक्मरानों ने बांग्लादेश को रक्तरंजित करने वाले कुख्यात टिक्का खान को मार्च 1972 में पाक सेना का चार सितारा जरनैल बनाया था। मानवता को शर्मशार करने वाले आपरेशन सर्च लाइट की बर्बरता से बांग्ला लोगों को बचाने के लिए भारतीय सेना सरहदों की बंदिशों को तोडक़र पूर्वी पाकिस्तान में दाखिल हुई। वीरभूमि हिमाचल के रणवांकुरों से सुसज्जित ‘तीन डोगरा’ बटालियन ने सन् 1971 की जंग में बांग्लादेश के महाज पर चौड़ाग्राम व काठियाचोर तथा चटगांव क्षेत्रों की लड़ाई में पाक सेना को धूल चटाकर घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
डोगरा सैनिकों के जोरदार हमले व संगीनों से पाक फौज की हलाकत से बेबस होकर पाक सेना के ब्रिगेडियर ‘एएमके मलिक’ ने अपने ब्रिगेड के साथ तीन डोगरा बटालियन की एक कंपनी के सामने आत्मसर्मपण कर दिया था। युद्ध में पाक सेना के मंसूबों को ध्वस्त करके दास्तान ए शुजात का परिचय देने वाले तीन डोगरा के मेजर ‘अनूप सिंह गहलोत’ को ‘महावीर चक्र’ (मरणोपरांत) तथा हवलदार ‘रमेश कुमार’ व ‘खुशाल चंद’ दोनों को ‘वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से अलंकृत किया गया था। पूर्वी पाक में जिल्लत भरी शिकस्त से बौखला कर जनरल ‘नियाजी’ के सलाहकार राव फरमान अली के इशारे पर पाक सेना ने 14 दिसंबर 1971 को बांग्ला लेखकों, डाक्टरों, रजाकारों, शिक्षकों, वकीलों तथा बुद्धिजीवी वर्ग के सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उस नरसंहार की याद में बांग्लादेश 14 दिसंबर को ‘बुद्धिजीवी दिवस’ के तौर पर मनाता है। ढाका में मौजूद ‘शहीद बुद्धिजीवी स्मारक’ पाक सेना द्वारा कत्लेआम की दास्तां को बयान करता है। पूर्वी पाक की आवाम ने अपने मुल्क की आजादी का एक मुद्दत से जो पुरनूर ख्वाब देखा था। उसे भारतीय सेना के 3845 जांबाजों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर मुकम्मल किया था। युद्ध में बलिदान देने वाले 195 शूरवीरों का संबंध हिमाचल से था। भारतीय सेना ने पूर्वी पाक को आजाद कराकर नए मुल्क को बांग्ला जुबान के नाम पर बांग्लादेश बनाकर बांग्ला लोगों को ही सौंप दिया था।
अत: बांग्लादेश को भारतीय सैनिकों की कुर्बानियां याद रखनी होंगी। अंग्रेजों द्वारा बंगाल के विभाजन से आहत होकर अपने सूबे में एकता का माहौल कायम रखने के लिए ‘रविंद्रनाथ टैगोर’ ने सन् 1906 में ‘आमार सोनार बांग्ला’ नामक गीत की रचना की थी। बांग्लादेश की हुकूमत ने आजादी के बाद सन् 1972 में उस नगमें को अपना कौमी तराना तसलीम कर लिया था। आज चीन के इशारे पर बांग्लादेश के सियासतदान भारत का विरोध कर रहे हैं। लेकिन जब बांग्लादेश ने सन् 1972 में ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ में सदस्यता के लिए आवेदन किया था तो चीन ने उस आवेदन पर ‘वीटो’ करके विरोध जता दिया था। पूर्वी पाक में सर्च लाइट मंसूबे के तहत ज्यों ही बांग्ला लोगों का कत्लेआम शुरू हुआ। भारतीय सेना ने सपुर्दे ढाका की तहकीकात शुरू कर दी थी। मगर पाकिस्तान की तारीख को शर्मशार करने वाला दिन 16 दिसंबर 1971 मुकर्रर हुआ था।
अलबत्ता भारतीय सेना पूर्वी पाक में दखलंदाजी न करती तो पाकिस्तान के सिपाहसालार टिक्का खान तथा राव फरमान अली का बांग्लादेश की हरियाली को लाल करने का मंसूबा ‘सर्च लाईट’ मुकम्मल हो जाता। यदि वर्तमान में बांग्लादेश महफूज है, वहां जम्हूरियत कायम है। बांग्लादेशी लोग अपने मुल्क का यौम ए तासीस पूरे जश्न से मनाते हैं, तो इस आजादी के लिए बांग्लादेश की आवाम को भारतीय सेना का मरहून ए मिन्नत रहना होगा।
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