कुछ कहती है मतदाताओं की खामोशी
- अजित राय
पहले चरण के मतदान में मतदाताओं में वैसा जोश नहीं दिखा, जैसी उम्मीद की जा रही थी। मतदाताओं के इस फीके जोश से भले कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़े, क्योंकि उसके पास जो है, वह उसी में खुश... उसी से खुश है। गौर फरमाएं, तो वह सोशल मीडिया पर मिलने वाले समर्थन, अंग्रेजी बोलने वाले लोगों से मिलने वाली प्रशंसा और कभी-कभार कहीं से मिल जाने वाली जीत से ही संतुष्ट नजर आती रही है। और, ऐसा लगता है, यही सब छोटी-मोटी उपलब्धियां उसकी भूख मिटाने के लिए काफी है। मगर, भाजपा के लिए तो यह बड़ी चिंता की बात है, क्योंकि चुनाव दर चुनाव, जीत पर जीत के लिए उसकी भूख कभी कम तो नहीं ही होती, बल्कि हर चुनाव के लिए उसकी भूख बेहद गहरी होती है। और सच कहा जाए, तो यह बुरी बात है भी नहीं।
   प्रथम चरण के मतदान से जो दृश्य उभरकर सामने आया, वह भाजपा के लिए कदापि सुकूनदेह नहीं है, और ऐसा तमाम भाजपाई और उसके समर्थक भी महसूस कर रहे होंगे। बावजूद इसके, भाजपा और उनके कट्टर समर्थकों को निराश नहीं होने चाहिए, क्योंकि विपक्षी गठबंधन के मुकाबले वह अभी भी आगे है, क्योंकि, उसके पास एक लोकप्रिय चेहरा भी है, और कोई खास एंटी- इंकम्बेंसी जैसी कोई बात भी नहीं। और यही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। और, इस शक्ति का फायदा सत्तारूढ़ दल को मिलेगा भी, इसमें किसी तरह का कोई संदेह नहीं!
यहां आप चाहें, तो सत्तारूढ़ दल को मिलने वाले फायदे की वजह पर सवाल खड़े कर सकते हैं, कि आखिर क्यों? तो यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि नेता के रूप में एक व्यक्ति की सर्वमान्य उपस्थिति होने पर मतदाताओं को उसे समझने, स्वीकारने या खारिज करने जैसे फैसले लेने में बड़ी सहूलियत होती है। और वहीं दूसरी ओर, अगर सर्वमान्य नेता के रूप में कोई व्यक्ति सामने न हो, तो मतदाताओं को वह मोर्चा और गठबंधन कुछ अमूर्त जैसा लगने लगता है..लगता है। और राजनीतिक चश्मे से देखें, तो ऐसी स्थितियां किसी दल और गठबंधन के लिए किसी बड़ी समस्या से कम नहीं। ऐसा भी नहीं था कि इस समस्या का समाधान संभव नहीं था, था। मगर, उसके लिए कांग्रेस या विपक्षी गठबंधन को, भाजपा वाले प्रभाव क्षेत्र में जिस प्रकार की मुहिम चलानी चाहिए थी, को मूर्त रूप देने के लिए जिस रणनीति की दरकार थी, वहां पर वो शिथिल पड़ गई। और, राजनीति में ऐसी शिथिलता की भारी कीमत चुकानी पड़ जाती है। मगर, इसका मतलब यह भी नहीं कि विपक्षी गठबंधन में, सत्तारूढ़ दल में कुछ गंभीर अंदेशे और बेचैनियां पैदा करने की क्षमता है ही नहीं, क्षमता है!
आम चुनाव, 2024 के प्रथम चरण का मतदान कई मायनों में अप्रत्याशित रहा है। कुल मतदान शनिवार की रात्रि 11 बजे तक करीब 65.5 फीसदी रहा। यह 2019 की तुलना में 4 फीसदी कम रहा है। सबसे अधिक मतदान संघशासित क्षेत्र लक्षद्वीप में 84.16 फीसदी किया गया। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और सिक्किम में 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुए, लेकिन फिर भी 2019 की तुलना में 2 फीसदी तक कम हुए। सिर्फ छत्तीसगढ़ में 2 फीसदी मतदान ज्यादा किया गया। 



जम्मू-कश्मीर सरीखे संवेदनशील क्षेत्र में 68.27 फीसदी मतदान शानदार माना जा सकता है, लेकिन वहां भी 2019 से 1.88 फीसदी मतदान कम हुआ। सबसे कम मतदान बिहार की सीटों पर 49 फीसदी से कुछ ज्यादा रहा, लेकिन 4 फीसदी कम मतदाता वोट देने घर से निकले। उप्र और उत्तराखंड जैसे भाजपा वर्चस्व के राज्यों में 5-6 फीसदी मतदान कम किया गया। मध्यप्रदेश, राजस्थान और मिजोरम आदि राज्यों में अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ। इनसे भाजपा के 370 और 400 पार वाले लक्ष्यों को ठेस पहुंच सकती है, क्योंकि भाजपा उत्तरी भारत में ही शानदार जनादेश के भरोसे है।
( अधिवक्ता, पटना उच्च न्यायालय)

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