कुएं ही बचाएंगी जीवन
 इलमा अजीम 
बंगलुरू की कई नदियों का पानी खतम हो रहा है। अभी गर्मी शुरू ही हुई है, इसके बावजूद बुंदेलखंड के बड़े शहरों में से एक छतरपुर के हर मोहल्ले में पानी की त्राहि-त्राहि शुरू हो गई है। तीन लाख से अधिक आबादी वाले इस शहर में सरकार की तरफ से लगाए गए कोई 2100 हैंडपंपों में से अधिकांश या तो हांफ रहे हैं या सूख गए हैं। ग्रामीण अंचलों में भी हर बार की ही तरह हैंडपंप से कम पानी आने की शिकायत आ रही है। पानी की कमी के चलते छुट्टा मवेशियों की समस्या रबी की फसल के लिए खतरा बन गई है। पंजाब की प्यास भी बड़ी गहरी है। पांच नदियों के संगम से बना यह समृद्ध राज्य खेती के लिए अंधाधुंध भूजल दोहन के कारण पूरी तरह ‘डार्क ज़ोन’ में है। यहां 150 में से 117 ब्लॉक में भूजल लगभग सिमट चुका है। यह समझना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन के साल दर साल गहराने के चलते भारत में लघु व स्थानीय परियोजनाएं ही जल संकट से जूझने में समर्थ हैं। अभी भी देश में बचे कुओं को कुछ हजार रुपये खर्च कर जिंदा किया जा सकता है। कई करोड़ की जल-आपूर्ति योजनाएं अब जल-स्रोत की कमी के चलते अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रही हैं। यह समझना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन के साल दर साल गहराने के चलते भारत में लघु व स्थानीय परियोजनाएं ही जल संकट से जूझने में समर्थ हैं। अभी भी देश में बचे कुओं को कुछ हजार रुपये खर्च कर जिंदा किया जा सकता हे। एक बार कुओं में पानी आ गया तो समाज फिर खुद लोक परंपरा और प्यास दोनों के लिए कुओं पर निर्भर हो जाएगा। हमारे पारंपरिक कुएं ही मानव-अस्तित्व को बचा सकते हैं।

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