विषमता का विकास चिंताजनक

इलमा अजीम 
जिस दौर में अर्थव्यवस्था के चमकते आंकड़ों का हवाला देकर विकास के कामयाब सफर का दावा किया जा रहा हो, उसमें असमानता की खाई गहरे होते जाने की खबरें हैरान करती हैं। एक ओर सरकार देश की आर्थिक तस्वीर में लगातार बेहतरी आने की बात करती है, दूसरी ओर आंकड़ों के साथ ऐसे तथ्य सामने आते हैं कि यहां की कुल संपत्ति के एक तिहाई से काफी ज्यादा हिस्से पर चंद लोगों का कब्जा है। निश्चित रूप से यह विकास के तमाम दावों के बीच नीतिगत स्तर पर एक बड़ी खामी का सबूत है कि आबादी का ज्यादातर हिस्सा एक छोटे घेरे में सिमट रहा है। 

सवाल है कि अगर सरकार सबके विकास का नारा देती है, तो उसके बरक्स ऐसी तस्वीर क्यों बनी रहती है कि महज एक फीसद लोग देश के चालीस फीसद संसाधनों या संपत्ति के मालिक हो जाते हैं। इसके उलट, 2022-23 में देश के निचले पचास फीसद लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का सिर्फ पंद्रह फीसद हिस्सा था। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों के दौरान आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ी है। जाहिर है, यह देश की नीतियों का जमीनी हासिल है, जिसमें सबसे अमीर तबका लगातार धनी होता जा रहा है, वहीं बाकी लोगों की आर्थिक स्थिति और कमजोर होती जा रही है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts