(व्यंग्य आलेख)


देखो ! चुनाव आया है गरीब की झोपड़ी में भगवान आया है
- प्रभुनाथ शुक्ल
भगेलूराम के गाँव का मौसम और मिजाज बदला-बदला नजर आ रहा है। चुनावी घोषणा के साथ गाँव का मौसम बासंती हो गया है। अबकी फागुन और चुनाव एक साथ है। भगेलूराम आज बहुत खुश हैं जैसे उनके जीवन की सारी मुरादें पूरी हो गयीं हैं। उनकी झोपडी के भाग जग गए हैं। उसकी झोपडी में कलयुग के भगवान यानी नेताजी पधारे हैं। करोड़ों की चमचामाती कार और संगिनों के साए में नेताजी के पवित्र पाँव झोपडी में पड़े हैं। गाड़ी से उतरते ही नेताजी दौड़ कर भगेलूराम के चरण में पड़ गए। जैसे कोई रंक राजा का पैर पकड़ता है। जबकि बेचारा भगेलूराम थरथर कांप रहा था। उसकी तो मति ही मार गयी। किसी तरह नेताजी को भगेलूराम ने काँपते हुए उठाया।



नेताजी भगेलूराम की झोपडी के सामने पड़ी टूटी खाट पर निढाल हो गए। बोले "दादा प्यास और भूख लगी है।"  भगेलूराम हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। " सरकार हम गरीब के पास क्या है। बस मटके का पानी, गुड़ की भेली प्याज और रोटी।" नेताजी अड़ गए सो
भगेलूराम को रूखी -सुखी खिलाना ही पड़ा। नेताजी भगेलूराम से बहुत खुश हुए और जाते समय भरत मिलनकर बोले "दादा बस ! वोट देने का वचन दे दीजिए।" अब मरता क्या न करता। भगेलूराम ने नेताजी के सर पर हाथ रख वोट देने का वचन दे दिया। नेताजी ने भी कहा "दादा अबकी जीत जाऊँगा तो तस्वीर और तगदीर दोनों बदल दूँगा।" नेताजी उस इलाके से पांच बार चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन भगेलूराम की तस्वीर और तगदीर पच्चीस साल बाद भी नहीं बदली। हाँ, यह दीगर बात है की नेताजी की पूरी पीढ़ी बदल गयी। पूरा खानदान मंत्री है।
भगेलूराम सोच रहा था हमारी झोपडी के भाग्य अभी तक नहीं बदले। हम जैसे लोग बस,  झूठी कसमें, प्यार वफ़ा में हर बार ठगे जाते हैं।



 जीत के बाद तो नेताजी फिर गाँव में दिखाई नहीं देते। पांच साल बाद ही उनकी वापसी होती है। पांच साल बाद ही वह गाँव की गलियों, खेत -सिवान की ख़ाक छानते हैं। गरीब की झोपडी में खाना भी खाएंगे। होली भी खेलेंगे और गेंहू की कटाई के साथ आर्थियां भी उठाएंगे। गड़े मुर्दे भी उखाड़ेगे। जबकी चरणवंदन और भरत मिलाप तो आमबात है। नेताजी का यह बहुरुपिया पन सिर्फ चुनावों में ही दिखता है। चुनाव जीतने बाद वे गुलर के  फूल हो जाते हैं। बाद में नेता कम कालनेमी बन जाते हैं। फिर दिल्ली ही उन्हें रास आती है। जबकि
भगेलूराम जैसे लोग झूठी कसमें और चुनावी वायदे में मारे जाते हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक )

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