राष्ट्र का आधार हैं महिलाएं
इलमा अजीम 
प्रत्येक वर्ष की भांति अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कल शुक्रवार 8 मार्च को मनाया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का मकसद महिलाओं की विभिन्न क्षेत्रों यथा आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अर्जित उपलब्धियों को मान्यता देना भी है। भारतीय संविधान में हर महिला को गरिमा और शालीनता के साथ जीने का अधिकार मिला है, तथापि महिलाओं के प्रति अत्याचारों के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ताजातरीन मामला पश्चिम बंगाल से 100 किलोमीटर दूर संदेशखाली में महिलाओं के कथित रेप और उत्पीडऩ से जुड़ा हुआ है। महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो आप पाएंगे कि पिछले 65 वर्षों में बलात्कार, यौन शोषण, हत्या, दहेज, तेजाब फेंकने और जलाने जैसी घटनाओं में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई है।



 महिला सशक्तिकरण पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और प्राय: इस मुद्दे पर चर्चा भी होती रहती है, लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर महिलाओं को सशक्त नहीं बनाया जाता और उनकी सुरक्षा को यकीनी नहीं बनाया जाता, तब तक अपने दायरे में सिमटी आधी आबादी की सक्रिय भागीदारी के बिना एक सुदृढ़ विकसित और कल्याणकारी भारत की कल्पना करना बेमानी होगा। पारिवारिक, सामाजिक तथा विद्यालयों में बालिकाओं, महिलाओं के आदर-सम्मान के प्रति किशोरों/नवयुवकों को जागरूक करने की जरूरत है तो वहीं घर और विद्यालयों में संस्कारों और चरित्र निर्माण की शिक्षा दिए जाने की भी आवश्यकता है। सरकारों को चाहिए कि महिला पुलिस थानों/चौकियों की संख्या बढ़ाए, साथ ही देश के सभी थानों/चौकियों में महिला पुलिस कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए। याद रखें केवल बातें कहने भर से नारी सम्मानित नहीं होगी, हमको नारी के जीवन का सदा अलंकरण करना होगा, तभी नारी से नारायणी की परिकल्पना साकार होगी।

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