गंगा में प्रदूषणः तय हो जवाबदेही

- ज्ञाानेन्द्र रावत
जीवनदायिनी गंगा का जल अब पुण्य का नहीं वरन‍‍् कष्ट का सबब बन गया है। यदि 1986 से गंगा की सफाई पर सरकार द्वारा किये गये खर्च को छोड़ भी दिया जाये तो देश में 2014 में मोदी के सत्तारूढ़ होने के बाद से केन्द्र ने लाखों करोड़ रुपये के बजट के साथ 409 परियोजनाएं शुरू की हैं। सरकार ने नेशनल मिशन फार क्लीन रिवर गंगा को 2014-15 से 31 जनवरी, 2023 तक 14084.72 करोड़ की राशि जारी की है। 31 दिसम्बर, 2022 तक 32,912,40 करोड़ की लागत से 409 प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया जा चुका है। इनमें 232 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं और 2026 तक के लिए केन्द्र सरकार ने 22,500 करोड़ की राशि की स्वीकृति भी दे दी है। उसके बावजूद गंगा नदी की सफाई का मुद्दा इतने सालों बाद आज भी अनसुलझा है।
दुखदायी बात तो यह है कि गंगा के पूरे बहाव क्षेत्र के 71 फीसदी इलाके में कोलीफार्म की मात्रा खतरनाक स्तर पर पायी गयी है। जहां तक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का सवाल है, उसके मुताबिक भी गंगा के 60 फीसदी हिस्से में बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे गंदगी बहायी जा रही है। इसका परिणाम यह है कि गंगा का जल पीना तो दूर, वह अब आचमन लायक भी नहीं रह गया है।



मौजूदा हालात में गंगा जल को देश में चार जगहों यथा ऋषिकेश (उत्तराखंड), मनिहारी व कटिहार (बिहार), साहेबगंज व राजमहल (झारखंड) में ग्रीन कैटेगरी में रखा गया है। गौरतलब है कि ग्रीन कैटेगरी का मतलब यह है कि वहां का पानी कीटाणुओं को छानकर पीने में इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि उत्तर प्रदेश में तो 25 जगहों से ज्यादा का पानी ग्रीन कैटेगरी में शामिल है ही नहीं। इन जगहों पर गंगा जल को हाई लेवल पर साफ करने के बाद ही पीने योग्य बनाया जा सकता है। 28 जगहों का पानी तो नहाने लायक ही नहीं है। इसका सबसे ज्यादा और अहम कारण सॉलिड और लिक्विड वेस्ट है जो सीधे-सीधे गंगा में गिराया जा रहा है।
यूनिवर्सिटी आफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के शोध में खुलासा हुआ है कि गंगा के किनारे लगते मैदानी इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ते जाने से लोगों की उम्र कम हो रही है। अब तो यह भी साबित हो चुका है कि गंगा के पानी में घुले एंटीबायोटिक घातक साबित हो रहे हैं। यूनिवर्सिटी आफ यार्क के वैज्ञानिकों के शोध के निष्कर्षों के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र ने एंटीबायोटिक की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने को वर्तमान में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या माना है।
विडम्बना है कि गंगा से जुड़ी सरकारी संस्थाएं इस तथ्य को नजरअंदाज करती आ रही हैं। असलियत में धार्मिक भावना के वशीभूत होकर गंगा के पानी में बहुत बड़ी तादाद में लोग नहाते हैं। यही नहीं, उसके जल का आचमन भी करते हैं। इससे एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया सीधे शरीर में प्रवेश कर जाता है और शरीर पर अपना असर दिखाने लगता है। उल्लेखनीय है कि गोमुख से लेकर गंगासागर में मिलने तक गंगा कुल 2525 किलोमीटर का रास्ता तय करती है। गंगा के इस सफर में कुल 445 किलोमीटर हिस्सा बिहार में पड़ता है। यहां 730 मिलियन लीटर सीवर का पानी बिना शोधन के सीधे गंगा में गिराया जा रहा है। यहां हानिकारक कीटाणुओं की तादाद इतने खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है जिससे चर्म रोग होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यहां टोटल कोलीफार्म और फीकल कोलीफार्म का स्तर औसत से कई गुणा ज्यादा है।
गंगा देश की संस्कृति और आस्था की पहचान है। लेकिन अब यह देशवासियों के स्वास्थ्य के लिए चुनौती है। इसके जल के पान की बात तो दीगर है, इसमें स्नान भी सेहत के लिए चुनौती साबित हो रहा है। क्योंकि अधिकांश जगहों पर कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा मानकों से 45 गुणा अधिक पायी गयी है। गंगा के प्रदूषित जल में जानलेवा बीमारियां पैदा करने वाले ऐसे जीवाणु मौजूद हैं जिन पर अब एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं होता। हालिया अध्ययन इसके प्रमाण हैं जिन्होंने गंगा नदी बेसिन में माइक्रोप्लास्टिक के उच्च प्रसार का खुलासा किया है। माइक्रोप्लास्टिक बायोडिग्रेबल नहीं होता। वह पर्यावरण में जमा होता रहता है। ये समुद्री, पारिस्थितिक तंत्र और मीठे पानी के तंत्र को प्रदूषित करते रहते हैं और कई सरीसृप, मीन और पक्षी प्रजातियों के लिए खतरा हैं। इनकी गंगा में मौजूदगी मानव स्वास्थ्य ही नहीं, प्राणिमात्र के लिए भीषण खतरा है।



बीते माह ही एनजीटी ने गंगा में प्रदूषण सम्बंधी एक याचिका की सुनवाई के दौरान गंगा में प्रदूषण की मौजूदा स्थिति जानने हेतु एक समिति के गठन को मंजूरी दी है ताकि इस सम्बंध में सही तथ्यात्मक स्थिति की जानकारी हो सके और तात्कालिक रूप से उपचारात्मक कार्रवाई हो सके। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने इस बारे में कहा कि यह याचिका पर्यावरण मानदण्डों के अनुपालन से सम्बंधित एक अहम मुद्दा उठाती है। यह समिति सही तथ्यात्मक स्थिति और आरोपों की सत्यता का पता लगायेगी। यहां यह जान लेना जरूरी है कि गंगा शुद्धि के अभियान में केन्द्र सरकार के सात मंत्रालयों की साख द पर आंच है, वे पूरे जी-जान से गंगा की सफाई अभियान में लगे हैं। हकीकत में गंगा तब तक साफ नहीं होगी जब तक स्थानीय निकाय ईमानदारी से अपनी भूमिका का निर्वहन न करने लग जायें और इस अभियान में जनभागीदारी की अहमियत समझते हुए उनका सहयोग लिया जाये।

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